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रक्षा बंधन- भाई बहन का त्योहार

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access_time 03-08-2020, 10:10 AM


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प्रशांत कुमार पांडेय, गढ़वा
मैकेनिकल इंजीनियर

भारत- जहाँ रोज त्योहार मनाया जाता है। कई धर्मों के लोग एक साथ रहतें हैं और सौहार्दपूर्ण तरीके से सब साथ मिलकर ढेर सारे त्योहार मनाते हैं। अभी ही सत्य और बलिदान का प्रतीक माना जाने वाला त्योहार- बकरीद बिता है जिसे मुस्लिमों ने बड़े धूमधाम से मनाया। वैसे कोरोना के कारण तरीके में बदलाव तो हुआ पर उत्साह वही पुराना था। अब हम सब भाई बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक माने जाने वाला त्योहार रक्षाबंधन मनाएँगे । जिसे सभी लोग धर्म के बंधन से ऊपर उठकर बड़े हर्षोउल्लाष के साथ मनाते हैं। यह त्योहार श्रवण मास के पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहने अपनी भाइयों के कलाई में रखी बांधती हैं और उनके लंबे उम्र तथा अच्छे स्वास्थ्य की कामना करतीं हैं। बहने बेसब्री से तैयारियों में जुट जाती हैं। वास्तव में रक्षाबंधन भाई बहन के अटूट प्रेम को समर्पित त्योहार है जो सदियों से मनाया जाता आ रहा है। ये एक भाई का अपने बहन के प्रति कर्तव्य को जाहिर करता है। वहीँ इसे केवल सगे भाई बहन ही नहीं बल्कि कोई भी स्त्री और पुरुष जो की इस पर्व की मर्यादा को समझते है वो इसका पालन कर सकते हैं। इसे मनाने के कारणों को लेकर हम सबने ढेरों कहानियां सुनी हैं। उनमें से कुछ प्रमुख धार्मिक व ऐतिहासिक कहानियां पेश है आपके लिए। सिकंदर और पुरू की कथा इतिहास के अनुसार राजा पोरस को सिकंदर की पत्नी ने राखी बांधकर अपने सुहाग की रक्षा का वचन मांगा था। एक बार युद्ध के दौरान सिकंदर ने पोरस पर हमला किया तो वह रक्षासूत्र उसे अपना दिया हुआ वचन याद आ गया और उसने पोरस से दुबारा युद्ध नहीं किया। भविष्‍य पुराण में वर्णित कथा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवतावों और असुरों के बीच बारह साल तक युद्ध चला। देवता पराजित हुए। देवों के गुरु बृहस्पति ने इंद्र की पत्नी शची को श्रावन शुक्ल की पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर रक्षासूत्र अपने पति के कलाई में बांधने को कहा। जिसे उन्होंने इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा और फिर देवताओं ने असुरों को पराजित कर विजय हांसील की और इस तरह धरती की रक्षा की। वामन अवतार एक बार भगवान विष्णु, बली - अशुरों के राजा के दान धर्म से प्रशन्न होकर वरदान मांगने को कहा। बली ने भगवान विष्णु को पाताल लोक में बसने का वरदान मांगा। भगवान ने वामन अवतार धारण कर पाताल लोक में शरण ले ली। भगवान के पाताल लोक में चले जाने से देव लोक में सब चिंतित हो गए। तब माता लक्ष्मी एक गरीब स्त्री का वेश बनाकर पाताल लोक में गयीं और राजा बली को राखी बांधा और विष्णु भगवान को वापस ले जाने का वचन मांगा। उस दिन भी श्रवण मास की पूर्णिमा तिथि थी और तभी से रक्षा बंधन मनाया जाने लगा। श्रीकृष्‍ण द्रौपदी की कथा महाभारत काल के कृष्ण और द्रोपदी को भाई बहन माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब श्री कृष्णा ने शिशुपाल का वध किया तो उनकी तर्जनी उंगली कट गयी थी। उस वक़्त द्रोपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांधा था। उस दिन श्रावण भी पूर्णिमा का दिन था। तभी से रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाने लगा । फिर श्री कृष्ण ने एक भाई का फर्ज निभाते हुए चीर हरण के समय द्रोपदी की रक्षा की थी। बादशाह हुमायूं और कमर्वती की कथा रक्षाबंधन पर हुमायूं और रानी कर्मवती की कथा सबसे अधिक प्रचलित है। माना जाता है कि राणा सांगा की विधवा पत्नी कर्मवती ने हुमांयू को राखी भेजकर चित्तौड़ की रक्षा करने का वचन मांगा था। हुमांयू ने भाई का धर्म निभाते हुए चित्तौड़ पर कभी आक्रमण नहीं किया और चित्तौड़ की रक्षा के लिए उसने बहादुरशाह से भी युद्ध किया था। महाभारत में राखी भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर तथा उनके सभी सैनिकों को युद्ध में जाने से पूर्व राखी बंधवाने सलाह दी ताकि महाभारत के लड़ाई में खुदको और अपनी सेना को बचा सकें। इसपर माता कुंती ने अपने नाती के कलाई में राखी बांधी थी वहीँ द्रौपदी ने भी श्री कृष्ण के हाथो पर राखी बांधा था। वरुण देवता की पूजा रक्षाबंधन समुद्र के देवता वरूण की पूजा करने के लिए भी मनाया जाता है। आमतौर पर मछुआरें वरूण देवता को नारियल का प्रसाद और राखी अर्पित करके ये त्योहार मनाते है। इस त्योहार को कुछ जगहों पर नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है। ये तो थी कुछ कहानियां जिसे कई लोगों ने सुनी होंगी। ये त्योहार अन्य धर्मों में भी मनया जाता है। जैन धर्म में उनके पुजारी भक्तों को पवित्र धागा देते हैं। सिख धर्म में भी ये त्योहार भाई बहन द्वारा मनाया जाता है जिसे " राखाड़ी" या "राखरी" नाम से जाना जाता है।


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