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चैंबर के जल्दीबाजी में लिए गए अव्यवहारिक निर्णय से लुकाछिपी का खेल, खेलने को मजबूर हैं व्यवसायी

location_on गढ़वा access_time 20-Jul-20, 04:32 PM visibility 605
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																																				चैंबर के जल्दीबाजी में लिए गए अव्यवहारिक निर्णय से लुकाछिपी का खेल, खेलने को मजबूर हैं व्यवसायी
सुतरी पट्टी के एक दुकान की आज की तस्वीर


आयुष तिवारी check_circle
संवाददाता



गढ़वा : विश्वव्यापी कोरोना महामारी से गढ़वा जिला भी पूरी तरह से प्रभावित हो गया है। जिले में 278 कोरोना मरीज चिन्हित हो चुके हैं। पिछले 1 सप्ताह से तो कोरोना की रफ्तार इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि इस दौरान कोरोना संक्रमितों की संख्या डेढ़ सौ के करीब पहुंच चुका है। अब तो हालत यह है कि प्रतिदिन दोहरे आंकड़े में कोरोना पॉजिटिव मरीज सामने आने लगे हैं, जिला मुख्यालय गढ़वा शहर की हालत तो और भी बदतर है। शहर का कोई ऐसा इलाका नहीं जहां कोरोना मरीज सामने नहीं आए हो। हालत ये है कि कल ही शहर के विभिन्न इलाकों में आधा दर्जन कोरोना वायरस पॉजिटिव मरीज पाए गए। अब तक शहर में करीब 30 मरीज मिल चुके हैं। ऐसे में संक्रमण के दौर से गुजर रहे गढ़वा जिले को इस संकट से कैसे उबारा जाए इसे लेकर प्रशासनिक महकमा हो अथवा व्यवसायिक संगठन सभी परेशान हैं।
एक तरफ करोना से बढ़ता खतरा तो दूसरी ओर लंबे समय से चले आ रहे करोना से उत्पन्न आर्थिक मंदी व रोजगार से उबारने का संकट भी है। यही कारण है कि दिल्ली - मुंबई जैसे सर्वाधिक कोरोना वायरस से संक्रमित इलाकों में भी लॉकडाउन के बजाय अनलॉक डाउन का निर्णय लेते हुए सरकार ने कुछ होटल रेस्टोरेंट जैसे व्यापारिक प्रतिबंधों को छोड़कर आम लोगों की जिंदगी को जीने की सहारा के लिए कारोबार की छूट देने का रिस्क ले रखी है। क्योंकि सरकार और पूरा विश्व यह मानकर चल रहा है कि कोरोना के संकट से उबरने में और लंबा वक्त लग सकता है और इतने लंबे वक्त तक आर्थिक गतिविधि पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। इसलिए सरकार ने कंटेंटमेंट जोन जैसे इलाके को व्यवसायिक गतिविधि के लिए प्रतिबंधित करते हुए शेष इलाकों में कारोबार का छूट दे रखा है।
ऐसे में यह साफ हो चुका है कि अब सिर्फ कोरोना को ध्यान में रखकर व्यवसायिक गतिविधियों को बंद नहीं रखा जा सकता। बल्कि लोगों को जीने के लिए उनकी जरूरतें की पूरा करने उनके हाल रोजगार को मुहैया कराने से जुड़े मामले पर सरकार के गाइडलाइन के अनुसार किसी भी प्रकार के निर्णय पर विचार करना होगा। आज हम लोगों को खबर मिली कि शहर के कई इलाकों में ग्राहकों को देखकर लोग बंद शटर को खोल कर सामान बेच रहे हैं, तो हम लोगों ने एक जिम्मेवार चैनल के नाते विचार किया कि, आखिर क्या कारण है 2 दिन पहले व्यवसायियों का संगठन चेंबर ने जो निर्णय लिया उसके निर्णय को तीसरे ही दिन खारिज करते हुए व्यवसायियों द्वारा दुकान खोलने का लुक्का छुपी का खेल खेला जा रहा है? इसे ध्यान में रखते हुए हम लोगों ने शहर के कुछ प्रतिष्ठित व्यवसायियों से इस मुद्दे पर बातचीत किया।
बातचीत के दौरान कुछ ऐसी राय व्यवसायियों ने दी है। व्यवसायियों ने अपना नाम सार्वजनिक नहीं करने का अनुरोध किया इसलिए हम लोगों ने उनसे अपने किए वादे के अनुसार यहां उनकी राय को रखा है। शहर के भीतरी बाजार इलाके के एक व्यवसायी ने कहा कि दरअसल चेंबर ने प्रशासन के दबाव में आकर 31 जुलाई तक बंद करने का जल्दी बाजी में निर्णय लिया है यह निर्णय लेने का चेंबर को बिल्कुल अधिकार नहीं था। खासकर तब -तक, जब - तक की वह शहर के व्यवसायियों की बैठक कर उनकी राय नहीं जान लेता। व्यवसायियों की राय जानकर ही चेंबर को 31 जुलाई तक व्यापार बंद रखने का निर्णय लेना चाहिए था। उन्होंने कहा कि जरा सोचिए बड़ी मशक्कत के बाद हम लोगों को दुकान खोलने की इजाजत झारखंड सरकार से पिछले दिनों ही मिली थी, ऐसे में हम लोग कुछ ही हफ्ते अभी दुकान खोले थे कि चेंबर ने बंद करने का निर्णय ले लिया।
ऐसे में हमारी स्थिति बड़ी बदतर है। क्योंकि हमारे दुकानों में जो दो चार कर्मचारी काम करते हैं, उनको हम अब किस मुँह से वेतन नहीं देंगे। आखिर उनका भी पेट भरने का सवाल है। हार्डवेयर से जुड़े एक व्यवसायी ने तो यहां तक कहा की यदि ऐसा नहीं होता तो मजबूर व्यवसायी अपनी दुकान का शटर गिराकर ग्राहकों का इंतजार करते नहीं देखे जाते तथा लोगों की निगाह से बचते हुए ग्राहक के आते ही उसे लपक लेने के अंदाज में चोर की तरह अपनी ही दुकान की शटर उठाकर सामग्री बेचने को मजबूर नहीं होते। एक प्रतिष्ठित व्यवसायी ने बाजार के एक इलाके का तस्वीर हमारे प्रतिनिधि को भेजते हुए कहा कि देखिए भाई चेंबर का बंदी का निर्णय तो अच्छा है, मगर हम लोगों को इसे लेकर दिक्कत यह है कि यदि बंद है तो सभी दुकानें बंद रहना चाहिए यह लुका छिपी का खेल नहीं चलना चाहिए।
वहीं शहर के एक अन्य प्रतिष्ठित कपड़ा व्यवसायी ने हमारे चैनल के प्रतिनिधि से तो, गढ़वा चेंबर पर ही सवाल खड़ा कर दिया तथा कहा कि सिर्फ प्रशासन की नजर में चेंबर है व्यापारियों के नजर में चेंबर नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि गढ़वा की वर्तमान स्थिति में दुकान बंद रहना चाहिए मगर ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम बंद रखें और बाकी लोग मजा मारे। व्यवसायियों की प्रतिक्रिया से भी साफ है कि गढ़वा में दुकान खोलने कि जो हमें खबर मिली है वह पक्की है तथा लुका छुपी का खेल इस मामले में जारी है। लगे हाथ उन्होंने यह भी कहा की दुकान तो बंद है मगर कंस्ट्रक्शन का काम बंद नहीं है। ऐसे में किसी को पाइप चाहिए किसी को सीमेंट चाहिए किसी को और कुछ चाहिए तो आखिर वह कहीं से सामान खरीदेगा ऐसी स्थिति में दुकान को पूरी तरह से बंद कैसे रखा जा सकता है? इसलिए बंद का निर्णय अव्यावहारिक है।
ऐसे में गढ़वा चैंबर ने जो व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को आगामी 31 जुलाई तक बंद रखने का निर्णय लिया है वह निर्णय शहर के सभी व्यवसायियों को स्वीकार नहीं है, यह कहना अन्यथा नहीं होगा। अन्यथा क्या कारण है कि निर्णय लेने के तीसरे ही दिन शहर में व्यवसायिक प्रतिष्ठान खोलने का लुका छुपी खेल शुरू हो जाता? मिसाल के तौर पर गढ़वा जिला स्वर्णकार संघ ने गढ़वा चेंबर से एक दिन पहले ही सर्राफा बाजार को बंद करने का निर्णय लिया था चुकी यह निर्णय संगठन ने अपने व्यवसायियों को विश्वास में लेकर किया था नतीजा है कि शहर में उस निर्णय को लिए 3 दिन गुजर गए हैं, मगर एक भी सर्राफा दुकान की लुका छुपी खोलने का खेल खेलने का शिकायत सामने अब तक नहीं आया है।
शायद गढ़वा चेंबर ऑफ कॉमर्स को ऐसा निर्णय लेने से पहले कोरोना संक्रमित इलाके को कंटेंटमेंट जोन चिन्हित कर, व्यवसायिक गतिविधि को प्रतिबंधित करते हुए शेष इलाके में ऑड इन वन के तर्ज पर कुछ नियम तय कर दुकान खोलने का व्यवहारिक निर्णय लेना चाहिए था, जिससे व्यवसायी ग्राहक सभी का काम भी चलता रहता और व्यवसायियों को लुका छुपी का दुकान खोलने का खेल भी खेलने को मजबूर नहीं होना पड़ता।




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