गढ़वा : विगत 1 सितंबर से स्थायीकरण की मांग को ले गढ़वा जिले के सहायक पुलिस कर्मी आंदोलनरत हैं। इन सहायक पुलिस कर्मियों ने सरकार द्वारा स्थायीकरण की मांग को नहीं मांगे जाने पर नाराजगी प्रकट करते हुए उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है। साथ ही गढ़वा जिले के सभी आंदोलित सहायक पुलिस कर्मी आज मुख्यमंत्री का घेराव करने रांची रवाना हो चुके हैं।
दरअसल सरकार ने 2017 में 3 वर्ष पूर्व गढ़वा जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों से 200 सहायक पुलिस कर्मियों की नियुक्ति शारीरिक एवं लिखित परीक्षण के बाद किया था, जिसमें 33% महिलाएं शामिल थी। तब सरकार के इस निर्णय की भरपूर सराहना हुई थी क्योंकि जिन युवक-युवतियों की इस बल में नियुक्ति हुई थी, वे सभी सुदूरवर्ती अति नक्सल प्रभावित इलाके के नौजवान थे, जिन्हें भटकने की पूरी संभावना थी।
उस समय बहाल किए गए इन 200 युवक-युवतियों में सभी गरीब परिवार के वैसे नौजवान हैं जिन के समक्ष रोजी - रोटी की भारी संकट थी। ऐसे में इनका जिस हिसाब से पुलिस विभाग के द्वारा पारदर्शिता पूर्ण चयन किया गया था काफी सराहना हुआ था। झारखंड की तत्कालीन रघुवर सरकार ने इन सहायक पुलिस कर्मियों को स्थायी करण का भरोसा दिया था। उन्हें स्वस्थ किया गया था कि 3 साल पश्चात इनकी सेवा स्थायी कर दिया जाएगा, मगर जब 3 साल अगस्त माह में पूरा हो गए तथा आश्वासन के अनुरूप इन्हें रेगुलर नहीं किया गया तो सहायक पुलिस कर्मी आंदोलित हो उठे तथा पिछले 1 सितंबर से चरणबद्ध आंदोलन कर रहे हैं।
इस क्रम में स्थानीय जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंपने से लेकर सामूहिक अवकाश जैसे आंदोलन इनके द्वारा किया जा रहा है।
इस दौरान जब इनकी बात जिला स्तर पर नहीं सुनी गई तो आज सहायक पुलिस कर्मी रांची मुख्यमंत्री का घेराव करने रवाना हो गए हैं। जानकारी अनुसार रांची जाने के क्रम में ने पुलिस विभाग के अधिकारियों द्वारा रोकने का प्रयास किया गया सहायक पुलिस कर्मियों का कहना था कि जब तक पुलिस अधीक्षक उनसे वार्ता नहीं करेंगे तब तक वे लोग रांची जाने से नहीं मानेंगे लिहाजा वे लोग रांची रवाना हो चुके हैं।
इन आंदोलित सहायक पुलिस कर्मियों का प्रमुख मांग झारखंड पुलिस के समान सेवा स्थायी करने का है। इसके पीछे उनका तर्क है की सरकार ने उनकी नियुक्ति नक्सल प्रभावित इलाके में सूचना का आदान - प्रदान करने के लिए उनके गृह थाने के अंदर किया था। मगर नियुक्ति के बाद उनसे झारखंड पुलिस के संवर्ग के सभी तरह का ड्यूटी लिया जा रहा है।
उन्हें उनसे पेट्रोलिंग पार्टी से लेकर नक्सल प्रभावित इलाके के ऑपरेशन में भी काम दिया जा रहा है। यहां तक कि ट्रैफिक ड्यूटी और वीआईपी की सुरक्षा में भी ने लगाया जाता है। ऐसी स्थिति में सरकार जब आरक्षी की तरह इन्हें इस्तेमाल कर रहा है तो उसे उसकी सेवा आरक्षी संवर्ग के रूप में किए जाने की इनकी मांग कहीं से भी अनुचित नहीं है।