बंशीधर नगर :
श्री बंशीधर नगर प्रखंड के पाल्हे जतपुरा गांव में भागवत कथा के दौरान सोमवार को श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि दूसरों की तरफ देखने वाला कभी कर्तव्यनिष्ठ हो ही नहीं सकता। क्योंकि दूसरों का कर्तव्य देखना ही अकर्तव्य है। गृहस्थ हो अथवा साधु जो अपने कर्तव्य का ठीक से पालन करता है वही श्रेष्ठ है।
अपने लिए कर्म करने से अकर्तव्य की उत्पत्ति होती है। अपने कर्तव्य का ठीक पालन करने से वैराग्य हो जाता है। यदि वैराग्य ना हो तो समझना चाहिए कि हमने अपने कर्तव्य का ठीक पालन नहीं किया। अपने कर्तव्य का ज्ञान हमारे में मौजूद है, परंतु कामना और ममता के कारण हम अपने कर्तव्य का निर्णय नहीं कर पाते। चारों वर्गों और आश्रमों में श्रेष्ठ व्यक्ति वही है जो अपने कर्तव्य का पालन करता है।
जो कर्तव्यच्युत होता है वह छोटा हो जाता है। संसार की सभी संबंध अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए ही है, ना कि अधिकार जमाने के लिए।
:- कर्तव्य का पालन नहीं करना ही है अशांति की वजह:- श्री स्वामी जी ने कहा कि एक मात्र अपने कल्याण का उद्देश्य होगा तो शास्त्र पढ़े बिना भी अपने कर्तव्य का ज्ञान हो जाएगा। परंतु अपने कल्याण का उद्देश्य ना हो तो शास्त्र पढ़ने पर भी कर्तव्य का ज्ञान नहीं होगा। उल्टे अज्ञान बढ़ेगा कि हम जानते हैं। वर्तमान समय में घरों में, समाज में जो अशांति, कलह, संघर्ष देखने में आ रहा है उसमें मूल कारण है कि लोग अपने अधिकार की मांग तो करते हैं पर अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते। कोई भी कर्तव्य, कर्म छोटा या बड़ा नहीं होता।
छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा कर्म कर्तव्य मात्र समझ कर (सेवा भाव से) करने पर समान ही है। जिससे दूसरों का हित होता है वही कर्तव्य है और जिससे किसी का भी अहित होता है वह अकर्तव्य है।