खून जब पसीना बनता है
वही माटी मे जा मिलता है
कड़ी धूप में शरीर तपता है
तब फसल लहराता है
पत्थरा जाती है आंखों
निगाहे जब एक बूँद के लिए तरसता है
अपनो से ज्यादा हमे
बारिश का इंतिजार रहता है
सब जीव का पेट मैं भरता
मेहनत साल भर मैं करता
परिस्थितियां चाहे कोई भी हो
हमेशा दुगुना मशक्कत मै करता
पर आह आज ये कैसा फरमान
मेरा हक हनन हुआ ये है नया ऐलान
राजनीति की गद्दी पर बैठे जैसे लगे हैवान
मेरा हक छीन के डुबाया मेरा अभिमान
आज हम बन बैठे है बागी
हमारे ऊपर छीटो के बौछारें भी दागी
डंडे चले लाठी भी चली
पर हमारी हिम्मत ना भागी
किसान हूँ साहब
इन अत्याचारों से क्या डरना
हर दिन मरता ईक जिंदगी के लिए
इन औनी-पौनी हरकतों से क्या करना
माटी मे हर लडता हूँ
तो अपने हक के लिए भी लडूंगा
अपना वजूद अपना मान
सब लेके मैं रहूँगा।।
लेखिका – एस्थर नाग