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भारत के गांवों में आज भी संरक्षित है विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान।

location_on Bagpat access_time 15-Jun-23, 12:05 AM

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– पारंपरिक ज्ञान की महत्ता पर अपने विचार साझा कर रहे है युवा लेखक अमन कुमार 8 बिलियन लोग और रहने के लिए केवल एक घर जो निरंतर हम मनुष्यों द्वारा संसाधनों के अतिदोहन का बोझ उठा रहा है। हम घर के रूप में उसी पृथ्वी की बात कर रहे है जिसके सीने पर हुए ओजोन छेद की 1956 में खोज के पश्चात आज तक भी उसके उपचार के लिए उचित प्रबंधन नहीं किया जा सके। यह वहीं घर है जिसके आज होने से ही 8 बिलियन लोग रोजाना अपनी आवश्यकता पूरी कर पाते है। जिंदा रहने के लिए ऑक्सीजन से लेकर पोषण के लिए खाना एवं जीवन निर्वहन के लिए अन्य संसाधन हमें इस एकमात्र घर – नीले ग्रह पृथ्वी ने ही तो दिए है। हम मनुष्यों के दैनिक क्रियाकलापों से पृथ्वी को हो रहे नुकसान के बारे में सचेत करने के लिए समय समय पर भूकंप, बाढ़, सुखा आदि के रूप में पृथ्वी हमको सजग हो जाने की चेतवानी देती है। इसके बावजूद हम मनुष्य उन सभी संकटों को प्राकृतिक आपदा का नाम देकर सजग होने से विमुख हो जाते है जिसके परिणामस्वरूप ऐसे संकट बार बार देखने को मिलते है। वहीं इस अराजकता और अजागृति के चलते अब प्रदूषण से लेकर जनसंख्या विस्फोट तक, विभिन्न समस्याएं लगातार बढ़ रही है जो हम मनुष्यों के क्रियाकलापों का ही परिणाम है। उपस्थास्ते अनमीवा अयक्ष्मा अस्मभ्यं सन्तु पृथिवि प्रसूताः । दीर्घ आयुः प्रतिबुध्यमाना वयं तुभ्यं बलिहृतः स्याम॥ (“हम दीर्घायु जीवन की इच्छा रखते हैं, हमारे बच्चे भी दीर्घायु तथा बीमारी और उपभोक्तावाद से मुक्त होने चाहिए। हमारा पालन-पोषण धरती माता की गोद में होता है। हम दीर्घायु जीवन जी सकते हैं बशर्ते, हम सतर्क रहें, सावधान रहें और पृथ्वी को अपना सब कुछ समर्पित कर दें।” – अथर्ववेद 12.1.62) भारतीय दर्शन में हम देखते है कि प्रारंभ से ही प्रकृति अनुकूल दिनचर्या अपनाने के लिए मनुष्य को प्रेरित किया गया। गांधी जी का कहा कथन – भारत की आत्मा उसके गांवों में बस्ती पर चिंतन करते हुए यह सामने आता है कि पूर्व में ग्रामीण लोग एक आदर्श जीवनशैली जीते थे जिसमें प्रकृति के अनुकूल कार्यों से लेकर आपसी सद्भाव भी देखने को मिलता है। लेकिन भारतीय संस्कृति के पश्चिमीकरण के कारण एक बड़ी जनसंख्या ने उपभोक्तावाद और पूंजीवाद के विचारों को महत्ता दी जिसके अनुरूप संसाधनों के विवेकपूर्ण उपभोग के बजाय लापरवाह उपभोक्ताओं को बढ़ावा मिला। लेकिन चूंकि भारत में लगभग 6.5 लाख गांवों में रहने वाले विभिन्न परिवारों में से कई में पारंपरिक शिक्षा को बढ़ावा मिलता रहा है, आज भी प्राचीन ज्ञान उन ग्रामीणों के पास संरक्षित है। ये वहीं ग्रामीण है जो भले ही तकनीकी ज्ञान में कुशल न हो लेकिन व्यवहारिक ज्ञान से वह ग्रामीण परिवेश की समस्त समस्याओं को दूर करने में सक्षम है। समय समय पर इसके उदहारण भी देखने को मिले जब गांवों में प्रयोग में लाई जा रहे पारंपरिक समाधानों ने बड़े पैमाने पर भी समस्या को सुलझाया और चर्चा का विषय बने। यूपी के बागपत जिले के मूल निवासी जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने प्राचीन भारतीय प्रणाली को अपनाकर रेगिस्तान में हरियाली लाकर साबित किया कि संस्कृति की ओर ही उन्नति का रास्ता संभव है। उन्होंने राजस्थान में 11800 जल संरचनाएं बनवाकर 1200 गांवों को पानीदार बनाकर दस लाख लोगों के लिए काम किया। 12 नदियां पुनर्जीवित की। हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑल्टरनेटिव्स के संस्थापक सोनम वांगचुक ने भी पारंपरिक ज्ञान को संजोने का कार्य किया जिसके अंतर्गत उन्होंने लद्दाख क्षेत्र में खेती करने से लेकर वहां पर रहने संबंधी विभिन्न समस्याओं का समाधान निकाला और युवाओं को भी इस समाधान में सहभागिता का अवसर दिया जो पूरे विश्व में एक केस स्टडी बना हुआ है। जयपुर जिले के दूदू में लापोड़िया गांव के समाज सेवी, पर्यावरणविद् लक्ष्मण सिंह लापोड़िया ने गांव के ही बुजुर्ग कालू दादा के मार्गदर्शन में चौका पद्धति पर कार्य कर पांच साल में पूरा जंगल तैयार कर गांव के पशुओं के लिए चारागाह की व्यवस्था की जिसके लिए भारत सरकार ने पद्मश्री दिया और इजरायल की संस्था ने अपने देश आमंत्रित कर उनसे ट्रेनिंग भी ली। भारत के गांवों में आज भी वैश्विक समस्याओं का समाधान संरक्षित है जिसके लिए आवश्यक है कि गांवों में पारंपरिक शिक्षा के आदान प्रदान को बढ़ावा दिया जाए, स्थानीय प्रशासन को ऐसी तकनीकों और पद्धतियों का संकलन, संग्रह और अन्य स्थानों पर लागू करना चाहिए। ग्रामीणों को इन सतत प्रणालियों को बढ़ावा देने पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य लेकर चल रही सरकार को इसको जनसाधारण के बीच प्रचारित करना चाहिए कि अब भारत के लिए समस्याओं से जूझने का समय नहीं रह गया है। सभी नागरिकों को समस्याओं से ऊपर उठकर विकास में सहभागिता के अवसर खोजकर उनमें भागीदारी करनी चाहिए जिसके परिणामस्वरूप विकसित भारत के लक्ष्य के अनुरूप कार्य करना संभव हो सकेगा। वहीं आधुनिक भारतीयों में मजबूत हो चुकी पूंजीवाद की अवधारणा में मानवता को बरकरार रखने के लिए क्रेडिट स्कोर की तर्ज पर सिटीजन स्कोर स्कीम निकाली जा सकती है जिसमें नागरिकों को मिशन लाइफ, मिलेट्स एवं अन्य कार्यक्रमों में प्रतिभाग करने पर स्कोर प्रदान कर उनकी प्रतिभागिता के अनुरूप विभिन्न योजनाओं में वरीयता दी जा सकती है। लेखक के बारे में: बागपत के मूल निवासी युवा लेखक अमन कुमार, वर्तमान में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से समाज कार्य में स्नातक की शिक्षा ग्रहण कर रहे है। मात्र 20 वर्ष की उम्र में उन्होंने सामाजिक उद्यम, तकनीकी नवाचार, युवा सशक्तिकरण और सामाजिक विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। भारत सरकार के स्वयतशासी संगठन नेहरू युवा केन्द्र बागपत और विज्ञान प्रसार से संबद्ध उड़ान युवा मंडल की अध्यक्षता करते हुए अमन ने प्रोजेक्ट कॉन्टेस्ट 360 लॉन्च कर 70 लाख से अधिक लोगों को शैक्षिक अवसरों, कार्यक्रमों एवं संसाधनों से जोड़कर कीर्तिमान बनाया।



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