स्टाफ रिपोर्टर, एएनएम न्यूज़: झारखंड आदिवासी बहुल क्षेत्र है फिर भी पिछले आठ दशकों के जनगणना के आकलन इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि आदिवासी जनसंख्या का प्रतिशत लगातार कम हुआ है। आदिवासी सरना धर्मावलंबियों की घटती जनसंख्या एक गंभीर सवाल है।जिस धर्म की आत्मा ही प्रकृति व पर्यावरण की रक्षा है, उसको मान्यता मिलने से भारत ही नहीं पूरे विश्व में प्रकृति प्रेम का संदेश फैलेगा। आदिवासी सरना समुदाय पिछले कई वर्षों से अपने धार्मिक अस्तित्व की रक्षा के लिए जनगणना कोड में प्रकृति पूजक सरना धर्मावलंबियों को शामिल करने की मांग को लेकर संघर्षरत हैं। प्रकृति पर आधारित आदिवासियों के पारंपरिक, धार्मिक अस्तित्व की रक्षा की चिंता निश्चित तौर पर एक गंभीर सवाल है। विधायक बंधु तिर्की ने झारखंड के 14 लोकसभा और छह राज्यसभा सांसदों को पत्र लिखकर जनगणना 2021 में राज्य के आदिवासियों के लिए अलग सरना कोड का प्रावधान लागू करने की अपील की है। उन्होंने कहा है कि झारखंड राज्य के आदिवासीयों की वर्षों पुरानी मांग सरना कोड को ध्वनि मत से पारित कर केंद्र सरकार को भेजा गया है। ऐसे समय में आज सरना धर्म कोड की मांग इसलिए उठ रही है कि प्रकृति पूजक आदिवासी सरना धर्मावलंबी अपनी पहचान के प्रति आश्वस्त हो सकें।