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गढ़वा में कोरोना थर्ड स्टेज में 5 दिन में मिले 61 पॉजिटिव, हारे हुए मन से गढ़वा कैसे जीतेगा कोरोना का जंग

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access_time 16-07-2020, 07:48 PM


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विवेकानंद उपाध्याय
चैनल हेड, नूतन टीवी

गढ़वा : हारे हुए मन से किसी भी प्रकार का जंग नहीं जीता जा सकता। कम से कम कोरोना को लेकर गढ़वा जिले की हालत तो कुछ ऐसा ही है। क्योंकि जिन कोरोना वारियर्स के भरोसे कोरोना संकट से लोगों को निजात मिलने की उम्मीद है। वहीं लोग खुद अब कोरोना के डर से अपनी जिम्मेवारी से कतरा रहे हैं, या यूं कहें कि खुद को कोरोना के संक्रमण से बचने के जुगाड़ में है। यदि ऐसा नहीं तो क्या कारण है कि गत रात्रि जो जिले में 27 नए करोना पॉजिटिव पाए गए हैं, उन्हें कोविड-19 अस्पतालों में शिफ्ट कराने में घंटा दो घंटा नहीं, बल्कि12 से 14 घंटे तक के वक्त लगे। खबर तो यहां तक मिल रही है कि 24 घंटे बाद भी दोपहर 12:00 बजे तक कई संक्रमित मरीजों को कोविड-19 अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया था। हालत तो यह है कि जो लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं सुबह 10:00 बजे तक अपने-अपने घरों में बैठकर यह इंतजार कर रहे थे कि शायद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने के लिए लेने वाला कोई आएगा, जिससे वे कोविड-19 अस्पताल में भर्ती हो पाएंगे, क्योंकि उन्हें यह भी नहीं पता है कि आखिर उन्हें कहा तथा कैसे जाना है? भला ऐसी हालात को कोरोना के जंग में कोरोना वारियर्स के हारे थके अथवा खुद भयभीत हुए लक्षण नहीं माना जाए तो और क्या माना जाए? जबकि स्वास्थ्य विभाग दावा कर रहा है कि कोरोना संक्रमितों के लिए अधिकांश प्रखंड मुख्यालय में ही कोविड-19 अस्पताल की व्यवस्था की गई है, बावजूद 24 घंटे संक्रमण की सूचना के बाद प्रभावितों को अस्पताल में भर्ती नहीं कराया जा रहा है तो इससे बड़ी लापरवाही क्या हो सकती है? क्या ऐसी परिस्थिति में गढ़वा जिले में जो कोरोना संकट बरपा रहा है उससे निजात पाया जा सकता है? यह एक बड़ा सवाल है जिस पर गौर नहीं किया गया तो कम्युनिटी ट्रांसफर की ओर बड़ा करोना का खतरा गढ़वा जिले के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है। ऐसे प्रतिकूल परिस्थिति में बढ़ते पॉजिटिव मरीजों की संख्या को देखते हुए अब जरूरत है कोरोना के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए ऐसा नेतृत्व सामने आए जो हारे हुए मन से करोना की लड़ाई में लड़ रहे, गढ़वा के कोरोना वारियर्स को प्रोत्साहित कर उनके मन में समाए। खुद कोरोना संक्रमित होने के खतरे के भय को दूर कर नए सिरे से बेहतर प्रबंधन तथा पीपीई किट जैसी आवश्यक संसाधन की व्यवस्था करे, क्योंकि अब थोड़ी सी भी लापरवाही गढ़वा जिले पर भारी पड़ सकती है। ऐसा इसलिए कि गढ़वा में कोरोना के 181 पॉजिटिव मरीज पाए जा चुके हैं। संतोष की बात है कि 181 मरीजों में 122 लोग ठीक हो कर घर लौट चुके हैं। फिलहाल 59 केस एक्टिव रह गया है। मगर इस सच्चाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता है की शुरुआती दौर से ही भारी लापरवाही बरती गई है। प्रवासी श्रमिकों के स्क्रीनिंग में भारी अव्यवस्था देखा गया था। कंटेंटमेंट जोन के प्रति भी गंभीरता नहीं दिखलाया गया। नतीजा है कि 22 अप्रैल को ट्रैवल हिस्ट्री से गढ़वा शहर के पठान टोली से शुरू हुआ कोरोना धीरे- धीरे इस कदर से संपूर्ण गढ़वा को जकड़ लिया अब थर्ड स्टेज में कम्युनिटी ट्रांसफर तक पहुंच गया है। स्वास्थ्य विभाग भी मानकर चल रहा है क्योंकि पिछले दिनों जो कोरोना का पॉजिटिव मरीज पाए गए हैं उनमें से दर्जनों मामले में ट्रैवल हिस्ट्री के नहीं पाया गया है, और ना ही उनके परिवार के सदस्यों का ट्रेवल हिस्ट्री है। यहां तक की ऐसे संक्रमित किसके कांटेक्ट में आकर कोरोना से संक्रमित हुए इसका भी उन्हें खुद पता भी नहीं है। ऐसे में इसे कम्युनिटी ट्रांसफर तथा थर्ड स्टेज अब सभी लोग मान चुके है। सिविल सर्जन डॉक्टर एन के रजक ने तो विगत 11 जुलाई को जिस दिन एक साथ 24 कोरोना पॉजिटिव मरीज मिले थे कहा था कि अब गढ़वा में कोरोना कम्युनिटी ट्रांसफर के दौर में पहुंच गया है। मगर सिविल सर्जन के इस बयान के बाद भी कोरोना के खतरों से निपटने के लिए गढ़वा जिला प्रशासन ने ऐसा कोई नया ऐतिहासिक कदम नहीं उठाया गया नतीजा रहा किए 11 जुलाई के बाद कोरोना विकराल रूप धारण करते हुए पिछले 5 दिनों के अंदर गढ़वा जिले में अचानक बढ़कर नए 61 पॉजिटिव केस के साथ 181 का आंकड़ा छू चुका है। हो सकता था की यदि 11 जुलाई को जो कोरोना का 24 मामले सामने एक साथ आए उस दिन से ही प्रशासन अलर्ट हो गया होता तो शायद कोरोना के जंग में हमारा कोशिश आने वाले दिनों के लिए सुखद परिणाम देने वाला हो सकता था। मगर वास्तविकता इससे उलट है। हर किसी के मन में यह सवाल उठ सकता है कि आखिर इतनी तेजी से मामले क्यों बढ़ रहा है? एक्सपर्ट का माने तो इसके पीछे बड़ा कारण कोरोना संक्रमितों‌ से बचाव को लेकर बरते जाने वाले एतिहास सोशल डिस्टेंसिंग तथा मास्क लगाकर चलने के प्रति शुरुआती दौर से ही प्रशासन का नरम रुख अपनाना जरूरत के अनुरूप संभावित संक्रमितों का समय पर सैंपल नहीं लिया जाना, यहां तक कि जो संक्रमित खुद अस्पतालों में सैंपल देने आ रहे हैं उन्हें आइसोलेशन में न रखकर सीधे घरों में भेज देना बड़ा कारण है। क्योंकि अब अक्सर यह सुनने को मिल रहा है कि जो लोग कोरोना के लक्षण महसूस कर खुद अस्पताल में जांच कराने आ रहे हैं उनका रिपोर्ट जब पॉजिटिव आ रहा है, तो उन्हें ढूंढने में भी प्रशासन को परेशानी हो रही है पता चल रहा है कि वह अपने घर बिहार लौट गए हैं, तो कुछ केस में यह पता चल रहा है कि सामान्य लोगों की तरह बेटी के घर में मेहमानी में हैं, जिन्हें तलाश कर कोविड-19 अस्पतालों में पहुंचाने में प्रशासन को पसीने बहाने पड़े और अनावश्यक विलंब भी हुआ यदि अब आगे इन गलतियों को सुधार कर नए सिरे से कोरोना से निपटने के लिए योजना नहीं तैयार किए गए तो करो ना के बढ़ते खतरे को नियंत्रित करना संभव नहीं होगा। कोरोना के बढ़ते खतरे का अंदाज इससे भी लगाया जा सकता है कि कम्युनिटी ट्रांसफर के कारण कोरोना वन विभाग द्वारा वन अधिनियम के विरोध में एक ग्रामीण को जेल भेजने के कारण बाद में जेल में जिसकी पहचान करोना पॉजिटिव कैदी के रूप में हुई, वन विभाग के अब तक वन क्षेत्र पदाधिकारी से लेकर छोटे स्तर के दर्जनों कर्मचारी संक्रमित हो चुके हैं। पुलिस महकमा में भी कोरोना दस्तक दे चुका है। पुलिस लाइन गढ़वा एवं सीआरपीएफ के आधा दर्जन से ऊपर पुलिसकर्मी संक्रमित हो चुके हैं। प्रशासनिक अधिकारियों तक में कोरोना का फैलाव हो चुका है जिले के एक प्रखंड विकास पदाधिकारी खुद संक्रमित हो चुके हैं। शिक्षा विभाग के भी अधिकारी कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। खबर है कि वन विभाग के वन क्षेत्र पदाधिकारी की हालत तो इतनी खराब है कि वह रांची में संक्रमित होने के बाद जीवन और मौत के बीच झूल रहे हैं। रिम्स रांची में जिले का एक दूसरा मरीज गर्भवती महिला की भी हालत नाजुक बनी हुई है। ऐसी स्थिति में गढ़वा के लोगों के लिए कोरोना को लेकर चिंता बढ़ना लाजमी है। मगर कोरोना के इस जंग में कोरोना वारियर्स ही मैदान में जाने से संक्रमण के खतरे से हिचकने लगे तो संक्रमण से बड़े इस खतरे को कौन टालेगा वर्तमान में यह एक बहुत बड़ा सवाल है जो काल्पनिक सवाल नहीं है बल्कि हर कोई महसूस कर सकता है, ऐसा नहीं तो फिर क्या कारण है, कोरोना संक्रमितों को 12- 12 घंटे अस्पतालों तक पहुंचाने में विलंब हो रहा है, क्या विलंब के कारण करोना का खतरा नहीं बढ़ेगा? कोरोना से बढ़ते भय से पुलिस महकमा भी प्रभावित कर दिया है। यदि नहीं तो क्या कारण है कि जिले के सभी थानों को गेट बंद कर बाहर में एक शिकायत पेटी लगा दी गई है? ऐसी स्थिति 90 से 2000 के बीच के दशक में उग्रवादी हमले की आशंका के कारण थानों को देखी जा रही थी। क्योंकि उस समय भी उग्रवादी हमले के भय से गेट को बंद कर दिए जाते थे। जहां तक थाना की चहारदीवारी के बाहर शिकायत पेटी लगाई गई है उसका उद्देश्य जो शिकायत कर्ता है वह थानों में सीधे एंट्री कर अपनी शिकायत ना सुनाकर मत पेटी में लिखकर डाल दें। कोरोना से बचने के उद्देश्य से किया गया है। पुलिस की सुरक्षा के लिहाज से एतिहास बरतना अच्छी बात है। मगर क्या यह ध्यान नहीं रखना होगा, एतिहात उसी परिधि में बरती जाए जिसका असर जनमानस पर प्रतिकूल नहीं पड़े ऐसा इसलिए कि जिस थाने में जाकर सीधा बात करने से लोगों की समस्या दूर नहीं हो पाती है क्या मत पेटी में शिकायत लिखकर डाल देने से पुलिस जिसकी इमरजेंसी जरूरत भी होती है पूरा हो पाएगा? ऐसे भी कई सवाल हैं जिस पर शायद ध्यान देने की जरूरत है, इससे भी बड़ी बातें है कि जिन्हें कोरोना से लड़ना है वह भी खुद इतने भयभीत छवि पेश करेंगे तो आखिर इस लड़ाई को कैसे जीता जा सकेगा !


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