गढ़वा: चुनावी मौसम में समाज सेवा का प्रपंच रचने वाले मौसमी नेता इस वैश्विक महामारी कोरोना के संकट में गदहे की सिंघ की तरह ऐसा गायब है, मानो उनका कभी भी समाज सेवा से वास्ता ही नहीं रहा हो। ऐसे चुनावी नेता पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान जो जनता सेवा का खोल ओढ़े हुए थे, उसे फेंककर अब शायद आने वाले चुनावी मौसम में ही फिर ग्रहण करेंगे।
जरा याद कीजिए विधानसभा चुनाव से पहले किसी गरीब के घर में मौत की खबर मिलते ही रिश्तेदार से पहले ही तथाकथित ऐसे चुनावी समाजसेवी उसके घर तेज रफ्तार में पहुंच जाते थे, तथा दरियादिली दिखाते हुए क्रिया कर्म के नाम पर सहयोग करने में भी पीछे नहीं रहते थे। यहां तक की कोई बीमार हो या दूसरे संकट में चुनावी नेताजी बगैर बुलाए मेहमान की तरह हाजिर हो जाते थे। ऐसे नेताओं की लंबी चौड़ी लिस्ट है। उनका नाम लेकर कुछ कहने के बजाय इशारों में ही समझने की जरूरत है।
मानता हूं कि इंसान बगैर स्वार्थ का कोई कार्य नहीं करता तब उन्हें वोट चाहिए था, इसलिए समाज सेवा के नाम पर सब कुछ लुटाने को तैयार थे। बावजूद इतनी स्वार्थीपन्ना व बेरुखी अच्छी नहीं कि जिसे अपना इतना अजीज बता रहे थे, आज संकट की इस घड़ी में उसके बीच पहुंचकर सहानुभूति के दो शब्द भी सुनाने को ऐसे चुनावी नेताओं के पास समय नहीं है। शायद यह भी सोच लिए होते कि फिर चुनावी मौसम आएगा और मेंढक की तरह टर्राहट भरना होगा तब कहीं जनता पूछ देगी कि 5 साल बाद ही हम आपको क्यों याद आए?
विश्रामपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र हो अथवा भवनाथपुर - गढ़वा विधानसभा, चुनाव क्षेत्र को छोड़कर चुनाव परिणाम में नंबर 2, 3, 4 पर वोट पाने वाले नेताजी भी इस कोरोना संकट के दौर में जरूरतमंदों के बीच से इस कदर गायब हैं, मानो उनका उस विधानसभा चुनाव क्षेत्र की उस जनता से भी अब कोई रिश्ता नहीं है, जिसने उन्हें वोट दिया था। याद कीजिए किसी के घर शादी भोज हो तो टैंकर से पानी गांव में सड़क बनानी हो तो जेसीबी से सड़क, पेयजल चाहिए तो बोरवेल यहां तक कि कोई गरीब बीमार हो तो नगद पैसा लेकर विधानसभा चुनाव से पहले और चुनाव के मौके पर इस कदर रंगे हुए सियार की तरह वैसे मौसमी नेता उक्त तीनों विधानसभा चुनाव क्षेत्रों में छाए रहते थे, मानो यही असली मसीहा हैं। जनता ने वैसे लोगों के झांसे में पड़कर हजारों मत भी उनके झोली में डाला बावजूद उस वोट के बदले इस करोना संकट में वैसे नेता जनता के बीच मदद करने की बात तो दूर आज जाने तक को तैयार नहीं है।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि ये समाज सेवी नहीं रंगे हुए सियार थे। खैर यह पब्लिक है आने वाले समय में जब चुनाव का समय आएगा तो अवश्य सबक सिखाएगी क्योंकि यह पब्लिक है समय आने पर सबक जरूर सिखाती है।