गढ़वा : यदि आपका हर्ट बिट कमजोर हो तो फिलहाल पूरे परिवार व सगे संबंधी सहित गढ़वा जिला छोड़ दीजिए। ऐसा नहीं करने पर आप कभी भी आप अपने सगे - संबंधी के मोबाइल से कांटेक्ट करने पर,
आप जिससे संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं वह उत्तर नहीं दे रहे हैं की लगातार 4 - 4 घंटे तक मिलने वाली आवाज से उत्पन्न किसी दुर्घटना की आशंका की घबराहट से उत्पन्न आघात से आप मौत के मुंह में भी समा सकते हैं।
यह कोई कोरी कल्पना नहीं है, बल्कि हकीकत है। ऐसा मुझे अपने 30 वर्ष की पत्रकारिता जीवन काल में कभी सुनने को नहीं मिला की पुलिस मास्क पहनकर नहीं रहने जैसी अपराध के आरोप में किसी को दंगा, भड़काने वालों के अंदाज में, थाना पकड़ कर ले जाए और उसके मोबाइल को रात्रि 8 बजे से मध्य रात्रि 12:00 बजे तक अपने पास रख ले, और उस पर आने वाले कॉल को न तो खुद रिसीव करे, और ना ही जिसका मोबाइल हो उस हिरासत में लिए गए व्यक्ति से भी उसके परिजनों से यह सूचना नहीं देने का भी मौका नहीं दे, की वह घर वाले को बोल सके की घबराए नहीं हम थाना में हैं।
भला ऐसा होने पर किसी का हार्ट अटैक हो सकता है अथवा नहीं इस पर गौर करें।
माना कि कोरोना संकट में सभी लोग परेशान हैं। लोग सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन करने व मास्क लगाकर चलने के मामले में लापरवाही बरत रहे हैं। मगर अचानक से लोग ऐसा नहीं कर रहे हैं। लिहाजा यह नई बात नहीं है कि 1 जनवरी को कोरोना का पहला केस भारत में आया था 22 जनवरी से ताली बजाते, थप्पड़ी पीटते लॉकडाउन महीनों तक लगा रहा। फिलहाल अनलॉक डाउन चल रहा है, इस दौरान पुलिस इतनी सख्त नहीं थी। वरना आज जो संक्रमण के दौर से गढ़वा के लोग कराह रहे हैं ऐसी हालत नहीं होती, और पुलिस को मास्क नहीं पहनने वालों के खिलाफ ऐसा क्रूर अभियान चलाने की जरूरत भी नहीं पड़ती।
दरअसल जब पुलिस पर खुद आन पड़ी उसके भी लोग बीमार पड़ने लगे तब खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की तर्ज पर पुलिस अब मास्क नहीं पहनने वालों को रात्रि में उठा ले रही है।
अच्छी बात है बगैर मास्क पहने लोगों को उठाने का पुलिस को अधिकार है मगर भारत के किस कानून में पुलिस को यह अधिकार मिला है कि जिस व्यक्ति को वह हिरासत में ले और उसे 12 बजे रात्रि तक 4 घंटे हिरासत में रखे और उसके घर वाले यदि फोन कर रहे हो कि हमारा परिजन कहीं दुर्घटना का शिकार तो नहीं हो गया या क्या कारण है कि जो रात्रि 9:00 बजे घर लौटता था आज 12:00 बजे तक नहीं लौटा? उसके परिजन को सूचना देने के उसके मौलिक अधिकार से भी उसे वंचित कर दिया जाए।
जबकि जानकारी के अनुसार कानून कहता है कि हिरासत में लिए व्यक्ति की प्रथम सूचना उसके घरवालों को देना अनिवार्य है। मगर गढ़वा पुलिस ने इसकी जरूरत नहीं समझी और हमारे प्रतिनिधि आयुष तिवारी को चीनिया मोड़ से मोबाइल से फोटो खींचने के दौरान उठाकर सीधे ले जाकर हिरासत में ले लिया।
उसके घर वाले परेशान रहे उसके इष्ट मित्रों व मुझसे आयुष का पता लगाने के लिए संपर्क किया गया की आयुष कहां है? उस मध्य रात्रि के करीब उसकी घर की महिलाएं दो- दो बहने अपने भाई की तलाश में उसके झूरा गांव के घर से हिरासत अवधि में सदर अस्पताल से लेकर गढ़वा से झुरा जानेवाली सड़कों में दुर्घटना की आशंका को लेकर खोजते फिरते परेशान रहे। सदर अस्पताल गढ़वा में भी लाकर पता लगाया। उन्हें कुछ भी नहीं पता चला।
तब जाकर कहीं रात्रि 11:30 बजे, चुकि 50 लोगों को करीब हिरासत में लिया गया था, इसलिए उनके परिजन थाना के गेट के सामने भीड़ लगाए थे उस भीड़ को देखकर संदेह के आधार पर पता करने पर मुझे पता चला की आयुष थाना में है। एसपी साहब बैठे हैं, इसलिए आपको मिलने नहीं दिया जाएगा।
मैंने उसे छोड़े जाने के इंतजार में अपने एक सहयोगी के साथ 12:00 बजे तक वहां वक्त गुजारा।
गेट के सामने जब आयुष बाहर निकला तो उसने बताया की चीनिया मोड़ पर पुलिस जब बगैर मास्क पहने लोगों को पकड़ रही थी तो, वह सोचा एक वीडियो बना लेते हैं, इसी दौरान सदर एसडीपीओ बहामन टूटीट की नजर उस पर एक आरक्षी के द्वारा यह कहे जाने पर कि देखें सर यह पत्रकार फोटो खींच रहा हैं पड़ी। पत्रकार आयुष को बेहतर ढंग से श्री टुटी पहचानते थे कि स्थानीय न्यूज़ चैनल नूतन टीवी का रिपोर्टर है, बावजूद उन्होंने मास्क पहनकर रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार आयुष को उठाकर पुलिस वाहन में डालने का पुलिस बल को आदेश दिया और पुलिस वालों ने उसे उठा लिया।