एक अदद पक्की सड़क तो दे दो सरकार !! ग्रामीणों श्रमदान कर चार किलोमीटर तक पहाड़ काटकर बनाई सडक, भावुकता से भरे ग्रामीणों ने कहा "लेकिन है तो अस्थाई" मरीजों को डोली छांदकर मेन रोड तक ले जाना पड़ता है, कई बार तो रास्ते में ही मौत तक हो जाती है : ग्रामीण
गोमिया। माउंटेन मैन प्रख्यात बिहार के दशरथ मांझी की कहानी तो आप सभी ने सुनी है जिन्होंने बिहार के एक गांव में एक हथौड़े और छेनी की मदद से पूरे पहाड़ को काटकर सड़क बना दी थी। कुछ इसी तरह का जज्बा बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड अंतर्गत सुदूरवर्ती अति उग्रवादग्रस्त बड़की चिदरी पंचायत के ढोढी गांव के लोग भी रखते हैं।
गांव वाले दशरथ मांझी के नक्शे कदम पर काम करते नजर आ रहे है। शासन और प्रशासन की अनदेखी का शिकार हुए इस गांव के लोग अब खुद श्रमदान कर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने में जुटे हैं। जंगल में बसे आदिवासी बहुल ढोढी गांव के लगभग 300 की आबादी वाले गांव के ग्रामीणों ने आवागमन के लिए 5 किलोमीटर रास्ता बनाने के लिए लोग अथक मेहनत कर रहे हैं।
क्या है समस्या ?
गांव के लोगों को वर्षों से शिक्षा, स्वास्थ्य सहित मुलभुत सुविधाओं को पाने के लिए या बीमारी से ग्रसित मरीजों को बल्ली से खाट को बांधकर अस्पताल जाने के लिए करीब 5 किलोमीटर की दुर्गम दूरी पथरीली चढानो से होकर तय करना पड़ता था। जंगल में बसे इस गांव के लोग नेताओं और अधिकारियों के दरवाजे ठकठकाकर परेशान हो गए है। लिहाजा गांव के लोग खुद उस पहाड़ के सीने पर सड़क बनाने को मजबूर हैं। अब ये लोग प्रतिदिन सुबह शाम खुद श्रमदान करके अपने गांव से प्रखंड मुख्यालय व मुख्य सडक से जुड़ने का फैसला कर लिया और सड़क बनाने में जुट गए है।
क्या कहते हैं गांव वाले ?
गांव के रहने वाले रामधन मांझी ने बताया कि ढोढी गांव लंबे समय से सड़क की समस्या से जूझ रहा था, जिसके बाद ग्रामीणों ने खुद ही इसका हल निकालने की ठान ली। बताया कि केवल सडक नहीं रहने के कारण गांव में कई मौतें हो चुकी है कभी प्रसूता और बच्चे दोनों की मौत हो गई, तो कई बार गर्भ में हीं बच्चे की मौत हो गई जिनका जीवित उदाहरण वे खुद हैं। उन्होंने बताया कि उनके खुद के दो बच्चे पत्नी के गर्भ में ही मर गये कारण मात्र सड़क से अस्पताल पहुंचने में देर हुई और बच्चे ने गर्भ में ही दम तोड़ दिया। मौजूद डॉक्टरों ने भी मौत का कारण देर से अस्पताल पहुंचना बताया।
गांव के हीं लखीराम मांझी ने बताया कि कई बार मामूली बुखार जैसी समस्या आने पर मरीज को चार लोगों कि मदद से डोली छांदकर (खाट में बांधकर) मेन रोड तक ले जाना पड़ता है। गांव से पांच किलोमीटर की दुर्गम पहाड़ी और पथरीली रास्तों की दुरी तय करते हैं और मरीज अस्पताल पहुंचते पहुंचते काल के गाल में समां जाते हैं। अभी तक तीन लोगों की मृत्यु हो चुकी है। बताया कि पूर्वजों ने तो किसी प्रकार अपनी जिंदगी गुजार दी परंतु जैसे जैसे पढ़ी लिखी आबादी का समावेश गांव में हो रहा है बच्चे शिक्षित हो रहे हैं तो अब जाकर किसी के पास मोटरसाईकिल है तो किसी के पास साइकिल है परंतु आवागमन के लिए रास्ता नहीं होने के कारण हमलोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। लिहाजा पुरे गांव के ग्रामीण एकजुट होकर स्वयं श्रमदान कर सडक बनाने में जुटे हैं।
वहीं श्रमदान कर रही स्थानीय महिला सुरुजमुनी देवी ने बताया कि अवागमन के लिए तो रस्ता नहीं है फिर भी जंगली रास्तों से गुजर जाते हैं लेकिन अगर दिन बरसात के हो तो फिर उनके सामने हाथ में हाथ धरे रहने के सिवाय कोई रास्ता नहीं होता। बताया कि उनके गांव में प्रशासन आपके द्वार कार्यक्रम का भी आयोजन हुआ अधिकारीयों ने समुचित मुलभुत सुविधाएं उलब्ध करने का आश्वासन भी दिया परंतु मिला कुछ भी नहीं। अब तक सड़क नहीं बनी, लिहाजा वो भी ग्रामीणों के साथ मिलकर सड़क बनाने के काम में लग गए है। पुरुष पहाड़ों पत्थरों को काट रहे हैं तो महिलाएं भी दूर दूर से पत्थर चुनकर ला रहे हैं और मिट्टी हटाने का काम कर रही हैं।
प्रेम टुडू ने बताया कि अकेले दम पर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने वाले बिहार के दशरथ मांझी अपने कारनामे के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। अब वैसा ही कारनामा हम ढोढी गाँव लोगों ने कर दिखाया है। दुर्गम पहाड़ी को काटकर चार किलोमीटर का रास्ता बना दिया है। एक किलोमीटर और बाकि है जो कुछ दिनों की मेहनत से पूरा हो जाएगा। उन्होंने बताया कि अगर सरकार लालजी मांझी के घर से पिंडरा मोड़ तक (ढाई किलोमीटर) व चेतलाल मांझी के घर से महतो मांझी के घर तक (ढाई किलोमीटर) सडक दे दे तो हमें आवागमन सहित मुलभुत समस्याओं को दूर करने में काफी सहूलियत होगी। वैसे गाँव में पानी की भी बड़ी विकट समस्या है कुएं सुख गये हैं पानी लाने के लिए महिलाओं व बच्चियों को कई किलोमीटर तक पैदल भटकना पड़ता है। इस लिहाज से सरकार को पीने के पानी किए एक डीप बोरिंग कि भी व्यवस्था करनी चाहिए।
सडक बनाने के लिए पत्थर ढो रही सोनिया देवी ने बताया कि गांव के लोगों ने जब स्वयं ही पहाड़ी को काटने की ठानी तो अन्य ग्रामीण भी उनकी मदद करने में जुट गए, जिसके चलते महज 15 दिनों में 4 किलोमीटर का अस्थाई रास्ता तैयार कर लिया गया है।
सरकार से की पक्की सड़क बनवाने की मांग
रामधन मांझी, लखीराम मांझी, सुरुजमुनी देवी, प्रेम टुडू, सोनिया देवी सहित ग्रामीणों ने सरकार से मांग की है कि इस सड़क को पक्का कर दिया जाए, जिससे इस रास्ते पर छोटे-बड़े वाहनों का आना-जाना शुरू हो सके और लोगों की दिक्कतें कम हो जाएं। उनका कहना है कि इस सड़क से चुट्टे, लोधी, चतरोचट्टी, चिदरी, के लोग भी आसानी से रामगढ़, हजारीबाग, रांची और बोकारो आदि शहर आ-जा सकते हैं।
मामले में गोमिया क्या कहते हैं बीडीओ ?
गोमिया बीडीओ कपिल कुमार।ने बताया कि मामला संज्ञान में आया है, संभावना है कि मामला वन विभाग से जुड़ा हो सकता है जिस कारण अब तक पक्की सड़क का निर्माण नहीं हो सका है। फिर भी मैं अपने स्तर से जांच कर मनरेगा या अन्य विभाग से अतिशीघ्र सड़क निर्माण की दिशा में कार्रवाई करेंगे।