सरकारी आंकड़े के अनुसार मार्च के बाद से 450+ लोग आत्महत्या कर चुके हैं झारखंड मे। जिसका श्रेय सामाज को देना चाहिए जो सिर्फ सरकारी नौकरी करने वालों को ही विद्वान समझते हैं और सिर्फ सरकारी नौकरी को ही महत्व देते है। अभिभावकों को भी सरकारी नौकरी ही चाहिए बच्चों से क्युंकी घुस मस्त मिलता है और काम कम। दूसरी तरफ कोई सरकारी नौकरी आ नहीं रही झारखंड मे तो बच्चें कहाँ से लाए सरकारी नौकरी। सबको दामाद भी चाहिए तो सरकारी नौकरी वाला ही।
दूसरी चीज़ हमारे झारखंड में कोई प्राइवेट नौकरी भी नहीं उत्पन्न हो रही है क्यूंकि यहां लोगों को बस नौकरी चाहिये, नौकरी कोई जनरेट करने में इच्छुक ही नहीं है जिसका एक कारण है ना तो सरकार से मदद मिलना ना ही अपनों से।
तो सब आँख खोलें और समझे की सरकारी नौकरी ही सबकुछ नहीं होता, बिजनेस और प्राइवेट जॉब भी कुछ होता है। अपने बच्चों को डिप्रेशन मे जाने से बचाएँ ताकि वो कोई गलत कदम ना उठाएँ।