फुसरो संवाददाता संदीप कुमार सिंह का रिपोर्ट-
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फुसरो(बेरमो)। विहंगम योग संत समाज कोयलांचल द्वारा विश्व शांति वैदिक महायज्ञ को लेकर अंगवाली के वनइथान टुंगरी के नवनिर्मित मंदिर में सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज के मूर्ति का अनावरण किया गया। मूर्ति का अनावरण सदगुरू आचार्य स्वतंत्र देव महाराज एवं संत प्रवर विज्ञान देव महाराज आदि के द्वारा किया गया। वही बेरमो विधायक कुमार जयमंगल सिंह उर्फ अनुप सिंह ने मोबाइल के माध्यम से ऑनलाइन अनावरण किया। यहाँ अपनी व्यष्टिगत एवम समष्टिगत लाभ हेतु 101 दंपत्तियों ने वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच यज्ञकुंड में आहुतियों को प्रदान किये। इस दौरान यज्ञ वेदी से निकल रहे धूम्र से आस-पास के गाँवों का संपूर्ण वातावरण परिशुद्ध होने लगा। सन्त प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज ने कहा कि यज्ञ त्याग भाव है। अग्नि की ज्वाला सदैव ऊपर की ओर उठती है। अग्नि को बुझा सकते हैं, नीचे झुका नहीं सकते। वैसे ही हमारा जीवन भी उर्ध्वगामी हो, श्रेष्ठ, पवित्र और कल्याणकारी पथ पर निरंतर गतिशील रहे। अग्नि पवित्र करती है, शुद्ध करती है। हमारे अंतःकरण में अंधेरा ना होकर ज्ञान की अग्नि जलती रहे। शरीर में कर्म की अग्नि जलती रहे। इन्द्रियों में तप की अग्नि जलती रहे। श्रेष्ठ विचारों की, सद्विचारों की अग्नि प्रज्ज्वलित रहे। अशुभ नष्ट होता रहे। यज्ञ की अग्नि यही संदेश देती है। संत प्रवर श्री ने यह भी कहा कि यज्ञ श्रेष्ठ मनोकामनाओं की पूर्ति और पर्यावरण शुद्धि का भी साधन है। परन्तु यज्ञ यहीं तक सीमित नहीं है। वैदिक हवन यज्ञ हमारे भीतर त्याग की भावना का विकास करता है। मैं और मेरा से ऊपर उठकर विश्व शान्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। आज हो रहे ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने का यह एक ससक्त माध्यम है। इस पर सभी पर्यावरण चिंतको का ध्यान अवश्य होना चाहिए। यज्ञ एवं योग के सामंजस्य से ही विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है। महाराज जी ने बताया कि यज्ञ का धुँआ कोई डीजल या पेट्रोल का धुँआ नहीं है। यह आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों का लाभकारी धूम्र है जिससे स्वास्थ्य लाभ एवं पर्यावरण शुद्धि दोनों का लाभ होता है। स्वास्थ्य, सुख और शांति का संगम है। विहंगम योग. सेवा,सत्संग और साधना की त्रिवेणी है। विहंगम योग का ध्यान आंतरिक शांति का मार्ग प्रशस्त करता है। एक साधक जब सिद्धासन में बैठकर अपनी चेतना को गुरु उपदिष्ट भूमि पर केंद्रित करता है तो वह मानसिक व आत्मिक शांति का अनुभव करता है। मन पर नियंत्रण न होने से ही समाज में तमाम विसंगतियां फैली हैं। ध्यान में मानव मानवीय गुणों से मंडित होकर दिव्यगुण स्वाभाव वाला बन जाता है। अन्तिम सत्र में सद्गुरु आचार्य स्वतंत्रदेव जी महाराज की अमृतवाणी हुई। उन्होंने कहा कि आत्मोद्धार का सर्वश्रेष्ठ साधन भक्ति है। लेकिन आज की भक्ति अज्ञान, आडम्बरयुक्त जड़ भक्ति है। जड़ भक्ति से ऊपर उठकर भक्ति के चेतन पथ पर अग्रसर होने की आवश्यकता है। अधिकांश व्यक्तियों का जीवन अविद्या एवं अंधकार में व्यतीत हो रहा है। विहंगम योग ही विशुद्ध चेतन भक्ति है। जिसमे साधक संपूर्ण विकारों को त्याग कर आतंरिक शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति कर लेता है।
इसके पूर्व में अंगवाली स्थित विवाह मंडप के समीप से भव्य विहंगम शोभायात्रा निकाली गई। जिसमे सभी भक्त शिष्य अपने हाथों में अ अंकित श्वेत ध्वजा लिए सद्गुरु का जयघोष करते, स्वर्वेद महामंदिर निर्माण का संकल्प दोहराते हुए यज्ञ स्थल वनइथान टुंगरी पर पहुचें। यज्ञ के उपरांत मानव मन की शांति व आध्यात्मिक उत्थान के निमित्त ब्रह्मविद्या विहंगम योग के क्रियात्मक ज्ञान की दीक्षा आगत नए जिज्ञासुओं को दी गई। नए जिज्ञासुओं ने ब्रह्मविद्या विहंगम योग के क्रियात्मक ज्ञान की दीक्षा को ग्रहणकर अपने जीवन का आध्यात्मिक मार्ग प्रसस्त किया। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से विहंगम योग संत समाज के प्रदेश अध्यक्ष आरके सिन्हा, उपाध्यक्ष यूपी सिंह, नीलकंठ रविदास, सुरेंद्र सिंह, आनंद केसरी, सुरेश बंसल, पंचानंद साह, नरेश मिश्रा, खिरोधर गोप, कमल साव, जानकी यादव, शिवचंद यादव आदि सहित बोकारो जिला क्षेत्र के विभिन्न स्थानो के सैकडो लोग मौजुद रहे।