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सोशल मीडिया के चलते भारत पाकिस्तान विभाजन के 75 साल बाद मिले दो बिछड़े भाई

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location_on नई दिल्ली access_time 17-Aug-22, 05:12 PM

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नईदिल्लीः सोशल मीडिया का सकारात्मक लाभ अनेक बार हैरान कर देता है। यह अलग बात है कि इन आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल अब गलत काम के लिए अधिक किया जाता है। इस बार भारत और पाकिस्तान के विभाजन के 75 साल बाद दो भाई आपस में मिल पाये हैं। पाकिस्तान के यूट्यूब चलाने वाले नासिर ढिलन ने दोनों भाइयों को मिलाने में प्रमुख भूमिका निभायी है। वह पेशे से किसान और हाउसिंग का कारोबार करने वाले नासिर शौकिया यूट्यूबर हैं। इस माध्यम से उन्होंने अब तक करीब तीन सौ परिवारों की मदद की है। पाकिस्तान में रहने वाले सिक्ख भूपिंदर सिंह इसमें उनके मददगार बने हैं। उन्होंने कहा कि उनकी कमाई का जरिया दूसरा है। वह सिर्फ यह काम इंसानियत के नाते करते हैं। सिक्का खान और सादिक खान दो भाई हैं। इनमें सादिक ही बड़े हैं। 1947 में देश विभाजन की विभीषिका के बीच जब दोनों अलग हो गये थे तो सादिक की उम्र 10 साल और सिक्का की छह साल थी। भीषण दंगे के बीच सादिक पाकिस्तान के नागरिक रह गये जबकि सिक्का खान भारत में रह गये थे। दोनों ने काफी समय से एक दूसरे को तलाशने की कोशिश की थी। सिक्का को याद है कि दंगे के वक्त उनकी मां ने नदी में कूदकर जान दे दी थी। बाद में गांव के लोगों की देखभाल से ही वह बड़ा हुआ। बाद में दूसरे रिश्तेदारों ने भी मदद की। भतींडा में वह रहते हैं। वह जानते थे कि उसका बड़ा भाई जीवित है लेकिन कुछ अता पता नहीं चल रहा था। तीन साल पहले भी उन्होंने पड़ोस के एक डाक्टर से इसमें मदद करने की गुहार लगायी थी। नासिर के प्रयास से उसके बड़े भाई का पता चलने के बाद दोनों की मुलाकात तब संभव हुई जब करतारपुर गलियारा खोला गया। वरना इससे पूर्व दोनों देशों ने एक दूसरे का वीसा बार बार रद्द कर दिया था। यह अकेला मामला नहीं है। इस कोशिश में हिंदू भाई को उसकी मुसलिम बहन से मिलने का मौका मिला है। दंगे में परिवार की मौत की खबर सुनकर बलदेव सिंह के पिता ने अपनी पत्नी की बहन से शादी कर ली थी। बाद में पता चला कि उनसे भाई बहन किसी तरह जिंदा बच गये हैं। उसके बाद नासिर के प्रयासों से बलदेव सिंह औऱ गुरुमुख सिंह बहन को खोजा जा सका। जो पाकिस्तान जाने के बाद मुमताज बीबी बन गयी है। दोनों की मुलाकात भी अद्भूत रही है। मुमताज खुद भी अपने भाई से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई हैं। बाद में पता चला कि दंगे मे मां की हत्या के बाद बगल में ही यह नवजात बच्ची पड़ी हुई थी। एक मुसलिम परिवार ने उसे पालकर बड़ा किया और मुमताज के नाम से अपनी बेटी की तरह पाला।


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