मनुष्य को अपना कर्म नहीं भूलना चाहिए -आराध्या दीदी
सेंथरी में श्री शाला वाले हनुमान जी मंदिर पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा का हुआ समापन
थरेट -मित्रता अगर करनी है तो भगवान श्री कृष्णा और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है जो अपने मित्र की परेशानी को समझें और बिन बताएं ही मदद कर दे। परन्तु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्धि होता है तब तक मित्रता रहती है, इसलिए भगवान श्री कृष्णा व सुदामा जैसी मित्रता की जानी चाहिए। यह बात कथा वाचिका आराध्या दीदी ने कहीं
। सोमवार को सेंथरी में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में सुदामा चरित्र का वर्णन कर कहीं। उन्होंने कहा कि सुदामा संसार में भगवान श्री कृष्ण के सबसे अनोखे भक्ति रहे। वह जीवन में जितने गरीब नजर आए, इतने वे मन से धनवान थे। उन्होंने अपने सुखवा दुखों को भगवान की इच्छा पर सौंप दिया था। सुदामा जी जब भगवान श्री कृष्ण से मिलने आए तो उन्होंने सुदामा के फटे कपड़े नहीं देखें, बल्कि मित्र की भावनाओं को देखा। मनुष्य को अपना कर्म नहीं भूलना चाहिए। अगर सच्चा मित्र है तो श्री कृष्णा और सुदामा की तरह होना चाहिए। जीवन में मनुष्य को श्री कृष्ण की तरह अपनी मित्रता निभानी चाहिए। उन्होंने कहा कि एक दिन सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र श्री कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं। जब सुदामा जी महल के गेट पर पहुंच जाते हैं, तब प्रहरियों से भगवान कृष्ण को अपना मित्र बताते हैं और अंदर जाने की बात कहते हैं। सुदामा जी की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते हैं, और कहते हैं भगवान श्री कृष्ण का मित्र एक दरिद्र र्व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्री कृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र ब्राह्मण खड़ा हुआ है और अपने आप को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान श्री कृष्णा नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं। और अपने मित्र सुदामा को गले लगा लेते हैं। इस अवसर पर अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो भजन पर श्रोता झूमने लगते हैं। कथा के अंत में आरती की गई। मंगलवार को कन्या भोज एवं भंडारे का आयोजन किया जाएगा।