चेक एंड बैलेंस एवं प्रतिपक्ष की राजनीति चुनौती से गुजरना होगा नवनिर्वाचित अध्यक्ष केसरी को
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05-07-2020, 05:44 PM
ओम प्रकाश केसरी
विवेकानंद उपाध्याय
चैनल हेड, नूतन टीवी
त्वरित टिप्पणी
गढ़वा : गढ़वा जिला भाजपा अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल तमाम प्रतिद्वंद्वियों को चारों खाने चित करते हुए ओम प्रकाश केसरी दुबारे गढ़वा जिला भाजपा के अध्यक्ष पद को हथियाने में कामयाब हो गए हैं। जिला अध्यक्ष के पद पर श्री केसरी को मिली कामयाबी के पीछे चाहे जिस किसी राजनीतिक शक्ति का हाथ हो। मगर सत्ता सुख के साथ संगठन का बागडोर संभाल चुके ओमप्रकाश केसरी को गढ़वा जिला भाजपा अध्यक्ष के रूप में इस दूसरे पाली में कई चुनौतियों को का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि जहां एक ओर वर्तमान में भाजपा झारखंड में सत्ता से बाहर है। वहीं दूसरी ओर भाजपा के अंदर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की लंबी फेहरिस्त है। जिसे समेटकर विपक्ष की भूमिका में पार्टी को खड़ा रखना जिला अध्यक्ष श्री केशरी के लिए आसान नहीं होगा।
पिछले कुछ सालों में गढ़वा जिला भाजपा में व्यापक बदलाव आया है। इस बदले परिस्थिति में खुद को पार्टी के समर्पित निष्ठावान तथा पुराने कार्यकर्ता नेता बताकर अधिकार जताने वाले भाजपाई किनारे होते जा रहे हैं, क्योंकि संसदीय व्यवस्था में, सांसद विधायकों के पावर गेम के आगे संगठन गौण हो चुका हैं, या यूं कहें कि सांसद विधायकों के गणेश परिक्रमा के इर्द - गिर्द सिमटता जा रहा है। ऐसे में भाजपा के अंदर भी अब दूसरे राजनीतिक पार्टियों की तरह संगठन का महत्व सिमटता जा रहा है।
इसे समझना हो तो खुद गढ़वा जिला भाजपा अध्यक्ष के चुनाव को ही देख लें। पार्टी की ओर से जिला अध्यक्ष के चुनाव से पहले खूब रायशुमारी चली कार्यकर्ताओं को बुलाकर उनके राय भी जाने गए। मगर क्या रायशुमारी के आधार पर जिलाध्यक्ष पार्टी की ओर से बनाया गया है? शायद पार्टी का तमाम कार्यकर्ता ओम प्रकाश केसरी को अध्यक्ष बनने के बाद यह महसूस कर रहा है कि रायशुमारी महज एक आईवाश था। दरअसल अध्यक्ष के चुनाव में संसदीय व्यवस्था से पोषित पावर गेम ही काम आया।
जहां तक गढ़वा जिला भाजपा की राजनीति में आए व्यापक बदलाव का प्रश्न है, झाविमो का भाजपा में विलय के बाद जो भाजपा का झाविमो संस्करण गढ़वा जिले में सामने आया है उसमें पूर्व मंत्री रामचंद्र केसरी तथा सूरज गुप्ता जैसे राजनीति के बड़े चेहरों की एंट्री तो भाजपा में हुइ ही है। भानु प्रताप शाही की पार्टी नौजवान संघर्ष मोर्चा के विलय के बाद भी भाजपा की राजनीति जिले में पूरी तरह से बदल चुकी है। इतना ही नहीं जिले के 2 बड़े नेता बालमुकुंद सहाय तथा पूर्व विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी को भी प्रदेश संगठन में पदाधिकारी के रूप में तवज्जो नहीं मिल पाया है। जबकि इसके पूर्व गढ़वा जिले से पूर्व विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी प्रदेश उपाध्यक्ष थे, मगर उन्हें भी पार्टी ने तवज्जो नहीं दी। लिहाजा प्रदेश पदाधिकारी के पद से बाहर कर दिया गया है।
हालत तो यह है कि इस बार गढ़वा जिले से एक भी नेता को प्रदेश पदाधिकारी के रूप में भाजपा नेतृत्व ने बेहतर मौका नहीं दिया। कभी पार्टी का प्रदेश महामंत्री रहे बालमुकुंद सहाय को हजारीबाग का तथा गढ़वा जिला भाजपा का अध्यक्ष रहे मुकेश निरंजन सिन्हा को लातेहार का जिला का प्रभार देकर एक तरफ से रस्म अदायगी ही किया गया है।
जहां तक भाजपा में आए व्यापक बदलाव का संदर्भ है। वर्तमान में भाजपा में एक तरह से माना जाए तो पौने दो विधायक हैं, जिसमें जिले के भंडरिया से जुड़े आलोक चौरसिया को गढ़वा जिले की संगठनात्मक राजनीति से बहुत लेना देना नहीं है। रही बात पूर्व मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी की तो श्री चंद्रवंशी गढ़वा के बजाय इस बार अपना पुराना हिसाब - किताब चुकता करने के उद्देश्य से पलामू के संगठन में ही भिड़े हुए बताए जा रहे हैं। ऐसे में विधायक के रुप में एकमात्र भानु प्रताप शाही हैं। जिनके सहारे गढ़वा जिला भाजपा की राजनीति पावर गेम के मामले में काफी हद तक निर्भर है। संभव है ओमप्रकाश केसरी को अध्यक्ष बनाने में श्री शाही का पावर गेम काम आया हो। क्योंकि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में एंट्री के बाद जो विरोध झेलना श्री शाही को पड़ा था, उस विरोध में जिला अध्यक्ष के रूप में ओम प्रकाश केसरी का भरपूर साथ मिला था। इससे आकलन लगाया जा रहा है कि उसका कीमत श्री शाही ने श्री केसरी को जिलाध्यक्ष बनवाकर शायद चुका दिया हो।
इसके अतिरिक्त पूर्व मंत्री रामचंद्र केसरी, पूर्व विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी, पूर्व मंत्री गिरिनाथ सिंह एवं अलखनाथ पांडे जैसे लोग हैं जो गढ़वा जिले की राजनीति को अपने भविष्य की सुरक्षा के हिसाब से आगे ले जाने की ख्वाहिश रखते हैं। इन तमाम पहलुओं पर गौर करें तो गढ़वा जिले के बदले राजनीति में खुद को स्थापित करने जैसी चुनौती को भी गढ़वा जिले के वर्तमान जिला अध्यक्ष ओमप्रकाश केसरी को पार पाना होगा।
ऐसे में संगठन की बागडोर संभाले श्री केसरी जिला अध्यक्ष के रूप में भाजपा के जिले के बड़े नेताओं एवं जिला अध्यक्ष की दौड़ में शामिल लोगों को कैसे चेक एंड बैलेंस करेंगे? यह तो आने वाला वक्त बताएगा मगर इतना साफ है कि गढ़वा जिला भाजपा कि बदले राजनीतिक परिस्थिति में संगठन की बागडोर सही रास्ते पर चलाना बहुत आसान नहीं है।
हांलाकि जिला अध्यक्ष के रूप में ओमप्रकाश केसरी के पास पिछला अनुभव है तथा गढ़वा जिला भाजपा की राजनीति में रसूख रखने वाले इन तमाम नेताओं को श्री केसरी काफी करीब से जानते हैं। इसलिए उम्मीद करना होगा कि अपने पिछले कार्यकाल के अनुभव के बेस पर वे गढ़वा में एक विपक्षी पार्टी के रूप में भाजपा को पहचान दिलाने में कामयाब होंगे।
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