कांडी : गढ़वा जिला के कांडी प्रखंड अंतर्गत शिवपुर पंचायत में एक तथाकथित संस्था व उसके स्वयंभू अध्यक्ष व अन्य कर्ताधर्ता का सतबहिनी झरना तीर्थ में पूजा पर रोक अपने आप में राजनीति से प्रेरित आरोप है। जो एक नेता विशेष के पक्ष में दिया गया बयान के अलावे कुछ नहीं। इस तरह का आरोप आचार संहिता का उल्लंघन है। जिससे संबंधित कार्रवाई संभावित है।
जब वहां पूजा पर रोक है तो प्रतिदिन स्थानीय व 5-7 गाड़ियों में बाहर से आकर जो लोग सभी मंदिरों में पूजा अर्चना किया करते हैं वह क्या है? लोक आस्था के महापर्व छठ में करीब एक लाख निराहार व्रति जो यहां सामुहिक महा अनुष्ठान करने आ रहे हैं उसे पूजा नहीं कहते हैं क्या? इन बोलते तथ्यों के आलोक में नाम मात्र की सेना का आरोप समझ से परे है।
मां सतबहिनी झरना तीर्थ एवं पर्यटन स्थल विकास समिति के रहते आपने एक बार भी आपकी गंगा आरती व भक्ति जागरण करने की जुर्रत नहीं की है।
जिस महाव्रत में स्वयं माता बहनों की गूंज रहे छठ गीतों से भक्ति की धारा प्रवाहित हो रही हो वहां उन्हें डिस्टर्ब करने के लिए आपके जागरण नामक भोंडा प्रदर्शन करने की क्या जरूरत है। यह आपके शागिर्दो को स्वीकार हो सकता है समिति को नहीं। आपको बहुत पहले समिति का संकल्प बता दिया गया है कि अन्य तरह का हित साधने के लिए यहां किसी का झंडा बैनर लगाकर कुछ नहीं कर सकते तो फिर बार बार ओर करने की क्या जरूरत है। रह गई किसी के पृष्ठ पोषण के लिए राजनीति करने की बात तो टांगे ऊपर करके उड़ने से उसपर आसमान नहीं रूका करता।
यह तो आलाकमान ने भी बखूबी देख समझ लिया है।
रह गई समिति के सम्मानित अध्यक्ष नरेश प्रसाद सिंह पर कटाक्ष करने की बात तो जो सतबहिनी में उनके जैसा निजी संपति के 30 लाख रुपए खर्च करके यहा का विकास करके बोलता तो शोभा देता। उधार का बयान काहे का? बेहतर होता समिति का विरोध करनेवाले आईना देखकर बात करते।
सतबहिनी झरना तीर्थ में बैठक करके उक्त बयान देनेवालों में अध्यक्ष नरेश प्रसाद सिंह, सचिव पं. मुरलीधर मिश्र, कोषाध्यक्ष विभूति नारायण दुबे, जयकिशुन राम, प्रियरंजन सिन्हा, गोरखनाथ सिंह, आतिश कुमार सिंह, सुदर्शन तिवारी, हरिनाथ चंद्रवंशी, करंजू पाल, देवीदयाल राम सहित कई लोगों का नाम शामिल है।