गढ़वा : झारखंड के गढ़वा जिले में दानरो नदी वाटरशेड क्षेत्र में मृदा कटाव के खतरों पर किया गया एक महत्वपूर्ण शोध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है। यह अध्ययन डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के भूगोल विभाग द्वारा किया गया और इसे प्रतिष्ठित स्प्रिंगर नेचर जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
शोध की मुख्य बातें:
शोध ने दानरो नदी जलग्रहण क्षेत्र में मिट्टी के कटाव के कारणों और इसके प्रभावों का विश्लेषण किया। अध्ययन में पाया गया कि क्षेत्र का 53.21% हिस्सा मध्यम जोखिम और 0.32% हिस्सा उच्च जोखिम के अंतर्गत आता है। मृदा कटाव के प्रमुख कारण प्राकृतिक ढलान, कम वनस्पति आवरण और अनियमित मानवीय गतिविधियाँ हैं।
दानरो नदी वाटरशेड का महत्व:
स्थान: छोटानागपुर पठार पर स्थित यह क्षेत्र गढ़वा जिले की प्रमुख नदियों में से एक, दानरो नदी, और उसकी सहायक धाराओं जैसे दंडु, अदरा और सरस्वती नदी से बना है।
क्षेत्रफल: कुल क्षेत्रफल 573.29 वर्ग किलोमीटर।
कृषि: मुख्य रूप से धान, गेहूं और जौ जैसी फसलें उगाई जाती हैं। यह क्षेत्र स्थानीय किसानों की आजीविका का मुख्य स्रोत है।
पर्यावरणीय संतुलन: जलग्रहण क्षेत्र की मिट्टी और जल संसाधन जिले के पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं।
शोध में उपयोग की गई तकनीक:
भू-स्थानिक तकनीक और एएचपी विधि: लैंडसैट 8 सैटेलाइट डेटा, एएलओएस डेम डेटा और भारत सरकार के टोपोशीट्स का उपयोग।
मानचित्रण: भूमि उपयोग और आवरण (LULC), ढलान, जल निकासी घनत्व, एनडीवीआई (NDVI), और वर्षा के आधार पर संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान।
प्रमुख निष्कर्ष और सिफारिशें:
1. मृदा कटाव के जोखिम क्षेत्र: उच्च ढलान और कम वनस्पति वाले क्षेत्र सबसे अधिक संवेदनशील हैं।
2. संरक्षण उपाय: पुनर्वनीकरण, जलग्रहण क्षेत्र संरक्षण और मिट्टी संरक्षण तकनीकों को अपनाने की सिफारिश की गई है।
3. नीतिगत उपयोग: शोध के निष्कर्ष नीति-निर्माताओं और स्थानीय समुदायों को टिकाऊ भूमि और जल प्रबंधन में सहायक होंगे।
शोधकर्ताओं की टीम:
यह शोध राहुल कुमार पांडे, पीएचडी शोधार्थी, और डॉ. अभय कृष्ण सिंह, सहायक प्रोफेसर, द्वारा किया गया है।
विशेष योगदान:
यह अध्ययन गढ़वा जिले के लिए मृदा संरक्षण और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए नई राहें खोलता है। साथ ही, यह भारत में मृदा और जल संरक्षण के लिए एक मॉडल प्रस्तुत करता है।