कुली से साउथ के सुपरस्टार बनने की रजनीकांत की संघर्ष भरी दास्तान
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12-12-2020, 09:33 PM
फ़ाइल फ़ोटो रजनीकांत
जन्मदिन पर विशेष
रजनीकांत भारतीय सिनेमा के सबसे चमकदार सितारों में शामिल हैं। हिंदी सिनेमा में जिस तरह अमिताभ बच्चन सुपरस्टार हैं उसी तरह साउथ की फिल्मों खासकर तमिल फिल्मों में तो रजनी वर्चस्व है।
रजनीकांत को मैंने पहली बार अंधा कानून फिल्म में देखा था। उसमें अमिताभ बच्चन लीड रोल में थे, लेकिन रजनीकांत अपने छोटे रोल के बावजूद हिंदी सिनेमा के दर्शकों के दिमाग में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे। उनका सिगरेट पीने और चश्मा पहने की अनूठी अदा काफी लोगों को भा गई थी। उनका एक्शन भी जरा हट कर होने की वजह से लोगों को पसंद आया था ।
संघर्ष के बल पर पाया मुकाम
रजनीकांत का जन्म 12 दिसंबर, 1950 को बेंगलुरू में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनका असली नाम शिवाजी राव गायकवाड़ था। उनके पिता रामोजी राव गायकवाड़ हवलदार थे। चार भाई-बहनों में रजनीकांत सबसे छोटे थे। मां जीजाबाई की मौत के बाद उनका परिवार बिखर गया। घर की माली हालत ठीक नहीं थी। तब रजनीकांत ने कुली का काम शुरू किसा। इसके बाद पैसा कमाने के लिए वे बढ़ई का काम करने लगे। काफी समय बाद वह बेंगलुरू परिवहन सेवा (बीटीएस) में बस कंडक्टर बने। इस दौरान टिकट काटने और सिटी बजाने की अनूठी शैली के कारण वे लोकप्रिय थे।
कभी छोटे मोटे काम करने वाले रजनीकांत भारतीय सिनेमा में सबसे ज्यादा मेहनताना पाने वाला सुपरस्टार कैसे बने ये कहानी काफी दिलचस्प है साथ ही प्रेरणा देने वाली भी है उन्हें अभिनय में दिलचस्पी थी । इसके चलते उन्होंने 1973 में मद्रास फिल्म संस्थान में दाखिला लिया और अभिनय में डिप्लोमा लिया। फिल्म निर्देशक के बालाचंद्रन ने उन्हें पहला मौका दिया। इस फिल्म के हीरो कमल हासन थे और रजनीकांत विलेन। इस भूमिका के लिए उन्हें पुरस्कृत भी किया गया।
हिंदी फिल्मों में मारी इंट्री
साउथ इंडियन फिल्मों में धीरे-धीरे उनका दबदबा नजर आने लगा। 80 के दशक में उन्होंने फिल्म 'अंधा कानून' से बॉलिवुड में एंट्री मारी,थी। इसके बाद वे हिन्दी भाषी फैन्स के भी दिलों में भी बस गए।उन्होंने मेरी अदालत', 'जान जॉनी जनार्दन', 'भगवान दादा', 'दोस्ती दुश्मनी', 'इंसाफ कौन करेगा', 'असली नकली', 'हम', 'खून का कर्ज', 'क्रांतिकारी', 'अंधा कानून', 'चालबाज', 'इंसानियत का देवता' जैसी हिंदी फिल्मों से एक खास मुकाम बनाया है। हाल ही में उनकी फिल्म 2.0 बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा रही है।
फिल्में छोड़ने का मन बनाया
एक ऐसा भी दौर आया था जब ग्लैमर वर्ल्ड की चकाचौंध से परेशान होकर रजनीकांत ने फिल्म लाइन को छोड़ने तक का इरादा कर लिया था। ऐसे में के. बालचंदर, कमल हासन जैसे करीबी दोस्तों ने बड़ी मुश्किल से उन्हें रोका।
भगवान की तरह पूजा करने वाले फैन
साउथ की फिल्मों के हीरो व हिरोइन को जिस तरह उनके फैन पूजते हैं उससे बालीवुड के फिल्मी सितारों को जरूर ईर्ष्या होती होगी। रजनीकांत को भी उनके प़्रशंसक भगवान की तरह पूजते हैं । उनकी दिवानगी देखने लायक है कुछ लोगों को यह पागलपन भी लग सकता है। रजनीकांत के प्रति ऐसी दिवानगी की एक वजह तो उनकी सुपरहिट फिल्में हैं।
सादगी और सामाजिक जुड़ाव
इसके साथ ही रजनीकांत की सादगी और सामाजिक जुड़ाव महत्वपूर्ण कारण हैं उनकी इस असाधारण लोकप्रियता के। रजनीकांत फिल्मों में भले ही मेकअप कर जवान और हैंडसम नजर आते हों पर निजी व सार्वजनिक जीवन में वे जैसे हैं वैसे ही दिखाई देते हैं। उन्हें अपने टकला होने और उम्रदराज होने के लेकर कोई काम्प्लेक्स नहीं है। यह एक बहुत बड़ी खूबी है खासकर इसलिए कि वे जिस ग्लैमर की दुनिया में काम करते हैं वहां बहुत कम लोग ये साहस कर पाते हैं कि वे जैसे हैं वैसे ही दिखाई दें।
रजनी अपनी जड़ों से जुड़े व्यक्ति हैं। सफलता उनके सिर पर चढ़ कर नहीं बोलती। उनके पैर जमीन पर ही रहते हैं। सामाजिक कार्यों में वे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। वे तन मन व धन से चैरिटी के काम करते हैं। इस कारण वे अच्छे अभिनेता के साथ-साथ एक अच्छे इन्सान भी हैं। यह खूबी उन्हें कई अन्य हीरो की तुलना में खास दर्जा दिलाती है।
रजनीकांत की फिल्म 'शिवाजी', 'रोबॉट' और 'कबाली' और '2.0' ने कई रेकॉर्ड तोड़े हैं। इन फिल्मों ने पूरी दुनिया भर में तहलका मचाया है। डायरेक्टर शंकर की फिल्म '2.0' हाल ही में रिलीज़ हुई, जिसने स्क्रीन्स और कमाई के मामले में कई रेकॉर्ड तोड़ डाले। बता दें, रजनीकांत साल में एक या दो ही फिल्में करते हैं लेकिन दर्शकों के दिलों पर राज करते हैं। रजनीकांत ने तमिल फिल्मों अलावा हिन्दी, कन्नड़, मलयालम, बंगाली और अंग्रेजी फिल्मों में भी काम किया है।
काला रजनी और नाना का मुकाबला
निर्देशक पा. रंजीत की फिल्म काला में रजनीकांत की अधिकतर फिल्मों की तरह एक्शन व गीत नृत्य के मसाले तो हैं ही साथ ही तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों का छौंक भी लगा है। इस कहानी का तानाबाना मुंबई के सबसे बड़े स्लम धारावी को आधार बनाकर रचा गया है। कारिकालन ऊर्फ काला इस धारावी के स्लम में रहनेवाले लोगों का बेताज बादशाह है। काला यहां के लोगों के सुखदुख का साथी है इसलिए वहां के लोग उस पर अपनी जान छिड़कते हैं। यह फिल्म देखते हुए अमिताभ बच्चन की फिल्म अग्निपथ की याद आती है। वैसे अगर अग्निपथ से तुलना की जाए तो काला कमतर ठहरती है।
वहीं दूसरी तरफ एक नेता हरिदेव अभ्यंकर (नाना पाटेकर) है जो धारावी के स्लम को हटाकर वहां पर अपार्टमेंटस बनाना चाहता है। इसके लिए हरिदेव लोगों को डराने-धमकाने,लालच देने तथा मारपीट हत्या तक की सभी तरीके आजमाता है। हरिदेव की धारावी के स्लम की जगह बड़ी बिल्डिंगे बनाने के सपने की राह में काला रोड़ा बन जाता है। इसी को लेकर दोनों में लड़ाई शुरू होती है। वैसे इनकी दुश्मनी पुरानी थी इसी हरिदेव ने काला के पिताजी की भी हत्या की थी।
वहीं जरीन (हुमा कुरैशी) नाम की लड़की से काला प्यार करता है उससे शादी भी करना चाहता है पर शादी के दिन ही हरिदेव हमला करवा देता है। इस वजह से शादी नहीं हो पाती और जरीन और काला अलग हो जाते हैं।
हरिदेव व काला के बीच स्लम की जमीन को लेकर हुए संघर्ष में आखिरकार धारावी के लोगों की एकता व समर्थन के बल पर काला विजयी होता है। फिल्म में रजनीकांत व नाना पाटेकर के बीच बढिय़ा मुकाबला है। आमतौर पर रामायण के आधार पर राम और रावण के बीच हुए मुकाबले में हम उत्तर भारतीय राम को सत्य व रावण को असत्य का प्रतिनिधि मानते हैं। इसी वजह से बुराई का प्रतीक मानकर दशहरा के मौके पर रावण का पुतला दहन की परंपरा भी चली आ रही है। वहीं दूसरी तरफ दक्षिण में कई लोग रावण को अपना राजा मानते हुए उसे बुराई का प्रतीक नहीं मानते हैं। इस फिल्म में बैंकग्राउंड में रामकथा के वाचन के माध्यम से हरिदेव को राम और काला को रावण का प्रतिनिधि दिखाया गया है। खैर इस फिल्म में जैसा हरिदेव का चरित्र है जैसा काला का उनमें इनदोनों में राम और रावण के प्रतीक ढूंढना मुझे तो बहुत हद तक सरलीकरण लगा।
फिल्म के बैकग्राउंड में दलित राजनीति को भी प्रतिबिंबित किया गया है। इसके लिए गौतम बुद्ध के नाम संस्थान के आगे खड़ा होकर काला को दिखाया गया है और फिल्म का एक पात्र जय भीम का नारा भी लगाता है। वैसे भी महाराष्ट्र में दलित राजनीति की एक सशक्त धारा रही है। ये उसी को भुनाने की कोशिश मानी जा सकती है।
खैर कुल मिला कर यह मनोरंजक फिल्म है, लेकिन इसकी लंबाई कम की जा सकती है। गाने चलताऊ हैं। फिल्म की सबसे खास बात इसकी फोटोग्राफी है खासकर फिल्म के अंत में अबीर-गुलाल के उड़ाने के सतरंगी दृश्यों का फिल्मांकन मनमोहक है।
अवॉर्ड्स की लंबी फेहरिस्त
सिनेमा जगत को अनगिनत शानदार फिल्में देने वाले रजनीकांत को 2014 में छह तमिलनाडु स्टेट फिल्म अवार्ड्स से नवाजा गया जिनमें से चार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और दो स्पेशल अवार्ड्स फॉर बेस्ट एक्टर के लिए थे। रजनीकांत को साल 2000 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इतना ही नहीं 45वें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (2014) में रजनीकांत को सेंटेनरी अवॉर्ड फॉर इंडियन फिल्म पर्सनेल्टिी ऑफ द ईयर से सम्मानित किया गया।
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