कल यानी 30 अगस्त को मुहर्रम की दसवीं तारीख़ हैं,जिसको यौमे आशूरा कहा जाता हैं। यही वो महीना और दिन है जब इस्लाम के प्रवर्तक पैगम्बर मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के नवासे (नाती) हज़रत हुसैन रजियल्लाहू तआला अन्हू अपने परिवार और 72 साथियों के साथ कर्बला की जंग में शहीद हो गए थे। ये एक ऐसी जंग थी जिसमे यजीद की हजारों सेना के सामने हारना तय था इसके बावजूद भी हज़रत इमाम हुसैन रजियल्लाहू तआला अन्हू ने घुटने नहीं टेके और वह अपने नाना के सिखाएं विचारो पर चलते हुए वे इस्लाम के लिए, अच्छाई के लिए, इंसानियत के लिए शहीद हो गए।
हज़रत इमाम हुसैन रजियल्लाहू तआला अन्हू की शहादत एक क़ौम का नहीं पूरे मानवता के लिए प्रेरणास्रोत हैं। इमाम हुसैन जैसे सोच और जज्बा वाले लोग कभी नहीं मरते।
हमारे हुसैन आज भी जिंदा है और हमेशा रहेंगे!!