गढ़वा : आज की सुबह हमारे चैनल के चेयरमैन नवनीत शुक्ल ने बताया कि गढ़वा के सहिजना मोहल्ले के झामुमो नेत्री और गढ़वा नगर पंचायत की संस्थापक अध्यक्षा रहीं, अनिता दत्त की जेठ की मौत हो गई। जैसे ही यह खबर मिली मैं सन्न सा रह गया, क्योंकि यह खबर मेरे लिए भारी अवसाद भरा था। इसलिए की जिसकी मौत की खबर वे दे रहे थे, वह मेरे लिए बड़ा ही पीड़ादायक था, क्योंकि मुझे तत्काल यह बात समझ में आ चुका था कि जिस अनिता दत्त के जेठ के मौत की मुझे खबर मिल रही है वह हमारे मित्र व बचपन के सहपाठी प्रभु दत्त से जुड़ा है। जो हमारे बचपन के दिनों के सहपाठी थे।
हम लोग तब गढ़वा जिले के इकलौते निजी मध्य विद्यालय जो आर्य समाज द्वारा संचालित था दयानंद आर्यवैदिक मध्य विद्यालय गढ़वा पुरानी बाजार के छात्र हुआ करते थे।
मुझे याद है प्रभु दत्त बड़े ही मेधावी छात्र थे विशेषकर तब जब मैं वहां छठी क्लास में था। रिजल्ट आया था, तीन सेक्शन में हमारे सेक्शन ए के प्रभु दत्त का रिजल्ट टॉप में था। लिहाजा हम लोगों के लिए भी गर्व की बात थी कि हमारे ही सेक्शन से विद्यालय टॉपर हुआ है। मेधावी एवं शालीनता के चलते प्रभु दत्त विद्यालय के छात्र छात्राओं एवं शिक्षकों के चहेते थे। शालीन स्वभाव के कारण उनका बचपन की चपलता भी छुप जाती थी। शुरुआती दौर से बड़े ही मेधावी पर सरल स्वभाव के व्यक्तित्व के धनी थे आगे बढ़कर उम्र के साथ इनके जीवन में शालीनता के साथ सादगी भी बढ़ती गई।
पढ़ाई समाप्त होने के बाद प्रभु दत्त के जिंदगी में एक बड़ा बदलाव आया। परिवार तब आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा था।
उन्होंने अपने घर में बड़े पुत्र होने के नाते अपने कैरियर के बजाय परिवार की जिम्मेवारी निभाई। राष्ट्रीय सहारा के एजेंट के रूप में, साइकिल से रेकरिंग डिपाजिट का काम शुरू कर अपने परिवार की माली हालत को संभाले रखा। परिवार के बोझ उठाने की विवशता के कारण वे मेधावी छात्र होकर भी लंबे समय तक संघर्ष ही करते रह गए। उन्हें उनकी प्रतिभा के अनुकूल मुकाम नहीं मिल पाया। यहां तक कि उनकी पत्नी भी एक निजी विद्यालय में अल्प वेतन पर शिक्षिका का काम करती रहीं।
हालांकि कुछ साल बाद ही उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में ना केवल तेजी से सुधार आया बल्कि अनिता दत्त के नगर पंचायत अध्यक्ष बनने के बाद इस परिवार की गढ़वा शहर में एक प्रतिष्ठित परिवार के रूप में पहचान भी बन गई।
वैसे भी इनके पिता रामविलास बाबू की इस शहर में पहले से ही अलग पहचान थी और परिवार में संपन्नता आने के बाद और प्रतिष्ठा बढ़ गई। मगर हमारे मित्र प्रभु दत्त के जीवन शैली पर इसका कोई फर्क नहीं दिखा। उनके जीवन की सादगी और विनम्रता, वही राष्ट्रीय सहारा के एक एजेंट की तरह दिखती रही। संभवत: परिवार की संपन्नता में अपेक्षित महत्व नहीं मिलने से आजीवन संघर्ष करते जीवन के दौड़ में प्रभु दत्त ने कई झंझावातों को झेला, जैसा कि मुझे जानकारी है। मगर मुश्किल से मुश्किल घड़ी और बेहतर से बेहतर क्षण में भी उनके चेहरे पर कभी बदलाव नहीं दिखे। उनके चेहरों को पढ़कर किसी के लिए भी एहसास कर पाना बड़ा ही कठिन था कि उनके वर्तमान जीवन में क्या चल रहा है।
इतना सारा कुछ के बीच इतना तो पक्के तौर पर कहा ही जा सकता है कि वे अपने वसूल के प्रति बड़े ही निष्ठावान थे। जीवन पर्यंत कभी भी अपने वसुल से समझौता नहीं किया। मुझे खबर है कि उन्होंने परिवार की संपन्नता में अपनी भागीदारी को सीमित रखा तथा सादगी पूर्ण जीवन जीते रहे। इस विश्वव्यापी महामारी कोरोना की लड़ाई में हमारे मित्र प्रभु दत जिंदगी की लड़ाई हारते हुए मौत की नींद में सो गए। जैसी की जानकारी मिली उस खबर के अनुसार वे पिछले करीब 1 सप्ताह से बीमार थे। दो-तीन दिनों से उनकी हालत बिल्कुल ही खराब थी, क्योंकि पिछले काफी वर्षों से ब्लड प्रेशर एवं शुगर के पेशेंट थे।
कल शाम उनका करोना टेस्ट कराया गया जो पॉजिटिव रिपोर्ट रात्रि करीब 9:00 बजे आया।
इसके बाद उन्हें 11:00 बजे के करीब गढ़वा से रांची रिम्स के लिए ले जाया गया जहां पहुंचते ही उनकी रिम्स में मौत हो गई है। खबर मिला तो बड़ा दुख हुआ साथ ही चिंता भी हुई की उम्र के महज 52 वें वर्ष में ही उनका असामयिक निधन हो गया। भगवान उनके परिवार को दुख सहने की ताकत दे, इसी प्रार्थना के साथ,
मैं तथा मेरा नूतन टीवी परिवार उनके आसमयिक निधन पर श्रद्धांजलि व्यक्त करता है।