राजद प्रदेश महासचिव डी0एन0 सिंह ने रहीम दास जी की जयंती पर खिराजे अक़ीदत पेश करते हुए कहा के रहीम या अब्दुल रहीम खान- ए-खानाँ एक मध्य कालिन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषीविद,कला प्रेमी एंव विद्वान थे। वे सभी धर्मो के प्रति सम्मान भाव रखते थे। 17 दिसम्बर 1556 को लाहौर में मुगल साम्राट अकबर के दरवारी वैरम खाँ के घर में रहीम का जन्म हुआ था। रहीम के बचपन में ही पिता की मृत्यु के बाद सम्राट अकबर ने लालन पालन किया। रहीम अनेकों भाषा के जानकार थे। वे मुस्लिम होकर भी श्री कृष्ण केभक्त थे। रहीम दोहावली में उनके सरल भाषा का प्रयोग आज भी भारतीय लोगों के जवान पर वसती है। जैसे -- 1 ) समय पाय फल होत हैं समय पाये झरी जाए, सदा रहे नहीं एक सी का रहीम पछताए ।(2) रहीमन धागा प्रेम का मत तोडो चटकाए, टूटे पे फिर ना जुड़े जुटे गाँठ परिजात। (3) रहीमन वहाँ न जाइये जहाँ कपट को हेत, हम तो ढारत ढेंकुली, शिंचय अपने खेत। इत्यादि। इस महान राष्ट्रवादी कवि 564 वें जयंती पर श्रद्धापूर्ण श्रद्धाशुमन अर्पित करते हुए शत शत नमन करते हैं।