अगर किसी व्यक्ति में कुछ करने का हौसला हो तो वह किसी भी चुनौती को मात दे सकता है। आज हम बात करेंगे गोमिया के गैरवाडीह बस्ती निवासी सह विस्थापितों के हक की लड़ाई लड़ रहे युवा नेता बबलू यादव की। बबलू यादव साधारण परिवार से आते हैं। बबलू यादव उनके माता-पिता और दो छोटी बहन कुल 5 सदस्यों का यह परिवार साधारण सी गृहस्थी से चला आ रहा था। उसका मन शुरू से ही समाजसेवा के काम में ज्यादा लगता था। थोड़ा बड़ा हुआ तो उसके मन में राजनीति में सक्रिय होकर स्थानीय स्तर पर गांव के शोषित-वंचित ग्रामीणों के लिए समाजसेवा करने की प्रेरणा जग गयी।
पिता के मौत के बाद लडख़ड़ाई जिंदगी, बेचनी पड़ी सब्जी
बबलू बताते हैं कि वे कक्षा चौथी की पढ़ाई कर हीं रहे थे कि इसी दौरान वर्ष 2004 में उनके पिता मदन यादव की मृत्यु हो गई, लगा कि जैसे अब पूरा परिवार हीं बिखर जाएगा। उसी अल्पायु में गृहस्थी की बागडोर थामने का समय आ जाएगा कभी उसकी कल्पना भी नहीं की थी। बताया कि पिता की मौत के बाद दो छोटी बहनों की जिंदगियां संवारना और मां की आंखों के आंसू और उनके साथ खुद के भी सपने पूरे करने का समय था, तो उसी उम्र में वे टोकरियों में सब्जी लेकर बेचने निकल पड़े। बताया कि वर्ष 2010 से वर्ष 2018 तक उन्होंने कथारा मोड़ में सब्जी बेचने का भी कार्य किया। वर्ष 2011 में उन्होंने अपने बूते मैट्रिक की परीक्षा फिर 2013 में इंटर की परीक्षा पास हुए। बबलू बताते हैं कि अपने पिता के गुजर जाने के बाद परिवार की सारी जवाबदेही का दायित्व निर्वाह उनके कंधे पर था। सब्जी बेचने के दौरान भी कई बार पारिवारिक और आर्थिक परिस्थितियां लड़खड़ाती रही, उतार-चढ़ाव के बीच में उन्हें कई बार पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी बताया कि वर्ष 2019 में उन्होंने किसी प्रकार ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई पूरी की।
मामा का भी योगदान अहम
बबलू आगे बताते हैं कि पिता के देहांत के बाद 4 सदस्यीय हमारे परिवार को सदैव से ही उनके मामा रामेश्वर चौधरी का उन्हें बैक सपोर्ट मिलता रहा। सुख-दु:ख में उनके मामा सशरीर खड़ा रहते थे और उन्हें ससमय हिम्मत और हौसला देते रहते थे। उन्होंने बताया कि पिता के गुजर जाने के बाद अगर मामा भी साथ खड़े नहीं होते तो शायद वे आज जिस मुकाम के करीब हैं तथा जो विस्थापितों के विस्थापन व उनके हक की जो लड़ाई लड़ रहे हैं वह भी अधुरा हीं रह जाता। बताया कि उनके मामाजी का भी उनके जीवन मे अहम योगदान है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) से जुड़े बबलू
बबलू ने आगे बताया कि ग्रेजुएशन करने के दौरान ही वे वर्ष 2017 में झारखंड के पूर्व व प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) (जो अब भाजपा में विलय हो चुकी है) में शामिल हुए और बतौर कार्यकर्ता बनकर अपने क्षेत्र के छोटे-बड़े विकास कार्यों, समस्याओं का निदान करते रहे। बबलू ने बताया कि राजनीतिक परिपेक्ष्य में उन्हें जेवीएम सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी का मार्गदर्शन व सहयोग बराबर हीं मिलता रहा जिस कारण क्षेत्र में उनकी काफी हद तक भी प्रतिष्ठा बढ़ी।
अब लड़ रहे विस्थापितों के हक की लड़ाई
बबलू ने आगे बताया कि एक ओंर जहां जेवीएम पार्टी का विलय भाजपा में हो गई वहीं उन्होंने भी अपने क्षेत्र में ओएनजीसी और सीसीएल क्षेत्र में विस्थापितों के हक की लड़ाई लड़े। बताया कि ओएनजीसी द्वारा क्षेत्र में उपजाऊ खेतों व सड़क को पाइपलाइन व भारी मालवाहक वाहनों द्वारा नुकसान पहुंचाया गया जिसे रैयत व ग्रामीणों के साथ मिलकर उसका निदान कराया। इसीप्रकार सीसीएल से गैरवाडीह के ग्रामीणों को सीएसआर के माध्यम से खेलकूद सामग्रियों का वितरण कराया। बताया कि अभी हाल ही में उन्होंने सीसीएल से क्षेत्र में सीएसआर से डीप बोरिंग व तालाब में घाट निर्माण सहित अन्य मांगों को रखा है। जिसे जल्द हीं पूरा करने का आश्वासन भी प्राप्त है।
O2O SELL / Gomia Inbox - 1 Admin ने खास तौर पर विस्थापित नेता बबलू यादव से बात की। इस दौरान उन्होंने अपने संघर्षों की कहानी को बयां किया।