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झारखंड में पंचायत चुनाव पर लगी ग्रहण, जनवरी में समाप्त हो जाएगा प्रतिनिधियों का अधिकार

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access_time 29-08-2020, 01:57 PM


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विवेकानंद उपाध्याय
चैनल हेड, नूतन टीवी

गढ़वा : वैश्विक महामारी कोरोना से जूझ रही झारखंड की हेमंत सरकार के सामक्ष राज्य में पंचायत चुनाव कराने की बड़ी चुनौती सामने आ चुकी है। वर्तमान हालत सरकार का जो दिख रहा है उससे लगभग साफ है कि राज्य सरकार निर्धारित समय दिसंबर में कौन कहे अगले 6 माह के अंदर भी चुनाव कराने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि झारखंड में अभी तक पंचायत चुनाव की सुगबुगाहट भी नहीं है। जबकि जानकार सूत्रों की माने तो सरकार को पंचायत चुनाव कराने के निर्णय लेने के बाद, तैयारी में न्यूनतम 6 माह का वक्त चाहिए। ऐसे में यह तय हो गया है कि 32 वर्षों के बाद झारखंड राज्य में लागू हुई त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था पर बड़ा ग्रहण लग चुका है। निर्धारित समय पर चुनाव नहीं हो पाने के कारण पंचायती राज निकाय भंग हो जाएगी और सारे अधिकार पंचायतों से जुड़े जनप्रतिनिधियों के समाप्त हो जाएंगे। क्योंकि वर्तमान पंचायत के प्रतिनिधियों का अधिकार जनवरी माह तक ही सीमित है। ऐसा इसलिए कि संविधान के 73वें संशोधन में यह अनिवार्य कर दिया गया है कि 5 वर्ष के अंदर यदि किसी निकाय का चुनाव नहीं कराए जाते हैं तो समय समाप्त होते हीं संस्था भंग हो जाएगी एवं उससे जुड़े हुए जनप्रतिनिधियों के सारे अधिकार समाप्त हो जाएंगे। लिहाजा त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के तहत प्रतिनिधियों को प्राप्त अधिकार ब्यूरोक्रेट के हाथों में चला जाएगा। दरअसल झारखंड की हेमंत सरकार के सामने इस वर्ष महामारी कोरोना संकट के कारण उत्पन्न आर्थिक बदहाली में पंचायत का चुनाव कराने का फैसला लेना आसान नहीं होगा, क्योंकि सूत्र का माने तो राज्य में पंचायत चुनाव कराने में सरकार को कम से कम 500 से 600 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इतनी धनराशि खर्च करने की ना तो सरकार के वर्तमान हालात दिख रहे हैं, और ना ही हेमंत सरकार में पंचायत चुनाव कराने के प्रति ऐसी संकल्प शक्ति ही, क्योंकि संकल्प शक्ति होती तो, अब तक सरकार के स्तर से पंचायत चुनाव पर कुछ ना कुछ कार्यवाही शुरू कर दिया गया होता। वैसे भी सरकार को पंचायत चुनाव के निर्णय लेने के बाद चुनाव कराने के लिए कम से कम छह माह की वक्त की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि पंचायत चुनाव कराने से पहले सरकार को आरक्षण की नई व्यवस्था पंचायतों के संदर्भ में लागू करनी पड़ेगी। मसलन एसटी एसी पिछड़ा महिला पुरुष की आबादी के आधार पर आरक्षण के रोस्टर के अनुसार पंचायतों को चुनाव से पहले नए सिरे से आरक्षित करने पड़ेगें। इसके अतिरिक्त मतदाता सूची का संधारण करने में भी काफी वक्त लगेगा क्योंकि वर्तमान मतदाता सूची से चुनाव कराने से पहले मतदाताओं का नाम काटने एवं जोड़ने की प्रक्रिया लंबी होती है। इस प्रक्रिया को पूरा करने के साथ-साथ मतदान केंद्रों को लेकर भी निर्वाचन के पूर्व मंथन करना पड़ता है। यदि चुनाव से पहले उक्त तमाम तरह की प्रक्रिया पूर्ण करने के लिए कम से कम 6 माह का वक्त सरकार को चाहिए, ऐसे में सरकार की जो वर्तमान स्थिति है, जिसमें झारखंड में पंचायत चुनाव कराने को लेकर अभी तक सरकार के स्तर पर चुप्पी साध कर बैठे रहना यहां तक की गठबंधन में शामिल झारखंड मुक्ति मोर्चा, कॉन्ग्रेस, राजद जैसे किसी दल तो दूर झारखंड की विपक्षी पार्टी भाजपा से जुड़े किसी नेता ने भी सरकार पर दबाव बनाने के लिए अब तक पंचायत चुनाव का जुबान से नाम तक नहीं लिया है। यह साफ संकेत देता है कि पंचायत चुनाव कराने के प्रति तो झारखंड की सरकार की अभी रुचि नहीं है। यदि होती तो कुछ न कुछ अधिकारीक बयान अब तक अवश्य आए होते यहां तक की विपक्षी पार्टियां भी पंचायत चुनाव को लेकर गंभीर हैं ऐसे में यह आकलन करना कि झारखंड में 2021 के अंत तक भी पंचायतों का चुनाव हो पाएगा अथवा नहीं आसान नहीं होगा !


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