बंशीधर नगर :
उत्तेजना से नहीं, चिंतन से करें समस्या का समाधान:-जीयर स्वामी।
जब -जब पृथ्वी पर उनकी आवश्यकता होती है, वे अवतरित होते हैं। महाप्रलय के समय एकमात्र परमात्मा ही विराजमान रहते हैं। वे सारे अवतारों के कर्ता हैं। परमात्मा वस्तुतः अवतार नहीं, अवतारी हैं। समस्त अवतार परमात्मा (नारायण) से ही निःसृत होते हैं। सभी अवतार परमात्मा के रूप हैं। वे परमात्मा से अभिन्न हैं। श्री जीयर स्वामी ने भागवत कथा के सूत-शौनक संवाद की चर्चा करते हुए कहा कि धान का एक बीज बोने से सैकड़ों दाने आ जाते हैं। बीज रूप में बोया गया धान का मूल अलग है और उससे प्राप्त दाना का स्वरूप अलग है। उसी तरह परमात्मा मूल से ही अनेक रूपों में अवतार लेते हैं।
परमात्मा के अनेक अवतारों को आश्चर्य नहीं मानना चाहिए। उन्होंने कहा कि परमात्मा के अनन्त अवतार हैं। इनमें एक हजार विशेष हैं। उनमें एक सौ आठ प्रसिद्ध है, जिनमें 24 अवतार प्रमुख है। इनमें से चार अवतारों की विशेष प्रसिद्धि है। इन चार अवतारों में भी दो बहुचर्चित हैं। इनमें से भी एक अवतार को सर्वाधिक प्रमुख माना गया है, जो कृष्णावतार है। स्वामी जी ने कहा कि चारों युगों की अवधि अलग-अलग है। कलियुग का काल चार लाख बतीस हजार वर्ष, द्वापर का आठ लाख चौसठ हजार, त्रेता का बारह लाख छियान्वे हजार और सत्युग का सत्रह लाख अट्ठाइस हजार है।
स्वामी जी ने कहा कि छल-छद्म और पाखंड से बड़ा आदमी बनने वाला बहुत दिनों तक टिक नहीं पाता, क्योंकि उसकी बुनियाद कमजोर होती है। वह हमेशा निडर होने का दिखावा करता है, लेकिन भीतर से काफी कमजोर होता है।