रेशु महली , 12 वर्ष के छोटे बच्चे की मौत हो गयी RIMS के ब्लड बैंक के कारण, वो भी सिर्फ एक यूनिट ब्लड। ब्लड भी A+ ग्रुप का जो बहुतायत में है। जानकारी के अनुसार कल ही रेलवेज द्वारा जरीब 50 यूनिट ब्लड RIMS में आया है।
ये बच्चा sickle cell anemia का मरीज था एवं कल रात RIMS में भर्ती हुआ।
डॉक्टरों ने उसकी हालत देखते हुए त्वरित कारवाई की एवं RIMS ब्लड बैंक को सिर्फ एक यूनिट A+ ब्लड के लिए पेपर भेजा।
डॉक्टर के लिखे हुए पेपर में साफ साफ *इमरजेंसी, फ्री, लाइफ सेविंग* शब्द लिखे होने के बावजूद ब्लड बैंक से डोनर मांगा गया।
ज्ञात हो कि लाइफ सेविंग केसेस में डोनर की अनिवार्यता नही है। फिर भी मांगा गया। बच्चे का पिता असहाय डॉक्टरों और ब्लड बैंक के बीच दौड़ लगाता रहा। यह भी पता चला कि एक PG डॉक्टर ने खुद ब्लड बैंक जा के बोला, फिर भी ब्लड नही दिया गया।
निसहाय, बच्चे का पिता देर रात 2 बजे खुद डोनर बना पर उसका वजन कम होने के कारण ब्लड नही लिया।
सुबह तक जब तक वह गरीब जब तक लोगों को खबर करता, उसके पुत्र की मौत हो गयी।
अभी जब बात ने तूल पकड़ी तो register में रात 2 बजे की entry दिखा दी गयी कि ब्लड दे दिया गया था। ये कोई नही बता रहा किसको दिया ?
जो लोग सिकल सेल एनीमिया के बारे में जानते हैं, उनको मालूम है कि ब्लड न मिलने पर मरीज दर्द से तड़प तड़प के मरता है।
आज वो गरीब पिता अपने 10 वर्षीय पुत्र के निर्जीव शरीर को लेकर उसके अंतिम संस्कार करने अपने गांव गया है।
उस परिवार को जानने वालों में रोष है। वे सब इस मौत के लिए जिम्मेवार ब्लड बैंक के अधिकारी / कर्मचारी के लिए फांसी की सजा की मांग रख रहे हैं।
एक गरीब निसहाय बिना रसूख वाले आदमी को अगर सरकारी अस्पताल में गलत बोल के बरगलाया जाए और उस कारण मरीज़ की मौत हो जाए, ये आज के समाज, मंत्री, सरकार सबके लिए डूब मरने की बात है।