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जमशेदपुर के टिन प्लेट कारखाने में हुई हड़ताल में मजदूर के साथ कंधे-से कंधा मिलाकर लड़े थे राजेंद्र प्रसाद

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access_time 03-12-2020, 11:09 PM


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नवीन शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार

प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर विशेष देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने आजादी से पूर्व जमशेदपुर में हुए मजदूर आंदलनों में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभायी थी.1928 में जब टाटा स्टील कंपनी (टिस्को) में हड़ताल हुई तो मजदूरों ने सुभाष चंद्र बोस को बुलाया था. सुभाष खुद तो जमशेदपुर पहुंच कर मजदूरों का साथ दिया ही उन्होंने राजेंद्र प्रसाद को भी बुलाया. राजेंद्र प्रसाद आत्मकथा में लिखते हैं कि 1921 से ही वे जमशेदपुर आ कर कांग्रेस का प्रचार प्रसार करते रहे थे. इस समय टिन प्लेट कारखाने में भी हड़ताल हुई थी. वहां के मजदूरों ने भी सुभाष बाबू से मदद मांगी. सुभाष बोस ने राजेंद्र प्रसाद और प्रो अब्दुल बारी को इस आंदोलन में सहयोग के लिए बुलाया. राजेंद्र प्रसाद ने दस महीने तक चली इस हड़ताल में मजदूरों का पूरा साथ दिया. इस मामले को लेकर वे चीफ सेक्रटरी और गवर्मेंट मेंबर से भी मिले थे, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के समर्थन की वजह से प्रबंधन ने मजदूरों की बात नहीं सुनी थी. हजारीबाग जेल का मजेदार वाकया 1933 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान कांग्रेस के कई नेताओं को गिरफ्तार किया गया था. राजेंद्र प्रसाद को भी गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल भेजा गया था. यहां के बारे में राजेंद्र बाबू मजेदार किस्सा अपनी आत्मकथा में बताते हैं. वे लिखते हैं कि जेल में रहने के दौरान कैदी पुस्तक पढ़ते थे, लेकिन वे पुस्तकें पुलिस या मजिस्ट्रेट के पास किये बिना हम लोगों को नहीं मिलती थीं. पास करनेवाले सज्जन ज्यादा पढ़ें लिखे नहीं मालूम पड़ते थे. जिस पुस्तक के भी नाम में वे पालिटिकल या पालिटिक्स शब्द देख लेते थे उसे पास नहीं करते थे. इन सज्जन ने टैक्स्ट बुक ऑफ पालिटिकल इकोनॉमी किताब तो रोक दी, लेकिन एबीसी ऑफ कम्युनिज्म और थ्योरी ऑफ लेबर को उन्होंने पास कर दिया था. जीवन यात्रा राजेंद्र प्रसाद का जन्म जीरादेई (बिहार) में 3 दिसंबर 1884 को हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था. उनके पिता संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे एवं माता धर्मपरायण महिला थीं बचपन में राजेन्द्र बाबू को उनकी मां उन्हें रोजाना भजन-कीर्तन, प्रभाती सुनाती थीं. इतना ही नहीं, वे अपने लाड़ले पुत्र को महाभारत-रामायण की कहानियां भी सुनाती थीं और राजेन्द्र बाबू बड़ी तन्मयता से उन्हें सुनते थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा छपरा (‍बिहार) के जि6ला स्कूल गए से हुई थीं. मात्र 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान से पास की. इसके बाद कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेकर लॉ के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की. वे हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली एवं फारसी भाषा के अच्छे जानकार थे. महज 13 वर्ष में हो गया था विवाह राजेन्द्र बाबू का विवाह लगभग 13 वर्ष की उम्र में राजवंशीदेवी से हो गया था. उनका वैवाहिक जीवन सुखी रहा और उनके अध्ययन तथा अन्य कार्यों में उस वजह से कभी कोई रुकावट नहीं आई. एक वकील के रूप में अपने करियर की शुरुआत करते हुए उनका पदार्पण भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन हो गया था. वे अत्यंत सौम्य और गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे. सभी वर्ग के व्यक्ति उन्हें सम्मान देते थे. वे सभी से प्रसन्नचित्त होकर निर्मल भावना से मिलते थे. राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक का रहा. सन् 1962 में अवकाश प्राप्त करने पर उन्हें 'भारत रत्न्' की सर्वश्रेष्ठ उपाधि से सम्मानित भी किया गया था. राष्ट्रपति पद पर रहते हुए अनेक बार मतभेदों के विषम प्रसंग भी. सरलता और स्वाभाविकता उनके व्यक्तित्व में समाई हुई थी. उनके मुख पर मुस्कान सदैव बनी रहती थी, जो हर किसी को मोहित कर लेती थी. राजेंद्र प्रसाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक से अधिक बार अध्यक्ष रहे. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का 28 फरवरी 1963 को निधन हुआ. महान देशभक्त, सादगी, सेवा, त्याग और स्वतंत्रता आंदोलन में अपने आपको पूरी तरह होम कर देने के गुणों को किसी एक व्यक्तित्व में देखना हो तो उसके लिए भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का नाम लिया जाता है.


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