बंशीधर नगर :
- श्री बंशीधर नगर प्रखंड के पाल्हे जतपुरा गांव में आयोजित भव्य व विशाल 1051 कुंडिय श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। महायज्ञ को लेकर यज्ञशाला व हवन कुंड का निर्माण कार्य पंडित तारकेश्वर पांडेय के निर्देशन में प्रयागराज के कारीगरों के द्वारा युद्ध स्तर पर किया जा रहा है।
थेयह जानकारी शनिवार को यज्ञ समिति के अध्यक्ष वीरेंद्र चौबे, सचिव अनीश कुमार शुक्ला व मीडिया प्रभारी रजनीश कुमार मंगलम में संयुक्त रूप से दी। मीडिया प्रभारी ने कहा कि भारत देश में रहने वाले भारतीय वैदिक संस्कृति को मानने व आदर करने वाले सभी लोग कलश जल शोभा यात्रा में भाग लेकर कलश उठा सकते हैं। इसके लिए व्यवस्था व उपलब्धता के अनुरूप वस्त्र व कलश की व्यवस्था स्वयं कलश उठाने वाले श्रद्धालु भक्त को ही करना है।
कलश जल शोभा यात्रा में शामिल होने से पहले अपने-अपने घर से श्रद्धालु भक्तगण शुद्ध भोजन करके आएंगे। कलश जल शोभायात्रा पाल्हे जतपुरा गांव स्थित यज्ञ स्थल से चलकर राष्ट्रीय राजमार्ग 75 से उसका कला, जंगीपुर, पेट्रोल पंप, हेन्हो मोड़ अहिपुरवा मोड़, बस स्टैंड, चेचरिया होते हुए ऐतिहासिक श्री बंशीधर मंदिर पहुंचेगी। मंदिर में पूजन-अर्चन के बाद वापसी में यज्ञ स्थल के दक्षिण से गुजरी बांकी नदी से सभी श्रद्धालु भक्तगण विद्वान पंडितों के वैदिक मंत्रोच्चार के बीच अपने-अपने कलश में जल भरकर यज्ञशाला पहुंचेंगे। यज्ञशाला में कलश स्थापित किया जाएगा। यज्ञ को लेकर आगामी 23 अक्टूबर को कलश जल शोभा यात्रा निकाली जाएगी तथा 28 अक्टूबर को यज्ञ की पूर्णाहुति होगी।
कलश जल शोभा यात्रा में राज्य के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन भी भाग लेंगे। वहीं 27 अक्टूबर को आयोजित अंतरराष्ट्रीय धर्म सम्मेलन में राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शामिल होंगे।
मानव जीवन पर अन्न और संग का गहरा प्रभाव :- जीयर स्वामी
राजा एवं प्रजा दोनों भोगते हैं एक-दूसरे के कर्मों का परिणाम मनुवादिता के सिद्धान्त से ही संचालित होती है मानवता मन नहीं, बुद्धि और विवेक से लें कोई निर्णय
मानव जीवन पर अन्न और संग का गहरा प्रभाव होता है। हम जैसा अन्न ग्रहण करते हैं वैसा मन बनता है। जैसी संगति करते हैं, वैसा आचरण होता है। इसलिए दुष्टों का अन्न और संग दोनों विनाशकारी होता है।
श्री जीयर स्वामी जी ने श्रीमद् भागवत महापुराण कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अधर्म, अनीति और अन्याय के सहारे कुछ समय के लिये समाज में वर्चस्व कायम किया जा सकता है, लेकिन यह स्थाई नहीं हो सकता।
नीति, न्याय और सत्य ही स्थायित्व देता है। श्री स्वामी ने कहा कि भीष्म पितामह 58 दिनों से वाण-शैया पर लेटे थे। उन्हें याद कर कृष्ण की आँखों में आँसू आ गये। युधिष्ठिर ने आँसू का कारण पूछा। कृष्ण ने कहा कि कुरू वंश का सूर्य अस्ताचलगामी हैं। उनके दर्शन किया जाय। द्रौपदी सहित पाँचों पाण्डव वहाँ पहुँचे। श्री कृष्ण के आग्रह पर भीष्म राजधर्म और राजनीति का उपदेश देने लगे। द्रौपदी मुस्कुरा दी। भीष्म ने मुस्कुराने का राज पूछा। द्रौपदी ने कहा कि आज आप उपदेश दे रहे हैं कि 'अन्याय नहीं करना चाहिए। अन्यायी का साथ नहीं देना चाहिए और अन्याय होते देखना नहीं चाहिए। चीर-हरण के वक्त आपकी यह नीति और धर्म कहाँ थे?' भीष्म ने कहा कि उस वक्त अन्न और संग के दोष का मुझ पर प्रभाव था।
मनुष्य अर्थ (वित्त) का दास होता है। अर्थ किसी का दास नहीं होता। उन दिनों में दुर्योधन के अर्थ से पल रहा था। गलत लोगों का अन्न और संग ग्रहण नहीं करना चाहिए। धीर और वीर पुरूष को भाग्यवादी नहीं, कर्मवादी हो।
महाप्रलय के समय एक मात्र परमात्मा ही विराजमान रहते हैं। वे सारे अवतारों के कर्ता हैं:- श्री जीयर स्वामी
परमात्मा के अनन्त अवतार हैं। जब-जब पृथ्वी पर उनकी आवश्यकता होती है, वे अवतरित होते हैं। महाप्रलय के समय एक मात्र परमात्मा ही विराजमान रहते हैं। वे सारे अवतारों के कर्ता हैं। परमात्मा वस्तुतः अवतार नहीं, अवतारी हैं। समस्त अवतार परमात्मा (नारायण) से ही निःसृत होते हैं। सभी अवतार परमात्मा के रूप हैं। वे परमात्मा से अभिन्न हैं।
श्री जीयर स्वामी ने भागवत कथा के सूत-शौनक संवाद की चर्चा करते हुए कहा कि धान का एक बीज बोने से सैकड़ों दाने आ जाते हैं। बीज रूप में बोया गया धान का मूल अलग है और उससे प्राप्त दाना का स्वरूप अलग है। उसी तरह परमात्मा मूल से ही अनेक रूपों में अवतार लेते हैं। परमात्मा के अनेक अवतारों को आश्चर्य नहीं मानना चाहिए। उन्होंने कहा कि परमात्मा के अनन्त अवतार हैं। इनमें एक हजार विशेष हैं। उनमें एक सौ आठ प्रसिद्ध है, जिनमें 24 अवतार प्रमुख है। इनमें से चार अवतारों की विशेष प्रसिद्धि है। इन चार अवतारों में भी दो बहुचर्चित हैं। इनमें से भी एक अवतार को सर्वाधिक प्रमुख माना गया है, जो कृष्णावतार है। स्वामी जी ने कहा कि चारों युगों की अवधि अलग-अलग है।
कलियुग का काल चार लाख बतीस हजार वर्ष, द्वापर का आठ लाख चौसठ हजार, त्रेता का बारह लाख छियान्वे हजार और सत्युग का सत्रह लाख अट्ठाइस हजार है।
स्वामी जी ने कहा कि छल-छद्म और पाखंड से बड़ा आदमी बनने वाला बहुत दिनों तक टिक नहीं पाता, क्योंकि उसकी बुनियाद कमजोर होती है। वह हमेशा निडर होने का दिखावा करता है, लेकिन भीतर से काफी कमजोर होता है।