बिहार के तारापुर उपचुनाव में कांटे की टक्कर के बावजूद बाजी जदयू ने मारी। कांग्रेस और राजद के बीच की नूराकुश्ती में घाटा राजद को ही हुआ। लोजपा (रामविलास) प्रत्याशी भी जदयू को नुकसान पहुंचाने में सफल नहीं रहे। हालांकि, इस जीत को एकतरफा जीत नहीं कहा जा सकता। इस चुनाव में सरकार की साख और राजद का विश्वास दोनों दाव पर लगे थे। सरकार की साख बची और राजद का विश्वास बिखरा।यह सबको मालूम था कि तारापुर में किसी के लिए जीत आसान नहीं थी। परिणामस्वरूप सभी दलों ने अपनी पुरजोर ताकत झोंक रखी थी। जदयू ने मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय अध्यक्ष, सांसद, मंत्री, विधायकों को मैदान में उतारा था। एक-एक पंचायत की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। कमोवेश, यही काम राजद ने भी किया था। तारापुर विधानसभा सीट पिछड़ा बहुल रहा है। इस सीट पर लगातार कुशवाहा जाति के लोग ही विधायक बनते रहे हैं। शकुनी चौधरी लगातार छह बार यहां के विधायक रहे।इन्होंने पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज कराई थी। 2010 के चुनाव में शकुनी चौधरी जदयू की नीता चौधरी से पराजित हुए थे। शकुनी के पूर्व कुशवाहा जाति के ही तारिणी प्रसाद सिंह ने इस विधानसभा क्षेत्र का दो बार प्रतिनिधित्व किया था। नीता चौधरी के पति मेवालाल चौधरी 2015 में जदयू के उम्मीदवार बने। इन्होंने 66,411 वोट लाकर विजय हासिल की। इनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में हम से शकुनी चौधरी चुनाव मैदान में थे। इन्हें मात्र 54,464 वोट मिले। 2020 के चुनाव में भी कांटे की टक्कर हुई।राजद प्रत्याशी को पिछले चुनाव की अपेक्षा 19,000 वोट अधिक मिले। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि 2566 लोगों ने नोटा का प्रयोग किया। कांटे की इस टक्कर में जदयू प्रत्याशी राजीव कुमार सिंह 3821 वोटों से जीते। लालू प्रसाद की राजनीति यहां भी काम नहीं आई। स्थानीय स्तर पर तो वे गठबंधन तोड़कर चुनाव लड़े, लेकिन सोनिया की तारीफ करते रहे। राजद को भी इस चुनाव में नदी तट से प्यासा लौटने की कसक रह गई।