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सच्चाई की जीत

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एक समय की बात है, एक सुंदर गाँव में एक किसान रहता था जिसका नाम मोहन था। मोहन न केवल अपने खेतों में मेहनत करने के लिए जाना जाता था, बल्कि उसकी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के लिए भी प्रसिद्ध था। मोहन का एक पड़ोसी था, रमेश, जो बहुत ही चालाक और धोखेबाज था। रमेश हमेशा अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को धोखा देता था। एक दिन, रमेश ने सोचा कि अगर वह मोहन को फँसा सके, तो उसके खेत भी हड़प सकता है। उसने एक योजना बनाई और गाँव के सरपंच के पास गया। उसने सरपंच से कहा कि मोहन ने उसके खेत से सोना चुराया है। सरपंच ने दोनों को बुलाया और पूछा, “क्या यह सच है, मोहन?” मोहन ने साफ-साफ कहा, “नहीं, सरपंच जी। मैंने कभी भी ऐसा नहीं किया।” सरपंच ने तय किया कि सच्चाई का पता लगाने के लिए दोनों के खेतों की तलाशी ली जाएगी। रमेश ने अपने खेत में पहले से ही कुछ सोने के सिक्के छिपा दिए थे ताकि मोहन को फँसाया जा सके। तलाशी के दौरान, सरपंच को रमेश के खेत में सोने के सिक्के मिले और उसने मोहन को दोषी ठहराया। मोहन को जेल में डाल दिया गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। मोहन ने ईश्वर से प्रार्थना की और सच्चाई की जीत की उम्मीद में रहा। कुछ दिनों बाद, गाँव में एक बहुत ही बुद्धिमान व्यक्ति आया। उसने गाँव के लोगों से कहा कि वह सच्चाई और न्याय के बारे में बहुत कुछ जानता है और वह मोहन की सच्चाई का पता लगाने में मदद कर सकता है। उसने सरपंच से कहा, “मुझे मोहन के खेतों की तलाशी लेने दीजिए।” सरपंच ने सहमति दी और बुद्धिमान व्यक्ति ने मोहन के खेतों की गहराई से तलाशी ली। उसने पाया कि जमीन के नीचे एक पुराना बक्सा दबा हुआ था जिसमें बहुत सारे सोने के सिक्के थे। इस बक्से पर मोहन के पूर्वजों का नाम लिखा हुआ था। बुद्धिमान व्यक्ति ने सबको बताया कि मोहन के पूर्वजों ने यह सोना यहाँ छिपाया था और मोहन निर्दोष है। उसने रमेश की चालबाज़ी का भी पर्दाफाश किया और रमेश को सजा मिली। गाँव के लोग मोहन की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा की प्रशंसा करने लगे। मोहन ने सच्चाई की जीत का सबसे बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया और गाँव में फिर से शांति और विश्वास लौट आया।



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