गोमिया। गोमिया थाना अंतर्गत अति उगरवादग्रस्त सिंयारी पंचायत के धमधरवा गांव में बीते 10 दिन पूर्व खाना बनाने के लिए चूल्हा जलाने के क्रम में शरीर का 60 फीसद हिस्सा झुलस चुके अधेड़ बबेसहारा आदिवासी सरजू मांझी आग की चपेट में आने के बाद से अभी तक जिंदगी की लड़ाई लड़ रहा है। इस हादसे में उसका बायां बाजू, बांया पैर, पेट व छाती बुरी तरह झुलस कर जख्मी हो गया। खुद हीं किसी प्रकार शरीर के कपड़ों मे लगी आग बुझाई। अकेले चीख पुकार पर आसपास के ग्रामीण पहुंचे और फिर उसके भतीजे को घटना की जानकारी दी। पहले दो तीन दिन तक घर मे हीं उसका घरेलू इलाज किया गया स्थिति नहीं सुधरा तो एक ग्रामीण चिकित्सक को पकड़कर उसका इलाज किया जा रहा है, लेकिन आर्थिक पिछड़ापन के कारण अस्पताल ले जाने या अस्पताल मे इलाज कराने की हिम्मत और व्यवस्था दस दिन बाद भी नहीं हो सकी है।
"उस दिन काम (मजदूरी) करने गए थे शाम में काम करके आने के बाद खाना बनाने के लिए चूल्हा जलाने चले गए, चूल्हा जलाने के क्रम में ही आग की चपेट में आ गए। चूल्हे की लकड़ियों में लगने वाली आग की आंच पहले पहने हुए लुंगी में पकड़ी, फिर अचानक गंजी और कंधे में रखे गमछे में पकड़ लिया। किसी प्रकार लुंगी और कंधे के गमछे को तो हटा लिया परंतु आग लगी गंजी को शरीर से अलग करने की मशक्कत में शरीर का एक हिस्सा से अधिक पूरी तरह झुलस गया। घर पर कोई नहीं है पत्नी का देहांत भी एक वर्ष पूर्व जोंडिस की बीमारी से हो चुका है। एक बेटी भी है तो वह ब्याहकर ससुराल चली गई है, शरीर बुरी तरह झुलसा है। अपना भला-बुरा भी समझ सकता हूं लेकिन अस्पताल जाने के लिए आर्थिक स्थिति ने भी मेरा हाथ पैर बांध रखा है। इसीलिए पिछले 10 दिन से बेबस व लाचार होकर भाई के घर में ईलाज के आभाव में तड़प रहा हूं। भतीजा देवीराम मांझी और उसका पुत्र बिनीराम सोरेन के भरोसे घर पर ही स्नान, भोजन और इलाज चल रहा है।"
_______पीड़ित सरजू मांझी
ग्रामीण बाबूदास टुडू ने बताया कि 10 दिन पहले खपरैल मकान में खाना बनाने के लिए चूल्हा जलाते समय धमधरवा गांव निवासी 48 वर्षीय सरजू मांझी (दिहाड़ी मजदूर) बुरी तरह झुलस गया था। जिससे उसके पेट, छाती व बाएं बाजू, बाएं पैर में गहरा जख्म हो गया है। प्राथमिक घरेलू इलाज में आलू को कूटकर और कोड़ी का तेल उसका लेप शरीर के झुलसे हिस्सों लगाया गया। गोमिया प्रखंड के इस सुदूरवर्ती गांव में अधिकांश लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं, यातायात की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। गंभीर रूप से झुलसे इस अधेड़ आदिवासी को कई समाज सेवकों ने देखा, लेकिन किसी इसकी तरफ दोबारा पलट कर नहीं देखा उसकी दशा पर किसी को तरस नहीं आया।
इधर पीड़ित सरजू मांझी के भतीजा महेश मांझी व देवीराम मांझी ने बताया कि इसका कोई भी अपना सगा इस दुनिया मे नहीं है। 10 दिन से अधिक हो जाने के बाद अब इंफेक्शन का डर सताने लगा है। उन्होंने स्थानीय जनप्रतिनिधियों व जिला प्रशासन से पीड़ित के समुचित इलाज की गुहार लगाई है।
वहीं जानकारी मिली है कि देर शाम मामला गोमिया के संबंधित अधिकारियों के कान में जाने के बाद उक्त पीड़ित मरीज सरजू मांझी को गोमिया सीएचसी के एम्बुलेंस द्वारा पहले गोमिया सीएचसी लाया गया, प्राथमिक जांच व इलाज के बाद डॉ. एच बारला ने पीड़ित मरीज की स्थिति को देखते हुए तत्काल 108 से बोकारो सदर रेफर कर दिया है।