गढ़वा: लॉक डाउन में प्रायः सभी कार्य, बाधित हैं या फिर प्रभावित हो रहे हैं। इस दौरान अब तन ढकना भी मुश्किल हो गया है। सरकार भी गजब कहर ढा रही है। शराब की छूट देकर कपड़े उतारने-फाड़ने की इजाजत तो दे दी है लेकिन तन ढकने का आर्डर नहीं दी है। अब लोग सरकार की ओर ललचायी नजरों से देख रहे हैं। ताकि उन्हें तन ढकने की इजाजत मिले।
20 मार्च के बाद से लोग नए कपड़ों की खरीदारी नहीं कर पा रहे हैं। लॉक डाउन वन से फोर के बाद धीरे - धीरे कर कई प्रतिष्ठान खोल दिए गए। परंतु। इजाजत नहीं मिली तो कपड़े की दुकानों को। जबकि जीवन की तीन मूलभूत आवश्यकताओं में कपड़ा दूसरे स्थान पर काबिज है। कपड़े के बिना तन की सुरक्षा और प्रतिष्ठा दोनों हाशिए पर है, परन्तु सरकार कहती है कपड़ा ना बाबा ना।
वो कोरोना का भंडार है। उसे छूना मत।
विचारनेमि कहते हैं तन पर पड़े-पड़े कपड़े गलेंगे, फटेंगे। फिर धीरे - धीरे तन के एक-एक अंग का अनावरण होने लगेगा। तब रास्ता एक ही बचता है पूर्व पाषाणकाल की व्यवस्था। केला के पत्ते, जानवर के चमड़े। लेकिन इससे पर्यावरण और वन्य प्राणियों का हनन न हो जाएगा? मुकदमा भी होगा और जेल भी। इसलिए
हे सरकार ! आदेश दो तन ढकने का।