रिपोर्ट। निखिल कुमार
पेटरवार। बोकारो जिले के पेटरवार क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों में अश्विन मास की कृष्णपक्ष अष्टमी को माताओं ने अपने पुत्र की सलामती के लिए जीवित पुत्रिका व्रत का निर्जला उपवास रखा। बुधवार की शाम में नदी व तालाब में स्नान कर संतान की दीर्घायु, आरोग्य व कल्याण के लिए पूजा-अर्चना की। इस व्रत के संदर्भ में ऐसी मान्यता है कि जीवित्पुत्रिका या जिउतिया व्रत पुत्र की प्राप्ति व उसकी लंबी उम्र की कामना के लिए भी किया जाता है। इस दौरान पेटरवार के ओरदाना पंचायत के ओबरा में जिउतिया पर्व भव्य आयोजन किया गया। इस दौरान ओबरा के स्थानीय लोगों ने बताया कि लोक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में एक चील व सियारिन थी। महिलाओं ने व्रत के मौके पर की दान देकर पितृपक्ष के मध्य में पुत्र की कामना व कुशलता के लिए माताएं जिउतिया का व्रत करती हैं। इधर बुधवार को माताएं जिउतिया व्रत का समापन हुआ।
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत से जुड़ी है। अश्वत्थामा ने बदले की भावना से उत्तरा के गर्भ में पल रहे पुत्र को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना जरुरी था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों के फल से उस बच्चे को गर्भ में ही दोबारा जीवन दिया। गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर पुन: जीवन मिलने के कारण उसका नाम जीवित पुत्रिका रखा गया। वह बालक बाद में राजा परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
पूजा में कुंदन महतो, नागेश्वर महतो,सतीश कुमार महतो, सिकंदर महतो, जयनारायण महतो, सकुन्द महतो, नकुल महतो, रतनलाल महतो, टिकेश्वर, महतो, बिपिन महतो सहित पुजारी मौजूद रहे।