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उपेक्षा के शिकार है सुप और टोकरी बनाने वाले कारीगर

location_on मदनपुर access_time 14-Nov-20, 08:55 AM

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प्रखंड क्षेत्र के बनिया पंचायत सैलबा टोला अंबेडकर नगर गांव खासकर दीपावली एवं छठ पूजा के समय पूजा के दउरा के लिए जाना जाता है. यहां की एक बहुत ही गरीब तबके के खास जाति समुदाय जिन्हें स्थानीय भाषा में डोम कहे जाने वाले टोकरी बनाने की कलाकारी के कायल स्थानीय लोगों के साथ-साथ अन्य जगहों के लोग भी हैं. यहां खासकर दीपावली से लेकर छठ तक टोकरी लेने के लिए लोगों की भीड़ जुटती है इस गांव में 12 से 15 घरों की एक छोटी सी बस्ती है जिसे लोग डोम टोली के नाम से जानते हैं यहां लोगों के जीविका का मुख्य स्रोत मजदूरी एवं बांस की टोकरी निर्माण है यहां से निर्मित टोकरी की डिमांड स्थानीय बाजारों के साथ-साथ अन्य जगहों पर है टोकरी के निर्माण की कलाकारी के लिए यहां के लोग की एक विशेष पहचान है खासकर इस जाति के लोग पिछले 50 वर्षों से भी अधिक समय से पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आ रही इस परंपरा के साथ-साथ जीविकोपार्जन का मुख्य स्रोत रहा है इस जाति की महिला पुरुष एवं बच्चों में भी टोकरी बनाने की कला कूट-कूट कर भरी है तीनों लोगों के द्वारा बनाए गए टोकरी की कलाकारी ऐसी की आंख टोकरी में चावल रखे तो एक दाना भी बाहर न गिरे लेकिन आज तक इस समुदाय के विकास के लिए इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधि की कला का परख नहीं होने के कारण इन लोगों की जिंदगी जस की तस बनी है आज इस कला का कोई मोल नहीं है क्योंकि इन कलाकारों के पास न तो मोटी पूंजी है और ना ही इन्हें कोई सहयोग करने वाला इन कलाकारों में से एक मदन डोम बताते हैं कि200 रुपये में एक बास खरीदते हैं जिसमें कम से कम 7 से 8 टोकरिया तैयार होती है तैयार टोकरियों की बाजार में 60 से 70 रुपये प्रति टोकरिया मिल जाती है इस व्यवसाय में हम लोगों की घर की महिलाएं भी काफी मदद करती है खासकर दिवाली से लेकर छठ व्रत तक अच्छी कमाई हो जाती है ऐसे टोकरीनिर्माण का कार्य पूरे साल चलता रहता है आसपास के व्यापारी आकर टोकरिया ले जाते हैं जिससे हम लोग का परिवार के भरण पोषण होता है अब बात आती है कि एक तरफ जहां सरकार के लोग बेरोजगारों को रोजगार देने की बात करते हैं वहीं कलाकार बेरोजगारों को अगर थोड़ी बहुत मदद की जाए तो इन समुदाय के लोगों का जीवन स्तर में काफी हद तक सुधार हो सकती है ग्रामीण क्षेत्रों में खासकर जीव का केंद्र संचालित होते हैं लेकिन इन समुदायों के लिए स्थानीय क्षेत्र के जीव का दिन की भी नजर इन लोगों पर नहीं जा रही है जिससे कि उनका विकास हो सके समाज के निर्माण में इनकी भी सहभागिता सुनिश्चित हो सके




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