खलारी - सीसीएल एनके एरिया में रहने वाले मजदूरों के बीच अब यूनियन के नेताओं के प्रति आक्रोश देखने को मिल रहा है. ऐसा इसलिए कि मजदूरों के प्रतिनिधि बनकर उनकी कोई भी समस्या का समाधान नेतागण नहीं करा पा रहे हैं. जिसके कारण दिन रात मेहनत कर कोयला उत्पादन के बदौलत अपने क्षेत्र और कंपनी को करोड़ों का मुनाफा कमा कर देने वाले यह मजदूरों जर्जर आवास, छत से टपकते पानी, बजबजाती नालियां के बीच नारकीय जीवन गुजार रहे हैं. मजदूरों ने अपनी समस्या को कई बार अपने-अपने यूनियन के माध्यम से प्रबंधन के पास रखवाया, लेकिन उनकी समस्या जस की तस बनी हुई है. क्षेत्र में हुए कायाकल्प योजना के तहत क्वार्टर में जो काम हुए वह संतोषजनक नहीं है. जिसका दुष्परिणाम है कि बरसात के मौसम में छतों से पानी रिस रहा है. दीवार और छतों के प्लास्टर टूट चुके हैं. मानो यह मजदूरों का आवास नहीं जानवरों का तबेला बन गया है. मजदूर अब यूनियन प्रतिनिधियों पर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं जो कि वाजिब भी है. मजदूरों के सोशल मीडिया व्हाट्सएप ग्रुप में अब यूनियन नेताओं की धज्जियां उड़ाई जा रही है. मजदूर अब सदस्यता शुल्क भी नहीं देने की बात कर रहे हैं. यूनियन प्रबंधन गठजोड़ की बातों को इस ग्रुप में प्रमुखता के साथ उठाया जा रहा है. युवा और पढ़े-लिखे कुछ मजदूर वर्ग के लोगों ने सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों को चिन्हित कर उन्हें मजदूर का हितैषी नहीं बल्कि प्रबंधन का दलाल तक भी साबित कर दिया है. अब सवाल उठता है कि आखिर कार इन मजदूरों की समस्या सुनी क्यों नहीं जाती. यूनियन मजदूरों की समस्याओं के समाधान के लिए ही बनाई गई थी जो वर्तमान में अब यूनियन खुद अपने और अपने नेताओं के लाभ के बारे में ही चिंतित दिखाई देती है. दूर दूर तक पीड़ित मजदूरों से इनका अब कोई वास्ता नहीं रहा. समस्या से परेशान मजदूरों ने अपने-अपने जर्जर आवासों की तस्वीर और वीडियो भी पोस्ट कर रहे हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे समस्या से ग्रसित मजदूर सोशल मीडिया पर ही इन नेताओं के विरोध में आंदोलन छेड़ चुके हैं. जिसका परिणाम भी बेहतर होने की संभावना दिख रही है, क्योंकि सोशल मीडिया ग्रुप में यूनियन के प्रतिनिधि भी जुड़े हुए हैं और उनके साथ प्रबंधन लोग भी जुड़े हुए हैं. शायद इस तरह का आंदोलन कोयला क्षेत्र में पहली बार शुरू किया गया है. यदि सोशल मीडिया पर शुरू किया गया यह आंदोलन जोर पकड़ा तो उम्मीद जताई जा रही है कि इनकी समस्याओं का समाधान भी जल्द से जल्द हो सकेगा. बाहर हाल देखना दिलचस्प होगा कि मजदूरों का यूनियन के प्रति बढ़ता आक्रोश के आगे यूनियन अब अपनी जिम्मेवारी को किस तरह से निभाता है और इनकी समस्याओं के समाधान के लिए इनकी प्राथमिकता क्या रहेगी.
🔷 पत्रकार अनिल कुमार पांडे की कलम से🔷