गढ़वा: "इश्क़ करोगे तो दर्द मिलेगा, दर्द बड़ा तड़पाएगा" की तर्ज़ पर कोरोना का टेस्ट करोगे तो पॉजिटिव निकलेगा और पॉजिटिव; नेगेटिविटी फैलाएगा।
इसलिए कोरोना को हराना है, भगाना है तो कोरोना के टेस्ट बन्द होना चाहिए। दो दशमलव कुछ परसेंट की मृत्यु दर है, इलाज़ आपके पास है नहीं, लोगों को भर्ती करने के लिए जितने बेड चाहिए उतने तो लोगों के घरों में नहीं है।
क्वारंटाइन के नाम पर संक्रमित लोगों को आवारा मवेशियों की तरह पकड़ कर सरकारी स्कूलों और बारात घरों में बन्द कर देना।
कर्फ्यू में ढील देना, कर्फ्यू लगा देना। आज जूतों की दुकान खुलेगी, कल कपड़ों की। मॉल खुलेंगे, मॉल की दुकानें नहीं। 10 साल से नीचे वालों को होगा, 65 साल से ऊपर वालों को होगा।
इस प्रकार की नियमावली बनाने वाले बाबू लोग सिस्टम से भरोसा उठा देंगे। लोगों का दुनिया में भरम रहना चाहिए। ठीक है, हो गया लोगों का टाइम पास। मजा भी आ गया और पैसा भी वसूल हो गया। अब दुनिया को ढील देना चाहिए उसके हाल पर। नियम-कानून लोगों के लिए बने हैं, लोग इनके लिए थोड़े ही न बने हैं।
हालांकि ये खुदा ही जानता है कि भारत मे कोरोना जैसा कभी कुछ था भी या नही !
विचारनेमि का कहना है - यह जो भी था, जरूरी था। बीच-बीच में कोमा लगते रहना चाहिये, विराम जरूरी है।