गढ़वा : झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता धीरज दुबे ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि वन नेशन, वन इलेक्शन लाकर भारतीय जनता पार्टी स्थानीय नेतृत्व एवं मुद्दे को गौण करना चाहती है। अलग-अलग समय पर आम चुनाव, विधानसभा चुनाव, नगर निगम एवं पंचायती चुनाव होने से सभी पार्टियों को लगातार 5 वर्ष तक सजग होकर जनता की भावनाओं का कद्र करते हुए काम करना पड़ता है अन्यथा इन छोटे चुनाव में जनता को दूसरी पार्टी अथवा अलग जनप्रतिनिधि को चुनने का मौका मिल जाता है। सारे चुनाव एक साथ हो जाने से अलग-अलग पदों के लिए जनप्रतिनिधि चुनने में जनता को झंझावात महसूस होगा। छोटे स्तर के चुनाव में स्वतंत्र चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के लिए भी इस हाईटेक प्रचार-प्रसार के जमाने में परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
यहां तक की जनप्रतिनिधि भी चुनाव जीतने के लिए काम की बजाय अपने दल के भरोसे सीमित हो जाएंगे। जिस पार्टी का नेतृत्व और चुनाव कैंपेनिंग बेहतर होगा उसके अक्षम प्रत्याशी की लौटरी लग जाएगी। एक साथ चुनाव होने से बड़े मुद्दे हावी रहेंगे जबकि पंचायत स्तर के छोटे मुद्दे या तो दब जाएंगे या पूरी तरह से गौण हो जाएंगे। वर्तमान में कई राज्यों में आम चुनाव में राज्यवासी किसी अन्य दल को बहुमत देते हैं तथा विधानसभा चुनाव में किसी दूसरे दल को बहुमत देकर सरकार बनाने का जनादेश देते हैं। एक साथ चुनाव होने में जनता का यह निर्णय भी प्रभावित होगा। मतदाता सूची भी 5 वर्ष में एक बार प्रकाशित होगी जिसकी खामियों को सुधारने के लिए जनता को अगले चुनाव तक इंतजार करना पड़ेगा।
चुनाव के ठीक बाद 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने वाले मतदाता को भी अगले 5 साल तक मतदान करने के लिए चुनाव का इंतजार करना पड़ेगा, अन्यथा अलग-अलग समय पर चुनाव होने से उन्हें मतदान करने के कई मौका प्राप्त हो जाता है।
केंद्र सरकार के अनुसार एक साथ चुनाव कराने से समय और चुनाव खर्च का तो बचत होगा लेकिन हंग असेंबली होने की स्थिति में वैकल्पिक व्यवस्था क्या होगी सरकार इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रही है। विविधता से भरे इस देश की भौगोलिक स्थिति, क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृष्टिकोण पर गौर किया जाए तो बाढ़, सुनामी, चक्रवात, भूस्खलन आदि की स्थिति में भी वन नेशन, वन इलेक्शन लंबे समय तक लघु रख पाना अव्यवहारिक प्रतीत होता है।