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जिंदगी की राह में भारी पड़ने लगा है लॉकडाउन

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access_time 29-05-2020, 11:46 AM


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सांकेतिक तस्वीर


विवेकानंद उपाध्याय
चैनल हेड, नुतन टीवी

लॉकडाउन-4 को बाय-बाय कर अपने-अपने काम में लौटना चाहते हैं लोग बंदिशों को दूर कर ही लागू किया जा सकता है लॉकडाउन-5 गढ़वा: लॉकडाउन-4 के समाप्त होने में महज 2 दिन शेष रह गया है। इधर कोरोना है, जो रुकने के बजाय तेज रफ्तार में 1लाख 65 हजार का आंकड़ा पार करते हुए शहरों से गांवों की ओर अपना पांव पसार चुका है। इसका आकलन करने के लिए सिर्फ गढ़वा जिले को ही ले लें तो यहां अब तक 57 कोरोना पॉजिटिव मरीज पाए जा चुके हैं। जिनमें 52 का तालुकात शहरों के बजाय गांवों से है। गांवों में कोरोना पीड़ितों की संख्या बढ़ने के पीछे स्वाभाविक कारण भी है क्योंकि शहरों की अपेक्षा गांव के लोग रोजगार की तलाश में ज्यादा महाराष्ट्र गुजरात जैसे कोरोना के रेड जोन इलाकों से काम करने के बाद अपने-अपने घर गांवों में लौट रहे हैं। उक्त परिस्थिति में आगे क्या होगा ? क्या लॉकडाउन-5 की भी गुंजाइश है ? अब लोग केंद्र अथवा राज्य सरकार के लॉक डाउन 5 की संभावना के बीच अभी से अपने-अपने हिसाब से लॉकडाउन को बढ़ाने को ले मंथन कर रहे हैं। लॉकडाउन को ले, जो लोगों के बीच बहस चल रही है, वह बड़ा ही महत्वपूर्ण व तर्कपूर्ण है। क्योंकि जो चर्चा है, उसके अनुसार अब हर कोई यह महसूस करने लगा है कि जिंदगी जीने के लिए अपने-अपने घरों में अब कैद नहीं रहा जा सकता। क्योंकि जीवन यापन की जो आवश्यकताएं हैं उसकी पूर्ति के लिए व्यक्तिगत समाज राज्य तथा देश की अर्थव्यवस्था में जो ब्रेक लगा है, उसमें गति देना आवश्यक है। खासकर मध्यम वर्ग की छटपटाहट इस दिशा में बड़ा ही गौर करने वाली है। क्योंकि इस वर्ग से जुड़े लोग जो निजी सेक्टर में अधिकतर नौकरी पेशे में हैं। उनमें निजी विद्यालय के शिक्षक औद्योगिक संस्थानों में कार्यरत सुपरवाइजर, ट्यूटर, छोटे स्कूल, कोचिंग सेंटर, कंप्यूटर सेंटर अथवा छोटे रोजगार पर निर्भर करने वालों की जिंदगी अब बड़ी तंगहाली में गुजर रही है। क्योंकि सरकार से मिलने वाले मदद इनके पास नहीं के बराबर पहुंच रहे हैं। ना तो इन्हें निशुल्क अनाज मिल रहा है और ना ही कोई दूसरी सरकारी सहायता। ऐसे में अपनी व्यवस्था से तो किसी प्रकार इस वैश्विक महामारी कोरोना में तीन माह का समय पार कर चुके हैं। पर आगे जिंदगी कैसे गुजारे, इनके समक्ष यह एक बड़ा सवाल बनकर सामने आ खड़ा है। ऐसे में मध्यमवर्ग वर्ग चाहता है कि अब लॉकडाउन की बंदिश से मुक्ति मिलनी ही चाहिए। वैसे भी मानव की यही विशेषता है कि वह हर परिस्थिति में जीने की राह तलाश ही लेता है। आमतौर पर जो लोगों की लॉकडाउन-5 की संभावना के बीच सोच उभर कर आ रही है, उसके अनुसार अब हर कोई चाहता है की जिंदगी की भाग दौड़ में शामिल तमाम गतिविधियों को पटरी पर लाने की जरूरत है। चाहे बस सेवा हो अथवा रेल सेवा, दुकाने हो अथवा औद्योगिक संस्थान वैसे तमाम सेवा को शुरू करने की जरूरत है। जहां पर सोशल डिस्टेंसिंग के बीच एकत्रित होने की गुंजाइश हो तथा काम करने की परिस्थिति हो ऐसी स्थिति में लॉकडाउन-5 की संभावना को ले, जो परिस्थिति बन रही है, उससे साफ संकेत मिल रहा है कि सरकार चाहे अपनी ओर से जो भी फरमान जारी कर दे लोग अब उसे बहुत अधिक देर तक बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं। क्योंकि लोगों की मानसिकता ही यह बन चुकी है कि कोरोना के बीच में ही अपने जीवन शैली को आगे बढ़ाएंगे। ऐसे में लॉकडाउन-5 के प्रति निर्णय में सरकार को आम लोगों का बदले वर्तमान सोच को ध्यान में रख कर ही लॉकडाउन-5 को लांच करने की जरूरत है। जो अधिकतम बंदिशों को दूर कर ही लागू कर पाना संभव है।


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