बंशीधर नगर :
---श्री राम का चरित्र मानव जीवन का परम पाथेय है-जगद्गुरु रत्नेश जी महाराज
श्री बंशीधर नगर-प्रखंड के पाल्हे जतपुरा ग्राम में चल रहे प्रवचन के दौरान जगतगुरु रत्नेश जी महाराज ने कहा कि श्री रामायण श्रेष्ठ इतिहास है क्योंकि इसमे श्रीजानकी जी की करुणा का वर्णन है.श्रीजानकी जी स्वयं को बन्दिनी बनाकर रावण जैसे दुष्ट जीव का उद्धार करा देती है.
संसार की विभिन्न भाषाओं में जो उच्चकोटि के महाकाव्य हैं उनमें महर्षि वाल्मीकि प्रणीत रामायण का स्थान सर्वोच्च है.वाल्मीकि रामायण में जिस आस्तिकता, धार्मिकता, प्रभुभक्ति, उदात्त एवं दिव्य भावनाओं और उच्च नैतिक आदर्शों का वर्णन मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है.रामायण में गृहस्थ जीवन की सर्वश्रेष्ठता, उपादेयता, तथा महत्ता को प्रतिपादित किया गया है. आदर्श पिता, आदर्श माता, आदर्श भ्राता, आदर्श पति, आदर्श पत्नी, आदर्श राजा आदि सभी का यथार्थ चित्रण किया गया है. ऐसा प्रतीत होता है कि सर्वोत्कृष्ट आदर्श की स्थापना के लिए ही महर्षि वाल्मीकि ने इस काव्य की रचना की. यह भारतीयों का आचारग्रन्थ भी बन गया है.वर्तमान में भगवान "श्रीराम" के चरित्र पर आधारित जितने भी ग्रन्थ उपलब्ध हैं, उन सभी का मूल महर्षि वाल्मीकि कृत वाल्मीकि रामायण ही है. वाल्मीकि रामायण के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि को संसार में आदिकवि माना जाता है और इसीलिये यह महाकाव्य संसार का आदिकाव्य है. इस महाकाव्य को भारत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय निधियों में से एक कहा जा सकता है. महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित पावन ग्रंथ "रामायण" एक ऐसा ग्रंथ है जिसने प्रेम, त्याग, तप, भ्रातृत्व, मित्रता एवं सेवक के धर्म की परिभाषा सिखाई है. वाल्मीकि जी के जीवन से बहुत सीखने को मिलता है. उनका व्यक्तित्व असाधारण था. उन्होंने अपने जीवन की एक घटना से प्रेरित होकर अपना जीवन पथ ही बदल दिया, जिसके फलस्वरूप वे महान पूज्यनीय कवियों में से एक बनें.यही चरित्र उन्हें महान बनाता है और हमें उनसे सीखने के प्रति प्रेरित करता है.महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना करके हर किसी को सद्मार्ग पर चलने की राह दिखाई.

---संसार की जिन वस्तुओं को हम महत्त्व देते हैं, उनका काम यही है कि वे हमें परमात्मप्राप्ति नहीं होने देंगी - श्री जीयर स्वामी
श्री बंशीधर नगर-प्रखंड के पाल्हे जतपुरा ग्राम में चल रहे प्रवचन के दौरान श्री श्री जीयर स्वामी जी ने कहा कि संसार की सत्ता बाधक नहीं है, प्रत्युत उसकी महत्ता का असर बाधक है. महत्ता का असर होनेसे गुलामी आ जाती है.संसार का संयोग अनित्य है और वियोग नित्य है. नित्यको स्वीकार करना मनुष्यका कर्तव्य है.संसार की जिन वस्तुओं को हम बड़ा महत्त्व देते हैं, उनका काम यही है कि वे हमें परमात्मप्राप्ति नहीं होने देंगी और खुद भी नहीं रहेंगी ! संसार असत्य हो अथवा सत्य हो, पर उसके साथ हमारा सम्बन्ध असत्य है - यह निःसन्देह बात है.यह संसार मेंहदीके पत्तेकी तरह ऊपर से हरा दीखता है, पर इसके भीतर परमात्मरूप लाली परिपूर्ण है.हम स्वयं चेतन तथा अविनाशी हैं और सांसारिक वस्तुएँ जड़ तथा विनाशी हैं.दोनों की जाति अलग-अलग है. फिर दूसरी जाति की वस्तु हमें कैसे मिल सकती है? जैसे उदय होनेके बाद सूर्य निरन्तर अस्त की ओर ही जाता है, ऐसे ही उत्पन्न होने के बाद मात्र संसार निरन्तर अभाव की ओर ही जा रहा है.संसार विजातीय है और विजातीय वस्तुसे सम्बन्ध होता ही नहीं, केवल सम्बन्ध की मान्यता होती है. सम्बन्ध की मान्यता ही अनर्थका हेतु है, जिसके मिटते ही मुक्ति स्वतः सिद्ध है.शरीर संसार का निरन्तर परिवर्तन हमें यह क्रियात्मक उपदेश दे रहा है कि तुम्हारा सम्बन्ध अपरिवर्तनशील तत्त्व (परमात्मा) के साथ है, हमारे साथ नहीं; हम तुम्हारे साथ और तुम हमारे साथ नहीं रह सकते.अभी जो वस्तुएँ व्यक्ति आदि हमारे पास हैं, उनका साथ कब तक रहेगा - इस पर हरेक को विचार करने की जरूरत है.हम शरीर को रखना चाहते हैं, सुख- आराम चाहते हैं, अपने मनकी बात पूरी करना चाहते हैं - यह सब असत् का आश्रय है.जो किसी समय है और किसी समय नहीं है, कहीं है और कहीं नहीं है, किसी में है और किसी में नहीं है, किसी का है और किसीका नहीं है, वह वास्तव में है ही नहीं.वस्तु और व्यक्ति तो नहीं रहते, पर उनसे माना हुआ सम्बन्ध बना रहता है. यह माना हुआ सम्बन्ध ही जन्म-मरणका कारण होता है.सब संसार अपनी धुन में जा रहा है.हम ही उसको (जाते हुएको) पकड़ते हैं और फिर उसके छूटनेपर रोते हैं.जो संसार की गरज नहीं करता, उसकी गरज संसार करता है.परन्तु जो संसार की गरज करता है, उसको संसार चूसकर फेंक देता है! मनुष्य जब तक सांसारिक पदार्थों का सम्बन्ध रखेगा और उनकी आवश्यकता समझेगा, तबतक वह कभी सुखी नहीं होगा.संसार को सत्ता देने से संयोग-वियोग होते हैं और महत्ता देने से सुख-दुःख होते हैं.नाशवान् की दासता ही अविनाशी के सम्मुख नहीं होने देती. संसार की सामग्री संसार के काम की है, अपने काम की नहीं.संसार विश्वास करने योग्य नहीं है, प्रत्युत सेवा करने योग्य है.नाशवान् में अपनापन अशान्ति और बन्धन देनेवाला है.
असत्को असत् जाननेपर भी जब तक असत्का आकर्षण नहीं मिट जाता, तबतक सत्की प्राप्ति नहीं होती (जैसे, सिनेमाको असत्य जानने पर भी उसका आकर्षण रहता है).