एक तरफ देवी के रूप में नारी का पूजन किया जाता है और दूसरी तरफ उसी जीवंत नारी का अश्लील नृत्य कराया जाता है एवं संगीत बनाया जाता है।
हमारे भारतीय संस्कृति के आदर्श धर्म सनातन में नारी को देवी का स्थान मिला है। जहां सरस्वती, दुर्गा ,लक्ष्मी ,भगवती ,सीता काली इत्यादि महान देवियों के रूप में नारी का पूजन किया जाता है।
संस्कृत में श्लोक है "यस्ये पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमंते देवतः"
अर्थात जहां नारी जाति का पूजन किया जाता है वही देवता निवास करते हैं। लेकिन यह केवल ग्रंथों वहां ग्रंथों में लिखित है। यहां तो इसके विपरीत महिलाओं के प्रति कार्य होते हैं।
आप दशहरा, होली ,दिवाली एवं कई ऐसे शादी-विवाह पार्टी समारोह को देख लीजिए जहा महिलाओं का अश्लील नृत्य एवं अश्लील संगीत बजाकर हजारों पुरुष आनंद लेते हैं।
अब आप खुद विचार करें कि एक तरफ दशहरा में मां दुर्गा के रूप मे नारी का पूजन और दूसरी तरफ मंच पर जीवंत नारी का अश्लील नृत्य।
मुख्य रूप से भोजपुरी संगीत ने तो अश्लीलता की सारी हदें पार कर चुकी है। जहां संगीत में अश्लील शब्द से लेकर खुले रूप से गालियों तक के संगीत बजाएं जाते हैं।
डीजे संचालक, संगीत संस्थान संस्थापक एवं फिल्म इंडस्ट्री व्यवस्थापक समाज के लोग की मंशा एवं उनके इरादे अनुभव को पहचान कर संगीत का निर्माण करते हैं एवं बजाते हैं।
कई बार तो ऐसा भी समारोह होता है जहां खुद सरकार के जाने-माने विधायक मंत्री खुद अपने समारोह में अश्लील नृत्य एवं संगीत का आयोजन करते हैं।
सबसे शर्म की बात यह है कि कई विधायक अश्लील नृत्य के उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि के रुप में जाते हैं।
भाषा कोई भी बूरी नहीं होती चाहे वह भोजपुरी ,उर्दू,हिंदू, अग्रेजी या फारसी इत्यादि हो।
भाषा का सीधा अर्थ होता है किसी भी माध्यम से अपने मन के भाव या विचार को दूसरों के सामने प्रकट करना एवं उनके विचार को जानना।
लेकिन अगर किसी भाषा का दुरुपयोग हो जिससे किसी के संस्कृति भावना, धार्मिक भावना, उसके अस्तित्व मान प्रतिष्ठा पर ठेस पहुंचे तो उस प्रकार कोई भी भाषा गलत और अश्लील हो जाती है।
जो समाज में खुलेआम रूप से अश्लील नृत्य एवं संगीत का आयोजन किया जाता है। उसमें शब्दों का उच्चारण एवं नृत्य का संकेत बिल्कुल अश्लील एवं द्विअर्थी होता है।
हालांकि अश्लील नृत्य एवं संगीत को प्रोत्साहित एवं समर्थन खुद समाज ही करता है। क्योंकि समाज के बूढ़े बुजुर्ग, युवा, महिलाएं एवं छोटे-छोटे बच्चे तक अश्लील नृत्य एवं संगीत समारोह में चले जाते हैं। इस अश्लील नृत्य के आयोजन के लिए समाज के हर घरों से चंदा एकत्रित किया जाता है।
हालांकि ये सब ज्यादातर हमें पिछड़े एवं अशिक्षित तथा गांव में मिलते हैं।
कई बार हिंदी फिल्म इंडस्ट्रीज के अश्लील तत्वों के गाने होते हैं जो सार्वजनिक रूप से बजाय जाते हैं जिसके दो दो अर्थ होते हैं उसे हम द्विअर्थी संगीत कहते हैं।
आए दिन हम सब देखते- सुनते हैं कि किसी समारोह में खुलेआम अश्लील वस्त्र पहन कर महिलाएं हजारों पुरुषों के बीच नृत्य कर रही है।
अश्लील संगीत प्रतिदिन हमारे घर के आस-पास गली मोहल्ले एवं समारोह में खुलेआम रूप से बनाए जाते हैं।
अश्लील एवं द्विअर्थी संगीत लोगों को कहीं पर शर्मसार कर देते हैं।
संगीत जब खुलेआम रूप से अपने ध्वनि प्रज्वलित करती है तब सुनने वाले में कभी - कभी साथ कहीं बैठे घर के परिवार, समाज के लोग बहन बेटियां भाई मां बाप तथा घर के सभी सदस्य रहते हैं। उस समय कितना शर्मसार सा लगता है!
दिनदहाड़े मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार एवं लगातार दुष्कर्म की घटनाओं की खबरे प्रतिदिन आती रहती हैं। जिस तरह देश में भारत के नौजवान सैनिक सीमा पर मारे जाते हैं और प्रतिदिन उनकी खबरें आती रहती है जवाब एक आम सी हो गई है। उसी तरह महिलाओं पर शोषण जुल्म अत्याचार बलात्कार की घटनाए किसी मासूम की इज्जत लूटी जाती है वह भी एक आम सी बात बन चुकी है ।
भारत के सीमा पर जवान का शहीद होना और किसी महिला की इज्जत लूट जाना। यह दोनों चीजें दैनिक कार्य बन चुका है। अब तो अखबार इसे कहीं किसी बीच में स्थान दे देता है। क्योंकि यह तो रोज का आम मुद्दा है।
लेकिन यह उनके दिल में आजीवन कैसा स्थान रखेगा जिसके घर की बहू बेटी की इज्जत किसी ने लूट ली हो, किसी के बहन की अस्मत लूटी गई हो।
किसी का बेटा देश की सीमा पर शहीद हो गया?
इन सब के लिए आम बात कैसे हो सकती है?
हम सब समाज को मिलकर इसका पुरजोर एवं कड़े रुप से विरोध करना चाहिए।
क्योंकि इन्हीं अश्लील संगीत को सुनकर गलत कार्य करने की लालसा एवं दुष्कर्म जैसे महापाप एवम् घिनौनी हरकते सामने आती है।
आए दिन बलात्कार के मामले सामने आते हैं । ऐसे में अश्लील नृत्य एवं द्विअर्थी संगीत का प्रथम एवं बड़ी भूमिका होती है। अश्लील नृत्यांगना जो खुलेआम रूप से छोटे वस्त्र पहन कर हजारों पुरुषों, बच्चों , महिलाओं के सामने नृत्य करती है तो यह सोचने वाली बात है कि इसका प्रभाव कितना नकारात्मक होता है!
कई समारोह में लोग पैसा एकत्रित कर अश्लील नृत्य का आयोजन करते हैं।
जिसमें समाज के सभी लोग समायोजित होकर समर्थन करते हैं।
सर्वप्रथम सरकार से पहले समाज को सोच बदलने की आवश्यकता है।
अश्लील गीतों के शोर से सब परेशान हैं। इस अश्लीलता की खुलेआम धज्जी उड़ायी जा रही है। शहर के कुछ युवा चाहते हैं कि अश्लील गीतों का शोर थमे किंतु इस पर अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल रही है। ऐसे गीतों से समाज पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। हद यह कि कम उम्र लड़किया और लड़के इस पर अश्लील संकेतों के साथ सार्वजनिक तौर पर ठुमके भी लगाते हैं।
अतः उच्च अधिकारी एवं प्रशासन तथा सरकार से अश्लील एवं द्विअर्थी संगीत पर व्यावहारिक बैठक कर अश्लील गीतों को बंद करने की अपील की जाये। डीजे संचालक एवं नृत्य कला मंच संस्थापक एवं संगीत संस्थान कर्मचारियों को कड़ी चेतावनी देकर इस बार पुनः रोक लगानी चाहिए। पदाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर अश्लील गानों पर रोक लगाने की माग की जानी चाहिए। डीजे संचालकों द्वारा खुले आम भोजपुरी अश्लील एवं द्विअर्थी गाने बजाये जा रहे है, जिसका समाज पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। आम लोग इससे पूरी तरह परेशान है।
कोई भी संगीत मार्केट में आने से पहले उसकी सरकार द्वारा समीक्षा एवं जांच होनी चाहिए ।
समाज में हो रहे अश्लील नृत्य पर पूर्ण रूप से रोक लगा देनी चाहिए। तथा सरकार को कड़ा कानून बनाकर इस तरह के अश्लील कार्य का दुस्साहस करने वालों को कठोर दण्ड देना चाहिए।
इस पर रोक लगाने के लिए हमसबों को जागरूक होकर इसका विरोध करना होगा।