गढ़वा : रसूखदार अधिकारियों के लिए सूचना का अधिकार कोई मायने नहीं रखता है। इसका जीवंत मिसाल गढ़वा नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी सुशील कुमार है।
दरअसल गढ़वा सदर प्रखंड के भरटिया ग्राम निवासी मयंक कुमार तिवारी ने सूचना अधिकार अधिनियम के तहत सूचना मांगी थी। मगर नगर परिषद की ओर से इस मामले में उपलब्ध कराई गई सूचना पूरी तरह से उन्हें भ्रामक लगी। जिससे असंतुष्ट होकर श्री तिवारी ने उपलब्ध कराई गई सूचना पर आपत्ति दर्ज कराई। बावजूद जब उन्हें स्पष्ट सूचना नहीं मिली तो उन्होंने उप विकास आयुक्त सह प्रथम अपीलीय पदाधिकारी गढ़वा के पास अपील की।
वास्तविक व स्पष्ट सूचना उपलब्ध कराने की मांग सूचना अधिकार अधिनियम के तहत उप विकास आयुक्त से किया गया।
अपीलकर्ता श्री तिवारी के आवेदन के आधार पर उप विकास आयुक्त गढ़वा ने कई मर्तबा कार्यपालक कार्यपालक पदाधिकारी सह जन सूचना पदाधिकारी, नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी को पत्र प्रेषित कर अपत्ति दुर करने का निर्देश दिया।
बावजूद उपविकास आयुक्त के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए अभी तक आपत्ति का संपादन कार्यपालक पदाधिकारी द्वारा नहीं किया गया है।जबकि उप विकास आयुक्त ने अलग-अलग तिथि को पत्र जारी कर श्री तिवारी के सूचना अधिकार अधिनियम के तहत प्रद्त अधिकारों के तहत जारी आपत्ति का निराकरण करने का निर्देश भी दिया है।
यहां तक की श्री तिवारी ने इस मामले को लेकर उपायुक्त गढ़वा के जनता दरबार में भी फरियाद लगाई। जनता दरबार में दिए गए आवेदन के आलोक में उपायुक्त गढवा के द्वारा भी कार्यपालक पदाधिकारी गढ़वा को निर्देश दिया गया।
मगर उसका भी इस रसुखदार कार्यपालक पदाधिकारी पर कुछ भी असर नहीं हुआ।
जहां तक कार्यपालक पदाधिकारी सुशील कुमार के रसुखदारी का प्रश्न है, जब से गढ़वा में पदस्थापित है, इनका विवाद से चोली दामन का रिश्ता रहा है। इनके कार्यकाल में नगर परिषद के द्वारा दानरो नदी में कचरा फेंकवाकर पूरे नदी को प्रदूषित किया जा रहा है। जब इसका विरोध स्थानीय लोगों द्वारा किया गया तो ये प्राथमिकी दर्ज करवाकर शिकायतकर्ता को प्रताड़ित करने से भी नहीं चुके हैं। फिलहाल उनके खिलाफ ताजा टेंडर विवाद भी चल रहा है, जिसमें इनपर एक संवेदक द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने के लिए आवेदन किया गया है।
जहां तक इनके रसूखदार होने का प्रश्न है इसका आकलन इससे किया जा सकता है कि इनका तबादला नगर विकास विभाग द्वारा विगत 30 सितंबर को हजारीबाग किया गया था।
मगर इन्होंने रसुखदारी के बल पर 11 दिन बाद हीं गढ़वा में कार्यपालक पदाधिकारी के पद पर अपना पुनः स्थानांतरण करवा लिया है।