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गोमिया के पलायित मजदूर की अनसुनी सच्ची कहानी "जिंदा लाश" | एक बार जरूर पढ़ें...

location_on Gomia access_time 15-May-21, 08:34 PM

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निरंकुश शासन और निरंतर हो रहे पलायन पर मौन प्रशासन की वजह से गोमिया का एक और मजदूर सैकड़ों किलोमीटर दूर बलि की भेंट चढ़ गया। इस बार गोमिया के पलायित मजदूर की लाश नहीं पहुंची है। पलायित मजदूर खुद जिंदा लाश बनकर पहुंचा है। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसकी बात मैं बाद में करूंगा पहले जानते हैं माजरा क्या है ? मुंबई में हाई टेंशन तार के संपर्क में आने से गोमिया के एक पलायित मजदूर गंभीर रूप से झुलसकर घायल हो गया। इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां चिकित्सकों ने इलाज के दौरान गंभीर संक्रमित घाव के हिस्सों को काटकर अलग करने पर हीं घायल के बचने की बात कही। अंततः हुआ भी वही पैसे कमाने गए घायल मजदूर को हाथ पांव गंवाकर निराश लौटना पड़ा। कहानी गोमिया प्रखंड क्षेत्र के सुदूरवर्ती चतरोचट्टी पंचायत अंतर्गत क़तवारी गांव का है जहां से यह हृदयविदारक मार्मिक घटना सामने आया है। जहां बीते छः माह पूर्व एक पलायित मजदूर अपने कार्य के दौरान हाई टेंशन तार के संपर्क में आ गया और गंभीर रूप से घायल हो गया था। ग्राउंड जीरो पर पहुंचे एडमिन को घटना के संबंध में पीड़ित की मां मखवा देवी ने बताया कि मेरा पुत्र अनिल महतो (30) काम की तलाश में आज से आठ माह पूर्व अगस्त 2020 में महाराष्ट्र के गोमराज सेक्टर-5 नवी मुंबई गया था। जहां वह अमित नामदेव ठाकुर नामक किसी बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर सप्लायर निजी कंपनी के अंदर हाइवा वाहन चालन के कार्य का निष्पादन करने लगा। बताया कि कंपनी में कार्य के सामान्यतः तीन माह बीत जाने के बाद एक दिन कंपनी के हाइड्रोलिक हाइवा की सफाई करने लगा। सफाई के दौरान हाइड्रोलिक हाइवा के डाला को ज्यों हीं ऊपर किया हाइवा ऊपर से गुजरे बिजली के ग्यारह हजार वोल्ट के हाई टेंशन तार के संपर्क में आ गया। जिससे उसके दोनों हाथ और पैर गंभीर रूप से झुलस गया। उसी गांव के साथ रहने वाले सहकर्मी व प्रत्यक्षदर्शी बालेश्वर महतो ने बताया कि मैं भी उसी कंपनी में हाइवा चालक के रूप में कार्य करता था, और सारी घटना मेरी मौजूदगी में घटी। बताया कि उक्त घटना हाइवा के हाई टेंशन तार के संपर्क में आने से घटी। घटना के बाद गंभीर रूप से हाथ पैर झुलसा अनिल घटना स्थल पर बेसुध पड़ा था। कंपनी का कोई भी कर्मी करंट होने की संदेह में लगभग एक घंटे तक घायल तड़पते अनिल को घटना स्थल से नहीं हटाया था। घटना की जानकारी कंपनी के मालिक को दी गई। जिसके निर्देश के बाद घायल मजदूर अनिल को अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां चिकित्सकों ने उसकी गंभीरता को देखते हुए वहीं के एक बड़े निजी अस्पताल में रेफर कर दिया। अस्पताल के चिकित्सकों ने बताया कि उसके दोनों पैर व हाथ के घाव में इंफेक्शन आ चुके हैं लिहाजा घाव के हिस्सों को काटकर अलग करने पड़ेंगे, तभी घायल की जान बचाई जा सकती है। बताया कि अंततः कंपनी के मालिक और परिजनों से सलाह के बाद उसके हाथ और पैर काटने पड़े। बताया कि कंपनी के मालिक द्वारा लगभग छः माह के इलाज और बढ़ते कोरोना की दूसरी स्ट्रेन के बाद हवाई मार्ग से शुक्रवार को पलायित मजदूर चतरोचट्टी स्थित अपने पैतृक आवास क़तवारी पहुंचा। जहां परिजनों समेत पलायित मजदूर अपनी पलायन की आपबीती का रोना रो-रो कर दुहाई दे रहे हैं। अब हम बात करते हैं निरंकुश शासन और मौन प्रशासन की सभी जानते हैं कि गोमिया में पलायन की समस्या कोई नई नहीं है, पलायन और पलायन के दौरान निरंतर मौतें, कोरोना काल मे यहां केनमजदूरों का सैकड़ों किलोमीटर की कष्टकारक पदयात्रा कर घर वापसी किसी से छुपी नहीं है। तो भी यहां की जनता द्वारा चुने गए जन प्रतिनिधि यथा सांसद औऱ विधायक पलायन अंकुश नहीं लगा सके। इसीप्रकार मौन प्रशासन इसलिए क्योंकि सुदूरवर्ती और अति उग्रवाद प्रभावित गांवों के विकास के लिए प्रशासन द्वारा झुमरा एक्शन प्लान, स्वरोजगार के लिए कभी ग्रामीणों को हुनरमंद बनाने, कुक्कुट पालन, बकरी पालन तो कभी कुछ तो कभी कुछ का विकासीय ढोल परंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात। अबप्रशासन द्वारा सुदूरवर्ती गांव के विकास का अंदाजा सिर्फनिस बात से लगायबज सकता है कि छः माह पूर्व घटी उक्त हृदयविदारक घटना अब जाकर सामने आता है तो समझा जा सकता है प्रशासन द्वारा सुदूरवर्ती गांवों में विकास का दावा। न तो शासन के द्वारा पलायन रोकने पर बल दिया गया न तो प्रशासन की ओर से इस दिशा में ठोस पहल की गई। निरंकुश शासन और मौन प्रशासन से मात्र इतना अभिप्राय है। बाकी खुदे समझदार हैं क्या कहना चाहे रहे हैं जानबे करते हैं..!! खैर कहानी "जिंदा लाश" में आगे की बात करते हैं पलायित मजदूर अपने घर का एक मात्र कमाऊ था। बिजली के हाई टेंशन तार के चपेट में आकर हाथ पैर गंवाए मजदूर अनिल महतो की पत्नी उर्मिला देवी ने बताया कि पति गए थे चार पैसे कमाने, लौटे भी ऐसे की हाथ पैर भी गंवा बैठे। पत्नी ने बताया कि उसके दो छोटे-छोटे मासूम बच्चे हैं। जिसके समक्ष अब लालन पालन और शिक्षा दीक्षा का विकराल संकट आ खड़ा हुआ है। क्या कहते हैं घर लौटे पलायित मजदूर ? नवी मुंबई से हाथ पैर गंवाकर घर लौटे पलायित मजदूर अनिल महतो ने बताया कि कंपनी के मालिक ने तो छः माह का इलाज और एक लाख का चेक सहित चालीस हजार नकद देकर अपना सरोकार तो पूरा कर लिया। परंतु अब शुरू होगी जिंदा लाश बनकर जिंदगी गुजारने की जीवन गाथा। बहरहाल पहले पलायित मजदूर अब दिव्यांग अनिल महतो स्थानीय जन प्रतिनिधियों से जीविका चलाने और भरण पोषण के लिए स्वरोजगार या छोटे उद्यम की मांग की है। फिर वही बात ड्रामेबाज आएंगे, ड्रामा दिखाएंगे, भीड़ लगाएंगे और अगले दिन पक्का अखबारों में छाएंगे और हम इसे कहेंगे क्या कहेंगे ? #राजनीतिक_स्टंट ______विशाल अग्रवाल


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