▪️लॉकडाउन में प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने वालों
की टूटी कमर
▪️छोटे कोचिंग सेंटरों के शिक्षक भी मुसीबत में
▪️पढ़ने और पढ़ाने वाले दोनों आर्थिक रूप से
कमजोर
▪️मकान का किराया तक जुटाना हुआ मुश्किल
▪️ऑनलाईन पढ़ाई कराने की कोई सुविधा नहीं
▪️कहां से फोन और लैपटॉप लाएंगे गरीब बच्चे
▪️मोबाइल का गलत इस्तेमाल की आदत भी
पड़ने का खतरा बढ़ा
गढ़वा : देश और दुनिया कोरोना महामारी का दंश झेल रहा हूं। लाखों जिंदगियां बर्बाद हो चुकी हैं। लाखों लोगों का रोजगार समाप्त हो चुका है। लोग जैसे तैसे जिंदगी पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे है। सरकार और प्रशासन भी जरूरत की चीजों में अपेक्षित छूट दे रहे है। बाजार, दुकान, रेस्टुरेंट पब्लिक ट्रांसपोर्ट, सब धीरे-धीरे खुल रहा है।
पर सेवा साधना से अपनी जीविका चलाने वाले ट्यूशन टीचर्स की हालत पर सरकार का निगाह नहीं होना बेहद आश्चर्यजनक है।
सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन कर तथा सैनिटाइजर को दैनिक जीवन में शामिल कर जब सब कुछ करीब - करीब चल ही रहा है, तो आखिर शिक्षा दान कर रोटी दाल जुगाड़ करने वाले इस पेशे से जुड़े लोगों का कारोबार क्यों नहीं खुल सकता है? जरूरत है सरकार इस पर जल्द से जल्द फैसला ले।
ट्यूशन पढ़ाकर जीवन बसर करने वाले लोगों की हालत खस्ता है। जीविकोपार्जन की विवशता में पूरा जीवन खपा देने वाले इस पेशे से जुड़े लोग इस वैश्विक महामारी कोरोना में अर्थ तंत्र के आगे इस कदर लाचार और बेबस नजर आ रहे हैं कि यदि इनकी जिंदगी में झांक कर देखें तो पता चलेगा कि इनकी हालत बदत्तर होती जा रही है।
कहीं प्रशासन तो कहीं समाजसेवी, कहीं पड़ोसी, कहीं दुकानदार तो कहीं मकान मालिक इनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे मानों ये समाज के सबसे अछूते और निरीह प्राणी हों।
हम गढ़वा से नगर उटारी जाने के लिए उस जीप की सवारी कर सकतें है जिसमे चालक सहित 20-22 लोग सवारी करते हों। हम गढ़वा से मंझिआंव जाने के लिए उस टेम्पो ऑटो की सवारी कर सकते हैं जिसमें 12 से 15 लोग यात्रा करते हो। उस शादी समारोह में शिरकत करने में नहीं झिझकते, जिसमें 50 लोगों का परमिशन लेकर 500 से 1000 लोग जुटते हैं, पर हमें ट्यूशन टीचर्स से और कोचिंग संचालन से बहुत परेशानी है।
सच ये है कि जितनी आवश्यकता ट्यूशन टीचर्स को है उतनी ही जरूरत अभिभावकों को भी है। ऐसे में क्या सुरक्षा मानकों का ध्यान रखते हुए कोचिंग संस्थान खोलने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
जिसमें शिक्षक एवं सभी बच्चे एक निश्चित दूरी पर बैठे। सभी लोग अनिवार्य रूप से मास्क पहनें।संस्थान में सेनेटाइजर की पर्याप्त व्यवस्था हो। संस्थान में जितने बच्चों के बैठने की क्षमता हो किस्मत 2 गज की दूरी है जरूरी की मानक अपना कर बच्चे बैठें।
तमाम परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सशर्त ही परंतु सरकार को शीघ्र फैसला लेने की जरूरत है। इससे अब तक इस पेशे से जुड़े लोगों का नुकसान तो काफी हो ही चुका है, बच्चे भी बर्बाद हो रहे हैं। लैपटॉप, मोबाइल सभी के बस की बात नहीं है।
साथ ही ऑनलाइन के फैशन में बच्चों को मोबाइल हाथ में सौंपने की अभिभावकों की मजबूरी कार प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। उनमें मोबाइल का गलत इस्तेमाल की आदत भी पड़ने का खतरा बढ़ गया है।
इससे बच्चे फ्रस्टेशन का शिकार भी हो रहे हैं।
इसे ध्यान में रखकर भी सरकार को जल्द से जल्द इस पेशे को समाजहित में संरक्षण देने की जरूरत है। सरकार को इनके लिए भी दिशा निर्देश जारी कर ट्यूशन और कोचिंग शुरू करने की अनुमति देनी चाहिए।