भंडरिया(गढ़वा):
हूल दिवस के अवसर पर भंडरिया प्रखंड के बंगाली डेरा में वीर संथालों को किया गया नमन।
पंडित हर्ष द्विवेदी कला मंच, नवादा (गढ़वा) द्वारा हूल क्रांति के महानायकों की स्मृति में बंगाली डेरा (जनेवा) में "हूल दिवस" का आयोजन बड़े उत्साह और गर्व के साथ किया गया।
इस अवसर पर सिद्धो-कान्हू की जीवंत झाँकी स्थानीय ग्रामीणों द्वारा प्रस्तुत की गई, जिसने उपस्थित जनसमूह को गहराई तक प्रभावित किया।
पंडित हर्ष द्विवेदी कला मंच के निदेशक नीरज श्रीधर 'स्वर्गीय' ने कहा कि हूल क्रांति देश की पहली संगठित जनजातीय क्रांति थी, जिसमें सिद्धो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो जैसे वीरों और वीरांगनाओं ने मातृभूमि के लिए बलिदान दिया।
कार्यक्रम संयोजक पवन कुमार पांडेय ने कहा कि हमारे अमर बलिदानियों के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
कला-साधक अशोक कुमार सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि हूल दिवस पर हम उन महान संथाल बलिदानियों को सादर नमन करते हैं, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी।
इस आयोजन में दर्जनों ग्रामीणों और समाजसेवियों ने भाग लिया, जिनमें प्रमुख रूप से राजेश्वर सिंह, देवधारी सिंह, विजय सिंह, हरदेव सिंह, बासदेव सिंह, राजकुमार सिंह, कामेश्वर सिंह, नंद नायक, विद्यानंद सिंह, अरुण नायक, प्रद्युम्न सिंह आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
महिला प्रतिभागियों में पूनम देवी, अनिता देवी, पतरमानी देवी, सकुन्ती देवी, चम्पा देवी, बासमती देवी, सुनीता कुमारी आदि ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से कार्यक्रम को जीवंत बनाया।
ग्रामीणों द्वारा पारंपरिक वेशभूषा और शस्त्रों के साथ दी गई प्रस्तुति ने सिद्धो-कान्हू के बलिदान को मानो पुनर्जीवित कर दिया।