केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का निधन, क्या हो सकते हैं बिहार चुनाव पर साइड इफेक्ट
👁 834
access_time
09-10-2020, 07:57 AM
रांची
राँची : बिहार विधानसभा चुनावों के शुरुआत के ऐन मौके पर केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का 74 साल की उम्र में दिल्ली में निधन हो गया। वे दिल्ली के एस्कॉर्ट हॉस्पिटल में भर्ती थे। तबीयत खराब होने की वजह से छह दिन पहले दिल्ली के एम्स उनकी दूसरी हार्ट सर्जरी हुई थी। इससे पहले भी उनकी एक बायपास सर्जरी हो चुकी थी।
रामविलास पासवान के राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 32 वर्षों में 11 चुनाव लड़ चुके हैं और उनमें से नौ जीत चुके हैं। इस बार उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा लेकिन इस बार सत्रहवीं लोकसभा में उन्होंने मोदी सरकार में एक बार फिर से उपभोक्ता मामलात मंत्री पद की शपथ ली। पासवान के खाते में छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का अनूठा रिकॉर्ड भी है।
रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने ट्वीट कर इस बात की पुष्टि की है। चिराग ने अपने ट्वीट में लिखा है कि
पापा.. आप अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन मुझे पता है कि आप जहां भी है हमेशा मेरे साथ हैं।
Miss you papa.
किसी संतान के सर से पिता का साया उठने का दर्द सहज ही समझा जा सकता है। इसलिए चिराग से पूरी सहानुभूति के बाद भी इस बात की काफी संभावना है कि रामविलास पासवान के निधन से लोजपा को फायदा हो। चुनाव के ठीक पहले हुई मौत की वजह से सहानुभूति की लहर (भले ही वो कुछ विधानसभा क्षेत्रों में ही क्यों ना हो) का फायदा लोजपा और चिराग को जरूर होगा। मैं यह बात इस तथ्य को बखूबी जानने के बाद भी कर रहा हूं कि बिहार में जाति पर आधारित वोटिंग की बहुत ही सड़ी गली और बदबू मारती व्यवस्था आज इक्कीसवीं सदी में भी बिना किसी संकोच और गिल्ट के धड़ल्ले से होती है। इससे पहले जाति की जनसंख्या के आधार पर ही संबंधित विधानसभा क्षेत्रों में टिकटों का बंटवारा भी होता है।
दिल्ली में हुई थी मुलाकात
दिल्ली में सिविल सर्विस की तैयारी के दौर में एक बार सिविल सर्विस में सामान्य वर्ग के परीक्षार्थियों को मिलने वाले अवसर बढ़ाने की मांग को लेकर कई नेताओं से मिले थे। जिन नेताओं को हमने ज्ञापन सौंपा था उनमें सोनिया गांधी, शरद पवार और रामविलास पासवान शामिल थे। पासवान उस समय रेलमंत्री थे।
रांची कई बार आए थे
रामविलास पासवान कई रांची आए थे। मेरी एक मित्र आरती के घर भी ये आते रहें हैं। आरती का ननिहाल खगड़िया है। उसकी मां के वे मुंहबोले भाई थे। रांची एक्सप्रेस के वरिष्ठ पत्रकार पूरन चंद के भी वे करीबी रहे हैं।
रांची के रामरतन राम ने दी थी पटखनी
रामविलास पासवान महज दो बार लोकसभा चुनाव हारे हैं। 1984 में रांची के रहने वाले रामरतन राम ने रामविलास पासवान को उनके गढ़ #हाजीपुर में जाकर पटखनी दी थी। लेकिन इस जीत में सबसे बड़ा फैक्टर यह था कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की जबरदस्त लहर चल रही थी। इस आंधी में कई दिग्गज परास्त हुए थे। रामविलास भी इसी वजह से हारे थे।
उम्मीदों का चिराग
चिराग पासवान मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव की तरह ही पढ़े लिखे युवा हैं। ये हैंडशम भी हैं इसलिए इन्होंने फिल्मों में भी किस्मत आजमाई थी लेकिन असफल रहे थे। इसलिए उचित समय पर अपना ट्रैक चेंज कर पिता की राजनीतिक विरासत को ही आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। यह निर्णय बहुत हद तक सही भी है। मैंने #चिराग का एक इंटरव्यू देखा था। इसमें इन्होंने बहुत ही सहज और जहीन ढंग से जवाब दिया था। ये तेजस्वी और तेज प्रताप की तुलना में बेहतर लगे।
भाजपा और जदयू की खिंचतान में लोजपा काट रही चांदी
भाजपा और जदयू की खिंचतान में लोजपा को फायदा होना तय है। भाजपा और जदयू लगभग बराबर सीटों पर लड़ रहे हैं। भाजपा का गेम प्लान शायद यह है कि वो किसी तरह जदयू को उसका कद छोटा कर ए टीम से बी में तब्दील कर दे। यानि जदयू की सीटें किसी भी तरह भाजपा से कम की जाएं। इसी रणनीति के तहत भाजपा के कई दिग्गज नेताओं को लोजपा की टिकट पर जदयू के खिलाफ लड़ाया जा रहा है जहां से इनके जीतने के चांस हैं। इसका पुख्ता उदाहरण अभी हाल में लोजपा में शामिल हुए भाजपा नेता राजेंद्र सिंह हैं। आगे पता नहीं कितने नेता ये दाव खेलेंगे। चुनाव के बाद इनमें से जो नेता जीतेंगे वो भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनाने में खुलकर मदद करेंगे, चाहे इन्हें लोजपा छोड़नी भी पड़े।
1969 में पासवान ने लड़ा था पहला चुनाव
रामविलास पासवान का जन्म पांच जुलाई 1946 को बिहार के खगड़िया जिले गरीब और दलित परिवार में हुआ था।इन्होंने बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी झांसी से एमए और पटना यूनिवर्सिटी से एलएलबी किया ।1969 में पहली बार पासवान बिहार के राज्यसभा चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप चुने गए थे।
रिकार्ड मतों से जीतते थे
1977 में छठी लोकसभा में पासवान जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुने गए।1982 में हुए लोकसभा चुनाव में पासवान दूसरी बार जीते।
1983 में उन्होंने दलित सेना का गठन किया तथा 1989 लोकसभा में तीसरी बार चुने गए।1996 में दसवीं लोकसभा में वे निर्वाचित हुए। पासवान की अपने इलाके में अच्छी पकड़ थी वे रिकार्ड मतों से जीतते थे।
जदयू से अलग होकर लोक जन शक्ति पार्टी बनाई
2000 में पासवान ने जनता दल यूनाइटेड से अलग होकर लोक जन शक्ति पार्टी का गठन किया। इसके बाद वह यूपीए सरकार से जुड़ गए और रसायन एवं खाद्य मंत्री और इस्पात मंत्री बने।पासवान ने 2004 में लोकसभा चुनाव जीता, लेकिन 2009 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।बारहवीं, तेरहवीं और चौदहवीं लोकसभा में भी वे विजयी रहे।
अगस्त 2010 में बिहार से राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए और कार्मिक तथा पेंशन मामले और ग्रामीण विकास समिति के सदस्य बनाए गए।
हमें यूट्यूब पे सब्सक्राइब करने के लिए Youtube लिखे लाल बटन को दबायें।