स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज़: हिंदू अल्पसंख्यक इलाका तमिलनाडु के पेरंबलुर जिले के कलाथुर में बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय हिंदू मंदिरों से जुलूस निकालने का लंबे समय से विरोध करता रहा है और हिंदू मंदिरों से जुलूस निकालने पर प्रतिबन्ध लगाने को लेकर मद्रास हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
आप को बता दे इस्लामी कट्टरपंथियों ने हिंदू त्योहारों को ‘पाप’ करार दे रखा था। इस मामले में सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस एन किरुबकर्ण और पी वेलमुरुगन की 2 सदस्यीय पीठ ने अपना फैसला सुनाया। बेंच ने धार्मिक असहिष्णुता को देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के लिए खतरनाक बताया है। कोर्ट ने कहा कि अगर एक पक्ष से संबंधित धार्मिक त्योहारों के आयोजन का विरोध दूसरे धार्मिक समूह द्वारा किया जाता है, तो इससे दंगे और अराजकता फैल सकती है। पुलिस उपाधीक्षक के हलफनामे को पढ़ने के दौरान मद्रास उच्च न्यायालय ने देखा कि 2012 के बाद से मंदिर के जुलूसों पर आपत्ति जताई गई थी। जबकि, उससे पहले इस तरह की कोई समस्या नहीं थी। न्यायालय ने जानकारी दी कि मंदिरों से जुलूस निकालने को लेकर कोर्ट की अनुमति के बावजूद मुस्लिम कट्टरपंथियों ने आपत्ति जताई।
मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले के दौरान टिप्पणी की, “केवल इसलिए कि एक धार्मिक समूह विशेष इलाके में हावी है, इसलिए दूसरे धार्मिक समुदाय को त्योहारों को मनाने या उस एरिया की सड़कों पर जुलूस निकालने से नहीं रोका जा सकता है। अगर धार्मिक असहिष्णुता की अनुमति दी जाती है, तो यह एक धर्मनिरपेक्ष देश के लिए अच्छा नहीं है। किसी भी धार्मिक समूह द्वारा किसी भी रूप में असहिष्णुता पर रोक लगाई जानी चाहिए।” अदालत ने आगे कहा, “इस मामले में, एक विशेष धार्मिक समूह की असहिष्णुता उन त्योहारों पर आपत्ति जताते हुए दिखाई जा रही है, जो दशकों से एक साथ आयोजित किए जा रहे हैं। गलियों और सड़कों से निकलने वाले जुलूस को सिर्फ इसलिए प्रतिबंधित करने की माँग की गई क्योंकि इलाका मुस्लिम बहुल है यहाँ कोई भी हिंदू त्योहार या जुलूस नहीं निकाला जा सकता है।” न्यायालय ने तर्क दिया कि अगर इस तरह के मामलों को स्वीकार किया गया, तो कोई भी अल्पसंख्यक समुदाय देश के ज्यादातर हिस्सों में अपने त्योहारों को मना ही नहीं पाएगा।
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