गढ़वा : हिंदू धार्मिक ग्रंथ देवी भागवत में सात बहनों वाली देवी से जुड़ा हुआ प्राचीन काल का धार्मिक स्थल है सतबहिनी झरना। यह स्थल गढ़वा जिला मुख्यालय से 36 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। यहां औसत ऊंचाई से झर झर कर मनोरम झरना गिरता है। जिसके नीचे लोग घंटों स्नान करते हुए अपनी थकान दूर करते हैं। स्नान के बाद झरना वाली पहाड़ी की तलहटी में नदी में अवस्थित सतबहिनी भगवती के मंदिर में लोग पूजा अर्चना करते और मनौती मांगते हैं। कहते हैं कि सच्चे मन से मांगी हुई मनौती अवश्य पूरी होती है। आज से 24 साल पहले जहां भगवती मंदिर अवस्थित है वहां पर केवल छोटे से चबूतरे पर देवी की एक बहुत छोटी सी प्रतिमा रखी थी। उनके प्रति आसपास के सैकड़ो गांव के हजारों लोगों की पुरातन काल से गहरी आस्था रही है।
जिस कारण इस स्थल पर किसी भी धार्मिक त्योहार को पूजा अर्चना करने वालों की सैकड़ो वर्षों से भीड़ हुआ करती है।
प्राचीन काल से ही वर्ष में यहां पांच बार मेला लगा करता है। वैशाख पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा, मकर संक्रांति एवं महाशिवरात्रि को सतबहिनी मेला लगता है। इस स्थल के विकास का बचपन से ड्रीम प्रोजेक्ट पाले पत्रकार प्रियरंजन सिन्हा को इसके विकास की दिन-रात चिंता रहती थी। इस स्थल पर वह अकेले भी जाकर घंटों इस बात का चिंतन किया करते थे कि कैसे इस स्थल को विकसित किया जाए। वर्ष 2000 के दिसंबर महीने में एक दिन गुफा पर्वत पर बैठे हुए थे कि उनके सामने झरना के बगल से पहाड़ी का दो ट्रैक्टर पत्थर तोड़कर बेचने के लिए ले जाया गया।
पत्थर के व्यापारियों ने इस पहाड़ी को तोड़कर बेचने का मन बना लिया था। इस दृश्य को देखकर पत्रकार का हृदय कांप गया। उन्होंने सोचा कि इंसान का कभी नहीं भरने वाला पेट किसी चीज को बेचने पर आमादा हो गया है। अब इस पहाड़ी को तोड़कर इंसान बेच खाएगा। तब यह झरना खेत में बहते हुए पानी की तरह बहा करेगा। जिससे सतबहिनी की मौलिकता समाप्त हो जाएगी। उन्होंने सतबहिनी के नैसर्गिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए 23 दिसंबर 2000 के प्रभात खबर में एक सचित्र लेख प्रकाशित किया।
उस लेख को पढ़कर एक साधु श्री गिरिवरधारी दास 31 दिसंबर 2000 को सतबहिनी झरना पहुंचे। जिन्होंने स्थानीय टोला के लोगों से यज्ञ करने की इच्छा प्रकट की। टोला के लोगों ने कहा कि उनसे यज्ञ करना संभव नहीं है।
लेकिन एक भैया यहां पर आया करते हैं। यदि वे चाहें तो हम लोग साथ दे सकते हैं। साधु ने पत्रकार को सूचित किया। कड़ाके की ठंड व वर्षा के बीच प्रियरंजन सिन्हा कुछ लोगों के साथ सतबहिनी झरना पहुंचे। जहां उक्त साधु ने उनके सामने यज्ञ करने की इच्छा प्रकट की। पत्रकार ने कहा कि वह पहले यहां निर्माण यज्ञ चलाएंगे। लगातार ध्वस्त हो रहे यहां की पौराणिक धरोहरों की मरम्मति की जाएगी। उसके बाद यज्ञ का कार्यक्रम होगा। साधु ने भी इस पर हामी भरी।
इसी समय से इस स्थल पर निर्माण यज्ञ शुरू हो गया। यज्ञ के बहाने इलाके के लोगों को जोड़ना शुरु किया गया। पहली जनवरी 2001 से 14 जनवरी 2001 तक कई बैठकें की गईं। जिसमें इस स्थल के विकास का प्रस्ताव रखा गया।
जिसपर इलाके के लोगों ने भरपूर सहमति दी। 14 जनवरी की बैठक में 26 गांव के 1500 लोग उपस्थित थे। उन्होंने एक कमेटी मां सतबहिनी झरना तीर्थ एवं पर्यटन स्थल विकास समिति बनाई। जिसका अध्यक्ष पत्रकार को ही बनाया गया।
28 फरवरी 2001 से 5 मार्च 2001 तक सतबहिनी झरना में श्री लक्ष्मी नारायण यज्ञ का आयोजन किया गया। इसी यज्ञ में भोजपुरी संगीत सम्राट स्मृति शेष पंडित विनोद पाठक पहली बार सतबहिनी पधारे थे। उसके बाद इलाके के लोगों ने सतत अकाल पीड़ित होने के बाद भी सतबहिनी के विकास का बीड़ा उठाया। अध्यक्ष के जीजा कोल इंडिया के सिविल इंजीनियर आरपी सिन्हा ने सतबहिनी भगवती के मंदिर सहित इस स्थल के विकास का मैप बनाया। सबसे पहले भगवती मंदिर का निर्माण शुरू किया गया।
जो विकास प्रक्रिया निरंतर चलती रही। इस दौरान प्रवेश द्वार, शिव मंदिर, साक्षी गणेश का मंदिर, भैरवनाथ का मंदिर, सूर्य मंदिर, बजरंगबली का मंदिर एवं नंदी महाराज का मंदिर का निर्माण कराया गया।
इस बीच सतबहिनी झरना का दायरा बहुत बढ़ जाने के बाद मां सतबहिनी झरना तीर्थ एवं पर्यटन स्थल विकास समिति के नए अध्यक्ष के रूप में समाजसेवी नरेश प्रसाद सिंह का चुनाव किया गया। अब विकास की गति काफी तेज हो गई। उन्होंने काफी बड़ी मात्रा में निजी राशि सतबहिनी के विकास में खर्च किया। नदी में पानी बढ़ने पर भगवती मंदिर में जाना संभव नहीं हो पाता था। उसके लिए सेतु मार्ग का निर्माण कराया गया। आगे चलकर सूर्य मंदिर एवं बजरंगबली के मंदिर में झरना घाटी के उस पार जाने के लिए सेतु मार्ग के विस्तार खंड का भी निर्माण कराया गया।
पक्की यज्ञ शाला एवं प्रवचन मंच का निर्माण कराया गया। नवीन एवं पक्की यज्ञशाला का भी निर्माण कराया गया। तब तक सतबहिनी झरना सतबहिनी झरना तीर्थ बन चुका था। यज्ञ एवं मेला में बहुत दूर-दूर के इलाकों के साथ-साथ दूसरे प्रदेशों के लोग भी सतबहिनी आने लगे थे। इस बीच यहां पर लोक आस्था के महापर्व कार्तिक मास के छठ महापर्व का भी सामूहिक महा अनुष्ठान शुरू किया गया। जो काफी लोकप्रिय होता गया।
आज की स्थिति है कि छठ महापर्व में एक लाख व्रतियों के साथ उनके परिजनों एवं दर्शकों को मिलाकर ढाई से तीन लाख लोग सतबहिनी में जुटा करते हैं। इसी प्रकार माघ पूर्णिमा से होने वाले मानस महायज्ञ में 11 दिनों के आयोजन में तीन से साढे तीन लाख तक लोग जुटा करते हैं।
यही स्थिति 14 जनवरी मकर संक्रांति के तीन दिवसीय मेले में हुआ करती है। इस प्रकार सतत अकाल पीड़ित क्षेत्र के लोगों ने अपना पेट काटकर चंदा जुटा कर एक गुमनाम होते जा रहे स्थल को उत्कृष्ट पर्यटन स्थल में परिवर्तित कर दिया।
अभी की स्थिति है कि प्रतिदिन आधा दर्जन से अधिक गाड़ियों में भर भर कर बाहर से लोग पूजा अर्चना करने एवं मनोरम झरना में स्नान करने के लिए सतबहिनी झरना तीर्थ आया करते हैं। दूर-दूर से आने वाले पर्यटकों ने सतबहिनी झरना तीर्थ को काफी रमणीक एवं सुंदर स्थल बताया है। इसके साथ ही प्रतिवर्ष मानस महायज्ञ में आने वाले विद्वानों के साथ-साथ वरिष्ठ साधु संत महात्माओं ने भी इस स्थल को भगवती एवं भगवान भास्कर का जागृत स्थल बताया है।